'तुम्हें देख कर पहली बार महसूस हुआ है कि लोग काफ़िर कैसे हो जाते होंगे. मेरे दिन की शुरुआत इस नाम से, मेरी रात का गुज़ारना इसी नाम से. मेरा मज़हब बुतपरस्ती की इजाजत नहीं देता पर आजकल तुम्हारा ख्याल ही मेरा मज़हब हो गया है.
'जानेमन हमने तुमसे यूँ मुहब्बत की है
'शेर का मतलब बताओ...मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आया'
'बाकी लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे? तुम्हें मालूम भी है कि अमृता का मतलब क्या होता है?'
'हाँ...मेरे खुदा का नाम है अमृता'
मैं सर पकड़ के बैठ गयी...घर पर पता चला तो घर से निकलना बंद हो जाएगा, कैरियर शुरू होने के पहले ही ख़त्म हो जाएगा....मेडिकल करना बहुत टफ था, कोचिंग नहीं जाती तो डॉक्टर बनने के सपने, सपने ही रह जाते. उससे पूछा की मुझे ये सब क्यों बता रहा है तो बोला, बता ही तो रहा हूँ, सुन लोगी तो तुम्हारा क्या चला जाएगा. कुछ माँग थोड़े रहा हूँ तुमसे. मुझे सुकून आ गया थोडा...अब जिंदगी इतनी छटपटाहट में नहीं गुजरेगी. कमसे कम खुदा को शुक्रिया कहते हुए नमाज़ पढ़ सकूँगा.
मोहल्ले में लोग उसे लुच्चा-लफंगा कहते थे, उसे कोई काम नहीं है, बस झगड़ा, दंगे फसाद करना जानता है. सब जानने पर भी न विश्वास हुआ उनकी ख़बरों पर न उससे नफरत हुयी कभी...और डर, वो तो खैर कभी किसी से लगा ही नहीं. उन दिनों पटना में टेम्पो शेयर करना पड़ता था. पीछे वाली सीट पर तीन लोग बैठते थे, और बहुत देख कर बैठना पड़ता था की कोई शरीफ इन्सान हो. कोचिंग जाते हुए अक्सर सरफ़राज़ पाटलिपुत्रा गोलंबर पर मिल जाता था, उसे स्टशन जाना होता था. उसे कुछ भी नहीं जानती थी...पर एक अजनबी के साथ बैठने से बेहतर उसके साथ जाना लगता था. और कई सालों में उसने कभी कोई बदतमीजी नहीं की. जिस दिन वो दिख जाता पेशानी की लकीरें मिट जाती थीं.
एक दिन 'राजद' का चक्का जाम था, पर हम जिद करके कोचिंग चले गए कि दिन में बंद था...शाम को कुछ नहीं होता. क्लास चल रही थी कि खबर आई की बोरिंग रोड में कुछ तो दंगा फसाद हो गया है, फाइरिंग भी हुयी है. क्लास उसी समय ख़त्म कर दी गयी और सबको घर जाने के लिए बोल दिया. कोचिंग से बाहर आई तो देखा कर्फ्यू जैसा लगा हुआ है. दुकानों के शटर बंद, सड़क पर कोई भी गाड़ियाँ नहीं, एक्के दुक्के लोग और टेम्पो तो एक भी नहीं. पैदल ही निकल गयी...कुछ कदम चली थी की सरफ़राज़ ने पीछे से आवाज़ दी.
'उधर से मत जाओ, आग लगी हुयी है, गोलियां चल रही हैं.'
मुझे पहली बार थोड़ा डर लगा...पटना उतना सुरक्षित भी नहीं था...पिछले साल कुछ गुंडे दुर्गापूजा के समय डाकबंगला चौक से एक लड़की को मारुती वान में खींच ले गए थे. एक सेकंड सोचा...कि सरफ़राज़ के साथ जाना ठीक रहेगा या अकेले...तो फिर उसके साथ ही चल दी...उसे अन्दर अन्दर के रास्ते मालूम थे. जाने किन गलियों से हम बढ़ते रहे...शाम गहराने लगी थी और एक आध जगह तो मैं गिरते गिरते बची, एक तो ख़राब सड़क उसपर मेरे हील्स. सरफ़राज़ ने अपना हाथ बढ़ा दिया...की ठीक से चलो. और पूरे रास्ते हाथ पकड़ कर लगभग दौड़ाता हुआ ही लाया मुझे. मैं महसूस कर सकती थी की उसे मेरी चिंता हो रही है.
