06 March, 2013

कश्मीर उसकी आवाज़ में पनाह पाता है

मैंने हीर को कभी नहीं देखा...मगर इस लड़की को गाते सुना तो लगा शायद हीर गाती तो ऐसा ही कुछ गाती...रुबाब की आवाज़ किन पहाड़ों की गूँज लिए लौटती है ये जाने के लिए सवाल करने पड़ते हैं मगर गीत से उबरूं तब तो कुछ पूछूं उससे.

कल एक रिकोर्डिंग के लिए स्टूडियो गयी थी...छोटा सा प्रोजेक्ट था लेकिन गीत के बोल मैंने लिखे थे...और हिंदी का गीत था तो थोड़ा देखना भी था कि सही उच्चारण है या नहीं...मीटिंग के बाद स्टूडियो पहुंची तो उसे देखा...उसका इंट्रो नेहा ने कुछ ऐसे दिया...बहुत खूबसूरत है यार. आवाज़ की खूबसूरती के साथ चेहरे पर भी इतना पानी...और बात से बात निकलती है तो इस कश्मीरी को गाते सुना. कश्मीर उसकी आवाज़ में पनाह पाता है...याद के कितने जंगल पार कर गयी मैं उसके गीत को सुनते हुए.

सूफिस्टिकेशन नाम से उसके अल्बम का पहला गाना सुना मैंने...पंजाबी में ये गीत स्टूडियो की दीवारों में कितना जज़्ब हुआ मालूम नहीं मगर मन के रेगिस्तान में ऐसा ही कोई दरिया बहने को मचल रहा था...स्टूडियो बहुत स्वार्थी होता है, आवाज़ की एक गमक भी बाहर नहीं जाने देता है. उसकी परवरिश में सूफी घुला हुआ है...बचपन से ऐसे ही गीत सुने हैं उसने...इश्क का ऐसा कोई रंग है...आभा हान्जुरा...कश्मीर के पहाड़ों का गीत तलाशती हुयी. गीत की रिकोर्डिंग के लिए कश्मीर जा कर वहां के आर्टिस्ट्स को खोजना. गीत में रुबाब बजता है...वो कहती है कैसे वहां की वादियों से यहाँ बैंगलोर आ गयी, इन्डियन आइडल...और भी कुछ किस्से.

कैसा रेगिस्तान बिछता है कि हीर कि एक पुकार लौटा सके ऐसा कुछ दूर दूर तक नहीं है...मैं आँखें बंद कर रात उसकी आवाज़ के नाम कर देती हूँ...कित्थे नैना न जोड़ी...कित्थे नैना न जोड़ी...तैनू वास्ता खुदा का. क्या कोई पिछले जन्म का वास्ता रहा होगा या कि हर लड़की में एक हीर सी होती है? कैसी आवाज़ है, जैसे हवा का ककून हो...इर्द गिर्द और कुछ भी नहीं है...कितनी शुद्ध...क्या आत्मा से गए गीत हैं? इस पुकार में वो कितनी घुली है? उससे बात करती हूँ तो जानती हूँ कि दर्द बिछोह का है...अपनी मिट्टी से दूर बसने का...डर खो देने का है...एक गहरी आह भारती हूँ उसे सुन कर...इस आर्टिफिशियल दुनिया में भी कहीं कुछ सच्चा है.

उसे देखती हूँ...यादों के कोलाज में कश्मीर की खिलखिलाती नदियाँ आती हैं...आवाज़ लौटने वाले पहाड़ आते हैं...एक घोड़ावाला आता है...शोहैब...कहता है कि दीदी फिर लौट कर आना...लाल चौक पर मेरे नाम से जब भी ढूंढोगे मिल जाऊँगा. कश्मीर में जब भी कोई ब्लास्ट होता है...लाल चौक पर लाठीचार्ज होता है...मैं मन में उसके लिए दुआ मांगती हूँ.

हमें अपना काम अच्छा लगता है...मुझे लिखना अच्छा लगता है...उसे गाना अच्छा लगता है...म्यूजिक डाइरेक्टर हमें किस्से सुना रहा है. कहीं स्टूडियो के बाहर एक भागती दुनिया है...बहुत ट्रैफिक का शोर है...जिंदगी की आधापापी है...स्टूडियो के दोनों दरवाजे लगते हैं तो सब छूट जाता है. हम कुछ लोग होते हैं...कितने तरह का संगीत होता है...आलाप होता है...लयकारी होती है...गमक है...विलंबित ख्याल और ध्रुपद है.

मैं दिल से आभा को बहुत सी दुआएं देती हूँ उम्मीद करती हूँ कि कश्मीर की जिन आवाज़ों की तलाश में वो निकली है, वे उसे मिल जायें और फिर हम उसके रास्ते कुछ पुरानी कहानियां सुन सके. आप फुर्सत में है तो ये गीत सुनिए...दिन के क़त्ल का सामान है...

5 comments:

  1. मैने तो डाउनलोड कर लिया बडी सुंदर सुफियाना आवाज

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  2. ओह पूजा ! मेरा एक दिन क़त्ल करने का इल्ज़ाम तो तुम्हारे सर आ ही गया :) एक पूरा दिन... वो भी ऑफिस में !! सोचो अब बाकी का दिन कैसे गुज़रेगा... रीडर में तुम्हारी पोस्ट देखी तो बहुत सोचा कि इसे पढना रात तक के लिए मुल्तवी कर दें... पर "कश्मीर" ... इस नाम कि तासीर ही कुछ ऐसी है की खींच ही लायी ख़ुद तक...

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,गीत बहुत ही मधुर है,आभार.

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  4. जितना व्यक्त चेहरा उतनी उन्मुक्त और गहरी आवाज।

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