तुम्हें सच में नहीं दिखते?
दायें हाथ की उँगलियों के पोर...नीले हैं अब तक
ना ना, सियाही नहीं है...माना की लिखती हूँ
पर अब तो बस कीपैड पर ही
तुम भूल भी गए फिर से
तुम्ही ने तो मेरी पेन का निब तोड़ा था
मुझसे अब कभी नहीं मिलना
कह कर, आखिरी वाले दिन
तुम क्यूँ पकड़ा करते थे मेरा हाथ
क्लास में डेस्क के नीचे, तुम्हें पता है
एक हाथ से नोट्स कॉपी करने में
उँगलियों के पोर नीले पड़ जाते थे
गर्म दोपहरों में, पिघला डेरी मिल्क
उँगलियाँ झुलसा देता था
इतना तो तवे से रोटियां उतारते
हुए भी कभी नहीं जली मैं
मेरे हाथ से फिसलती तुम्हारी उँगलियाँ
तराशी हुयी, किसी वायलिन वादक जैसी
छीलती चली गयीं थीं मेरी हथेलियों को
लगता था बचपन है, चोट लगने वाले दिन हैं
आज डायरी पढ़ रही थी, २००३/४/5 की
उँगलियाँ फिर से सरेस पर रगड़ खा गयीं
पन्ने लाल होने लगे तो जाना
उँगलियों के ज़ख्म अब तक हरे हैं
ऐसे जख्म सबको मिले और हमेशा हरे रहें..:-)
ReplyDeleteआपको पढ़ना खुशबू को महसूस करने जैसा है। कोई पूछे कैसा लगा तो बस इतना कहा जाय...बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteकहाँ से लाती हो इतना दर्द....कहाँ से..??
ReplyDeleteक्या मेरे कुछ बीते हुए दिनों को चुरा लिया है...... तुमने पूजा ?
ज़ख्म अब तक हरे हैं.....नहीं-नहीं.......येः तो समय के साथ-साथ नीले और कुछ-कुछ काले से हो गए हैं......
पर येः पीले-काले से निशान शरीर को कुरूप क्यूँ नहीं बनाते ....?
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ReplyDeletekisi ne theek kaha h.. वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा गान,
ReplyDeleteउमड़कर आखों से चुपचाप,बही होगी कविता अनजान.
Aaj ye lines yaad dila di aapki kavita ne :)
अगर मोनाली को यह याद आया - "वियोगी होगा पहला कवि " तो मुझे डेस्क ने नीचे हाथ पकड़ने से गुलज़ार का सूर्यग्रहण पर लिखी नज़्म याद आई...
ReplyDelete"
कॉलेज के रोमांस में ऐसा होता था/
डेस्क के पीछे बैठे-बैठे/
चुपके से दो हाथ सरकते
धीरे-धीरे पास आते...
और फिर एक अचानक पूरा हाथ पकड़ लेता था,
मुट्ठी में भर लेता था।
सूरज ने यों ही पकड़ा है चाँद का हाथ फ़लक में आज।।"
तुम्ही ने तो मेरी पेन का निब तोड़ा था
गर्म दोपहरों में, पिघला डेरी मिल्क, उँगलियाँ झुलसा देता था
"मेरे हाथ से फिसलती तुम्हारी उँगलियाँ
तराशी हुयी, किसी वायलिन वादक जैसी
छीलती चली गयीं थीं मेरी हथेलियों को
लगता था बचपन है, चोट लगने वाले दिन हैं
और...
पन्ने लाल होने लगे तो जाना, उँगलियों के ज़ख्म अब तक हरे हैं
एक तराजू लिया है आजकल, तौल रहा हूँ, कौन इश्क को बेहतर जीता है. दावा फिलहार बराबर का है. बचपन में तोता मैंने की कहानी पढ़ी थी, तब भी यही दावा था. खैर..
यहाँ, यह सब बहुत सुन्दर लिखा है.
तस्वीर बदल दीजिये पूजा जी - इस नीले जाम का जहर जाने कितनी नीली उँगलियों वालियों को डूबने खींचेगा!!!!
ReplyDeleteयाद किसी ठहरे पानी जैसी..उतरे तो गहरायी पता चले..
ReplyDeleteआस्मां भी नीला आपकी उँगलियों के स्पर्श से तो नही हुआ:)
नज़्म तो ख़ैर अच्छी है ही.. पर हमारा दिल तो ये ब्लॉग हेडर की फोटो और टैग लाइन ले गये :)
ReplyDelete" आसमाँ सिमट कर, दो घूंट बन गया है... पैमाने से पूछो उसने क्या जिंदगी जी है! " वाह !!!
गर्म दोपहरों में, पिघला डेरी मिल्क
ReplyDeleteउँगलियाँ झुलसा देता था
इतना तो तवे से रोटियां उतारते
हुए भी कभी नहीं जली मैं kya khub likha hai lagta hai dairy milk ka agla add yahi hoga
विज्ञापन की कापी की तरह बहुत ही सोफ्ट कविता..
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली और मन को छूने वाली कविता।
ReplyDeleteकविता की नीलिमा, ब्लॉग के बदले रूप में गूंज रही है।
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
maulikata rachanadharmita ki aadhar- shila hoti hai ,jo mujhe pratit huyi .
ReplyDeletebadhayi sunder srijan ke liye .
ऐसे जख्म हमेशा याद रहते है| खुबसूरत अहसास और उनकी अभिव्यक्ति बधाई ....
ReplyDeleteनाजुक और खूबसूरत अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteनीले असमान पर सफ़ेद पाखी की तरह उड़ती हुई कविता ...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ...!!
भावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteलगता है विषपान किये नीलकंठ को कहीं महसूस कर रहीं हूं ......
ReplyDeletewaah bahut khub likhti hai aap...pehli baar padh rahi hu aapke blog ko...lekin ab baar baar padhungi...aesa hi hota hai kabri kavi kuchh jakham hare rehte hai...or yaade to bani hi hai yaad aane ke lie....ajib si baat hai ki meri kabita me bhi aaj yaado ko hi sameta hai maine....bhut sundar...
ReplyDeletemarm sparshi ..
ReplyDeleteस्मृति में किसी का आना और उसका इस तरह का वर्णन कि पढ़नेवाला खुद की अंगुलियों को देखने लगे...अपने में बांध लेनेवाली सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteदर्द की गहराइयों से लिखी हुई रचना....
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