अचानक से मेरे मुंह से सवाल निकल पड़ा कि तुम्हें सब लोग बुरा क्यों कहते हैं मेरे मोहल्ले में...यूँ तो सवाल अचानक से था...पर दिल में काफी दिन से घूम रहा था. वो उस टेंशन में भी हंसा...
'इशरत को कुछ लड़कों ने छेड़ दिया था, बताओ तुम्हिएँ कि छेड़े तो तुम्हारे भाई का खून नहीं खौलेगा? उनसे काफी लड़ाई हो गयी मेरी...क्या गलत किया मैंने, पुलिस आ गयी थी. मुझे तीन दिन जेल में डाल दिया...अब्बा ने बड़ी मुश्किल से मुझे छुड़ाया. बस, इतना सा किस्सा है'.
'पटना का माहौल तो तुम जानती ही हो, इसलिए तुम अगर दिख जाती हूँ तो तुम्हारे साथ ही टेम्पो पर जाता हूँ...तुम्हें ऐतराज़ हो तो मना कर दो'.
तब तक हम घर के पास आ गए थे, पर सरफ़राज़ ने उसने मुझे घर के चार कदम पर छोड़ा. उसने सर पर हाथ रखा और कहा 'अपना ख्याल रखना' ये उसके आखिरी शब्द थे. उस दिन से बाद से उससे कभी बात नहीं हुयी मेरी.
पटना के आखिरी कुछ सालों में व मुझे बहुत कम दिखा. शादी के दिन भी नहीं आया...हालाँकि मैंने कार्ड पोस्ट किया था उसके घर पर. शायद उसने घर बदल लिया हो. जाने क्यूँ मुझे लगता है, जिंदगी के किसी मोड़ पर व जरुर फिर मिलेगा...भले एक लम्हे भर के लिए सही.
इस शेर का मतलब तो अब समझ आ गया है...पर शायद वो मुझे पूरी ग़ज़ल भी बता दे उस रोज़.
'जानेमन हमने तुमसे यूँ मुहब्बत की है
बावज़ू होकर तेरी तिलावत की है'
'शेर का मतलब बताओ...मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आया'
'हमारे यहाँ नमाज़ से पहले वज़ू करते हैं, हाथ पैर धोके, कुल्ला करके...पाक होकर नमाज़ पढ़ते हैं'
'और तिलावत का मतलब?'
'तुम'
'मजाक मत करो, शेर कहा है तो समझाओ तो ठीक से'
पर उसने तिलावत का मतलब नहीं समझाया...कहानी सुनाने लगा. एक बार मेरे मोहल्ले की किसी शादी में आया था, वहीं उसने मुझे पहली बार देखा था और उसने उस दिन से लगभग हर रोज़ यही दुआ मांगी है कि मैं एक बार कभी उससे बात कर लूं. फिर उसने मुझे अपनी कोपी दिखाई खूबसूरत सी लिखाई में आयतें लिखी हुयी थीं और हर नए पन्ने के ऊपर दायीं कोने में, जिधर हम तारीख लिखते हैं 'अमृता' उर्दू में लिखा था...उस समय मैंने हाल में उर्दू सीखी थी तो अपना नाम तो अच्छी तरह पहचानती थी. उसने फिर बताया की ये मेरा नाम है...मैंने उसे बताया की मैं उर्दू जानती हूँ. उसने बताया की उसकी कॉपी के हर पन्ने पर पहले मेरा नाम लिखा होता है...उसकी कापियों पर काफी पहले की तारीखों पर मेरा नाम लिखा था कुछ वैसे ही जैसे मेरी कुछ दोस्त एक्जाम कॉपी के ऊपर लिखती थी...'जय माँ सरस्वती' या ऐसा कुछ. कॉपी में आयतों के बीच ये हिन्दू नाम बड़ा अजीब सा लग रहा था और नाम भी कुछ ऐसा नहीं की समझ में नहीं आये. कुछ शबनम, चाँद या ऐसा नाम होता तो शायद ख़ास पता नहीं चलता.
'बाकी लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे? तुम्हें मालूम भी है कि अमृता का मतलब क्या होता है?'
'हाँ...मेरे खुदा का नाम है अमृता'
मैं सर पकड़ के बैठ गयी...घर पर पता चला तो घर से निकलना बंद हो जाएगा, कैरियर शुरू होने के पहले ही ख़त्म हो जाएगा....मेडिकल करना बहुत टफ था, कोचिंग नहीं जाती तो डॉक्टर बनने के सपने, सपने ही रह जाते. उससे पूछा की मुझे ये सब क्यों बता रहा है तो बोला, बता ही तो रहा हूँ, सुन लोगी तो तुम्हारा क्या चला जाएगा. कुछ माँग थोड़े रहा हूँ तुमसे. मुझे सुकून आ गया थोडा...अब जिंदगी इतनी छटपटाहट में नहीं गुजरेगी. कमसे कम खुदा को शुक्रिया कहते हुए नमाज़ पढ़ सकूँगा.
