Establishing Shot: Ext, Evening, Garden
हरियाला सा बाग़ है...तोतों की चीख-चिल्लाहट और मोर के शोर से गुलज़ार सा हुआ है...शाम का वक़्त और आसमान में बादलों के कुछ सांवरे कतरे.
फेड इन होती हुयी आवाज़...मीरा! अरीओ मीरा!!.
सेट पर पर एक चपल किशोरी दौड़ती हुयी चढ़ती है और कोने कोने ढूंढती है, पेड़ की पीछे, फुनगी के ऊपर...मीरा...कहाँ चली गयी शैतान! काले काले बदल घुमड़ रहे हैं और इसे अभी छुपा छुपी खेलने कि पड़ी है...घर जा के खुद तो मार खाएगी ही, मुझे भी खिलवाएगी.
झील किनारे एक पत्थर पर एक सलोनी सी लड़की बैठी है...बड़ी बड़ी आँखें, थोड़ा फैला सा काजल...और कमर तक के बाल...उनींदी, सपनीली आँखें झपकती है पल पल में...सखी से कहती है...
'देख ना...कैसी सांवली धनक फैली हुयी है...मेरा मन कहता है आज ब्रिन्दावन में बारिश हो रही होगी...चल ना भाग चलते हैं, वो डमरू चाचा की बस है ना..सुना है सीधे ब्रिन्दावन रूकती है...देखें तो सही आज कान्हा कैसे रास रचा रहा है...चल ना...बारिश होगी...बादल की गरज पर हम थिरकेंगे....बिजली से तेज हम नाचेंगे. यमुना के तट पर कान्हा बांसुरी बजा रहा है...देख ना, तुझे उसकी मोरपंखी दिखी?'
'बावली हो गयी है...कहाँ है कोई...चल ना, जल्दी अँधेरा हो जाएगा, माँ खाना बंद कर देगी मेरा' और वो लगभग खींचती हुयी उस खोयी हुयी लड़की को, जिसका कि नाम मीरा है ले चलती है. मीरा का प्रलाप बंद नहीं होता है...
'कान्हा..तुम सच में बड़े दुष्ट हो...किसी और को नज़र नहीं आते, और मुझे इतना सताते हो...मैंने ना कहा था कि मुझे कोई ब्रिन्दावन जाने नहीं देगा, मेरी सगी...बचपन की सहेली ये भी मुझे घर ले जा रही है खींच कर...हाय कान्हा, मैंने क्या किया है जो तुम मुझे इतना परेशान करते हो?
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interiors of house
गर्मियों का एक दिन...अनगिन लोगों के उस संयुक्त परिवार में हमेशा कोई न कोई आता जाता ही रहता है...ऐसे में बच्चों को सबसे जरूरी काम सौंपा गया है...आने वालों के लिए घड़े से पानी निकाल कर, ग्लास में ले जाना...बाहर के चबूतरे के ऊपर आम के पेड़ की छाया है, दिन में उधर गर्मी थोड़ी कम लगती है. मीरा को उसकी माँ ने पानी लेने भेजा है...वो घड़े के पास खड़ी अपने ही ख्यालों में गुम है...पिछले इतवार गुरूजी ने छोटा ख्याल सिखाया था...डगर चलत छेड़े श्याम सखी री, मैं दूँगी गारी, निपट अनाड़ी...पनिया भारत मोरी गागर फोड़ी, नाहक बहियाँ मरोड़ी झकोरी...मीरा की माँ पुकार रही है...बरामदे के मेहमान बिना पानी के मरे जा रहे हैं, मगर मीरा पानी लेकर कैसे आये भला, कान्हा ने मरोड़ दी हैं उसकी बाहें, घड़े में से तो सारा पानी गिर ही गया है...और अभी भी कान्हा चिढ़ा ही रहा है उसे. अब वो कान्हा से झगड़े पहले या माँ को सफाई दे की कान्हा ने घड़ा फोड़ दिया है.
बरामदे के मेहमान...कुछ नकचढ़ी फूफीयां कुछ पिताजी के गाँव के अन्य लोग...महिलाओं की टोली में खुसुर फुसुर होने लगी है...मैं न कहती थी, मत रखो बेटी का नाम मीरा, अब देखो न सारे वक़्त खोयी ही रहती है...कान्हा कान्हा...अब पूछ न उससे, कान्हा बियाह करेगा? अरे कान्हा ने तो राधा को भी बड़े आंसू रुलाये थे, व तो बावली ही थी, और अब ये है, पागल हो गयी है...वरना लड़की बड़ी गुनी है. एक कान्हा के पीछे भागी फिरती है येही खोट है बस.
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doctor's cabin
मीरा के माता पिता डॉक्टर के साथ बैठे हुए हैं...सामने कई सारी रिपोर्ट्स हैं...डॉक्टर काफी गंभीर मुद्रा में है...ह्म्म्म तो समस्या ये है की मीरा को लगता है की कान्हा इसका बचपन का सखा है और इसके साथ बातें करता है खेलता है...ये उसके बारे में बातें करती रहती है...ये एक काफी गंभीर मनोवैज्ञानिक बीमारी है...इसे सिजोफ्रेनिया कहते हैं. इसमें व्यक्ति अपने आसपास काल्पनिक किरदार रच लेता है. समस्या वक़्त के साथ और बिगड़ती जाती है. सही समय पर दवाओं और इलाज से इसके सिम्टम्स कंट्रोल किये जा सकते हैं. आप मीरा को दवाइयां ध्यान से खिलाइए...मैं दे देता हूँ...और इसे मेरे पास दिखाने लाया कीजिये, हर हफ्ते. और इसे ऐसे लोगों से दूर रखिये जो इसे ऐसी काल्पनिक कहानियों पर विश्वास करने देते हैं...आप लोग रैशनल लोग हैं.
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इलाज से धीरे धीरे मीरा की हालत में सुधार आने लागा...अब वो डॉक्टर के यहाँ जाने के नाम से ही चहकने लगती थी. घर वालों को भी ये डॉक्टर बहुत पसंद था...लम्बा, सांवला, घुंघराले बालों वाला...और एक दिन डॉक्टर ने मीरा का हाथ मांग लिया. बड़ी धूम धाम से शादी हुयी उनकी...मीरा विदा हुयी तो जैसे पेड़ पौधे तक उदास हो गए.
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doctor's house...room interiors
मीरा बचपन के स्केच किये कुछ कागज़ निकाल रही है...और गुनगुना रही है...कैमरा उसके स्केचेस पर जूम होता है...जहाँ कान्हा के रूप में हूबहू डॉक्टर की स्केच है.
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आखिरी सीन में नारद का प्रवेश...नारायण नारायण...प्रभु आपकी माया कोई नहीं समझ सका है आज तक. राधे श्याम...राधे श्याम!