मोहल्ले में लोग उसे लुच्चा-लफंगा कहते थे, उसे कोई काम नहीं है, बस झगड़ा, दंगे फसाद करना जानता है. सब जानने पर भी न विश्वास हुआ उनकी ख़बरों पर न उससे नफरत हुयी कभी...और डर, वो तो खैर कभी किसी से लगा ही नहीं. उन दिनों पटना में टेम्पो शेयर करना पड़ता था. पीछे वाली सीट पर तीन लोग बैठते थे, और बहुत देख कर बैठना पड़ता था की कोई शरीफ इन्सान हो. कोचिंग जाते हुए अक्सर सरफ़राज़ पाटलिपुत्रा गोलंबर पर मिल जाता था, उसे स्टशन जाना होता था. उसे कुछ भी नहीं जानती थी...पर एक अजनबी के साथ बैठने से बेहतर उसके साथ जाना लगता था. और कई सालों में उसने कभी कोई बदतमीजी नहीं की. जिस दिन वो दिख जाता पेशानी की लकीरें मिट जाती थीं.
कहने को कह सकती हूँ की उससे कोई भी रिश्ता नहीं था...बस एक आधी मुस्कान के सिवा मैंने उसे कभी कुछ दिया नहीं, न उसने कभी कुछ कहा मुझसे. उसने पहले दिन वाली बात फिर कभी भी नहीं छेड़ी, मैंने भी सुकून की सांस ली. वैसे भी इशरत के पापा का ट्रान्सफर हो गया था तो उसके मोहल्ले में जाने का कोई कारण नहीं बनता था. मैं सरफ़राज़ के घर फिर कभी नहीं गयी...इशरत से बात किये एक अरसा हो गया है, आज भी सोच नहीं पाती की उसके उतने बड़े मकान में उसने अपने स्टडी रूम में क्यूँ रुकने क कहा, जबकि उसका बड़ा भाई वहां पढ़ रहा था. क्या इशरत को सरफ़राज़ ने मेरे बारे में बताया था या वो महज़ एक इत्तेफाक था.
एक दिन 'राजद' का चक्का जाम था, पर हम जिद करके कोचिंग चले गए कि दिन में बंद था...शाम को कुछ नहीं होता. क्लास चल रही थी कि खबर आई की बोरिंग रोड में कुछ तो दंगा फसाद हो गया है, फाइरिंग भी हुयी है. क्लास उसी समय ख़त्म कर दी गयी और सबको घर जाने के लिए बोल दिया. कोचिंग से बाहर आई तो देखा कर्फ्यू जैसा लगा हुआ है. दुकानों के शटर बंद, सड़क पर कोई भी गाड़ियाँ नहीं, एक्के दुक्के लोग और टेम्पो तो एक भी नहीं. पैदल ही निकल गयी...कुछ कदम चली थी की सरफ़राज़ ने पीछे से आवाज़ दी.
'उधर से मत जाओ, आग लगी हुयी है, गोलियां चल रही हैं.'
मुझे पहली बार थोड़ा डर लगा...पटना उतना सुरक्षित भी नहीं था...पिछले साल कुछ गुंडे दुर्गापूजा के समय डाकबंगला चौक से एक लड़की को मारुती वान में खींच ले गए थे. एक सेकंड सोचा...कि सरफ़राज़ के साथ जाना ठीक रहेगा या अकेले...तो फिर उसके साथ ही चल दी...उसे अन्दर अन्दर के रास्ते मालूम थे. जाने किन गलियों से हम बढ़ते रहे...शाम गहराने लगी थी और एक आध जगह तो मैं गिरते गिरते बची, एक तो ख़राब सड़क उसपर मेरे हील्स. सरफ़राज़ ने अपना हाथ बढ़ा दिया...की ठीक से चलो. और पूरे रास्ते हाथ पकड़ कर लगभग दौड़ाता हुआ ही लाया मुझे. मैं महसूस कर सकती थी की उसे मेरी चिंता हो रही है.
अचानक से मेरे मुंह से सवाल निकल पड़ा कि तुम्हें सब लोग बुरा क्यों कहते हैं मेरे मोहल्ले में...यूँ तो सवाल अचानक से था...पर दिल में काफी दिन से घूम रहा था. वो उस टेंशन में भी हंसा...
'इशरत को कुछ लड़कों ने छेड़ दिया था, बताओ तुम्हिएँ कि छेड़े तो तुम्हारे भाई का खून नहीं खौलेगा? उनसे काफी लड़ाई हो गयी मेरी...क्या गलत किया मैंने, पुलिस आ गयी थी. मुझे तीन दिन जेल में डाल दिया...अब्बा ने बड़ी मुश्किल से मुझे छुड़ाया. बस, इतना सा किस्सा है'.
'पटना का माहौल तो तुम जानती ही हो, इसलिए तुम अगर दिख जाती हूँ तो तुम्हारे साथ ही टेम्पो पर जाता हूँ...तुम्हें ऐतराज़ हो तो मना कर दो'.
तब तक हम घर के पास आ गए थे, पर सरफ़राज़ ने उसने मुझे घर के चार कदम पर छोड़ा. उसने सर पर हाथ रखा और कहा 'अपना ख्याल रखना' ये उसके आखिरी शब्द थे. उस दिन से बाद से उससे कभी बात नहीं हुयी मेरी.
पटना के आखिरी कुछ सालों में व मुझे बहुत कम दिखा. शादी के दिन भी नहीं आया...हालाँकि मैंने कार्ड पोस्ट किया था उसके घर पर. शायद उसने घर बदल लिया हो. जाने क्यूँ मुझे लगता है, जिंदगी के किसी मोड़ पर व जरुर फिर मिलेगा...भले एक लम्हे भर के लिए सही.
इस शेर का मतलब तो अब समझ आ गया है...पर शायद वो मुझे पूरी ग़ज़ल भी बता दे उस रोज़.
जानेमन हमने तुमसे यूँ मुहब्बत की है
बावज़ू होकर तेरी तिलावत की है
इस शेर का मतलब तो अब समझ आ गया है...पर शायद वो मुझे पूरी ग़ज़ल भी बता दे उस रोज़.
ReplyDeleteजानेमन हमने तुमसे यूँ मुहब्बत की है
बावज़ू होकर तेरी तिलावत की है kya khub likha hai
बहुत खुबसूरत लिखा है पुरे नोवल को छोटी सी थाली मै पेश कर दिया सुक्रिया
ReplyDeleteपटना का बड़ा ही भयावह तस्वीर पेश किया है आपने।
ReplyDeleteकभी कभी संदर्भ शेर को पूरा व्यक्त कर देते हैं।
ReplyDeleteBahut bhavuk ,komal katha!
ReplyDeleteMasoom ishq ki jaadu bhari daastan :)
ReplyDeleteकिसी फिल्म के अंश सा..
ReplyDeleteकुछ बच गया, कुछ बचा लिया... कुछ खो गया... कहीं से भाग निकले... कुछ को सरसरी निगाह से देख भर लिया तो कुछ को छू कर देखा... पत्ते थोड़े वैसे ही रूखे थे नहीं सूखे थे, नहीं यह भी नहीं करारे थे. नरमी लिए हुए.
ReplyDeleteतुम्हारा ब्लॉग अच्छा लग रहा है....और उस पर शेर कमाल. पैमाने के हिस्से का आसमा या आसमा के हिस्से का पैमाना ...उधर रंग उड़ा हुआ है...इधर जाम सजा हुआ है ....कशमकश है ....के हम किधर जाए :-)
ReplyDeleteवैसे इस शेर का मतलब क्या है ?
"
जानेमन हमने तुमसे यूँ मुहब्बत की है
बावज़ू होकर तेरी तिलावत की है"
हमको तो नहीं समझ में आया जी
वैसे भी ऐसी मोहब्बतें कामयाब नहीं हो पाती हैं...खूबसूरत यादें ही छोड़ जाती हैं!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसॉरी इस पोस्ट के ऊपर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर रहा..
ReplyDeleteये कमेन्ट बस ये बताने के लिए है की आपका ब्लॉग का लुक मुझे बहुत ही खूबसूरत लगा...
रीडर में ही [पोस्ट पढ़ रहा था..ब्लॉग बहुत दिनों बाद आज खोला.. :)
@ अभिषेक - लग रहा है कि बहुत दिनों बाद कुछ हिंदी में लिख रहे हो.. एक तो हिज्जे गलत लिखे हो, एक '[' अधिक डाल दिए हो, और उससे भी पहले अपने दूसरे ID(जरूर बेनामी कमेन्ट करने के लिए बनाए होगे ;) ) उससे कमेन्ट करके डिलीट मारे हो.. :)
ReplyDeletepurani puja ko padhna bhi accha laga....
ReplyDelete