पंख होने पर कोई क्या करता है?
उड़ने की कोशिश...है ना? तो अगर उसने उड़ने की कोशिश की तो कौन सा गुनाह कर दिया? अगर एक नयी जगह उसे एहसास होता है कि उसमें एक खास काबिलियत है...जो शायद बहुत कम लोगों में होती है...वो अपने शब्दों से चित्र बना सकती है...उसके पास लोगों कि भावनाओं को छूने कि ताकत है, वो हँसा सकती है, रुला सकती है, चिढा सकती है खिझा सकती है...ऐसा बहुत कम लोगों में होता है।
यहाँ रह कर उसे अहसास होता है कि उस सुदूर जगह उसके जैसी कई लड़कियों को जिंदगी के बुनियादी अधिकार भी नहीं मिलते...सबसे पहला अधिकार...सोचने का...गलतियाँ करने का, और अपनी गलतियों से सीखने का।वो अपनेआप को बड़ी खुशकिस्मत महसूस करती है और आज़ाद भी...पंखों में कितनी जान है उसे अब पता चलता है। ऐसे में अगर आसमान नापने का मन करता है तो क्या गलत करता है।
ऐसे में लगता है कि जिंदगी बेहद हसीं है,जीने का मन करता है, कुछ कर दिखने का ज़ज्बा उसमें करवट बदलने लगता है। कुछ वक़्त बीतता है और कालेज से बाहर आकर उसने असली जिंदगी देखी है...जिंदगी जिसमें हज़ारों और चीज़ें हैं, उसका काम है, एक जिम्मेदारी है, salary के पैसों को खर्च करने का प्लान है। घर जाना है किसके लिए क्या लूँ, सारा बाज़ार ख़रीद लाती है।बहुत अच्छा लगता है उसे इस तरह सब के लिए कुछ कुछ करना।
इस आजादी कि आदत तो नहीं पड़ती है पर उसका नज़रिया बदल जाता है बहुत सी चीजों को लेकर। इस बदले नज़रिये में एक शादी के प्रति नज़रिया भी है। पुरुष जाति के जिन नमूनों से वो मिली है उसे लगता है कि किसी के साथ जिंदगी बिताना कितना मुश्किल होगा। अपने घर पे हमेशा से एक अच्छी बेटी बनी रही है। उसका वजूद बस एक बेटी बनने मे सिमटा हुआ था। पहली बार उसे अपने नारीत्व का अहसास हुआ है और उसे लगा है कि जिंदगी भर साथ बिताने वाला कोई भी इन्सान नहीं हो सकता। उसके मन में कल्पनाएँ भी उभरने लगती हैं उस अनजान से शख्स के प्रति। कोई ऐसा जो उसे समझे...उसके सपने देखे, कोई ऐसा जो उसे उसकी उड़ान दे,पर कटने कि कोशिश ना करे।
उसकी आंखों में एक घर का सपना पलने लगता है। उसका अपना घर, जो किसी कि बाहों के इर्द गिर्द होने से बँटा है। उसके कई दोस्त होते हैं,दोस्त जो उसकी जिंदगी में उतने ही जरुरी होते हैं जैसे किसी भी लड़के कि जिंदगी में होते हैं। उसकी अपनी एक दुनिया होती है, अपने सपने होते हैं।वो चाहती है की जिंदगी का ये हिस्सा उसके साथ रहे जैसे लड़कों के साथ रहता है। वो अपने दोस्त खोना नहीं चाहती, पर वो जानती है उसे कोई नहीं समझने की कोशिश करेगा.
एक दिन इन्ही अनजान रास्तों पर खुशियों के पीछे दौड़ता हुआ एक शख्स मिलता है, ये उसके सपनो का राजकुमार तो नहीं है पर उसके साथ जिंदगी बहुत अच्छी लगने लगती है। अपनी खुशियाँ अपने डर, अपनी बेबसी सब वो उससे बाँट सकती है। वो बहुत अलग है बाक़ी लोगों से...थोडा सा पागल, बिल्कुल उसकी तरह। उसे पता भी नहीं चलता है कब वो अनजान सा लड़का उसकी जिंदगी का अटूट हिस्सा बन जता है जिसके बिना जीना नामुमकिन लगता है।
जिंदगी एक दोराहे पर खडी हो जाती है...उसे प्यार हो चुका है और वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती इस बारे मे...बस सोच सकती है कि शायद घर वाले मान जाएँ। निर्णय लेने का दिन आता है। हिम्मत करके उसे अपने पापा के सामने बात रखी है, उसे लगा था कि पापा मान जायेंगे, आख़िर आज तक पापा कि दुलारी बेटी रही है, जो माँगा है पापा ने हमेशा दिया है, आज भी दे देंगे।
डरते डरते वो पापा से बात करती है, सारी बात रखने की कोशिश करती है, पर सदियों पुरानी रूढियाँ पैरों में जंजीर बन के लिपट जाती हैं, वो कोशिश करती है, समझाने कि। पर सच यूं ही सच नही होता..सच को सच बनने के लिए दो लोगों कि जरुरत पड़ती है...एक जो सच बोल सके और दूसरा जो सच सुन सके। उसकी आंखों में नज़र आते समंदर को सिर्फ आंसू समझने कि गलती करते हैं पापा। ये तूफ़ान नहीं दिखता है उन्हें। ये नहीं दिखता कि इस तूफ़ान से उसकी सारी जिंदगी तबाह हो जायेगी। विश्वास सिर्फ पापा का ही नहीं टूटता है उसका भी टूटा है...किससे कहे अब, कौन सुनेगा। पर फिर भी एक उम्मीद है कि बात पक्की करने के पहले एक बार उससे बात की जायेगी।
वो इंतज़ार करती रहती है, सिर्फ इतना कि एक बार मेरी बात सुन लो और कुछ नहीं चाहिऐ, मत मिलो उससे, नहीं जानो कि मेरी पसंद कैसी है पर दिन में ये जो तूफ़ान उठा है एक बार उसकी आहट तो सुनने की कोशिश करो। मत बदलो अपने आप को पर एक ईमानदार कोशिश तो करो मुझे समझने की ।
माँ का फरमान आता है...तुम्हें वहीँ शादी करनी होगी जहाँ हम कहेंगे। उसको भूल जाओ। एक कोशिश भी नहीं ये जानने की कि ये "उसको" है कौन, कैसा दिखता है क्या करता है, एक बार कोशिश भी नहीं देखने की की आख़िर बेटी ने उसे पसंद क्यों किया। प्यार की कोई कीमत नहीं, आपसी समझ की कोई कद्र नहीं। कद्र है तो बस बरसो पुराने सामाजिक नियमों की, जो इतने पुराने हो गए हैं कि दम घुटता है ऐसे परिवेश में।
उसे पता नहीं है की इन्केलाब कितनी बार ऐसे स्तिथि में आया है। वो बस ये जानना चाहती है की आख़िर जो उनके बस मैं है वो करते क्यों नहीं। उसके सवालों का जवाब तो दे दें। सिर्फ जातिगत अधार पर किसी व्यक्ति को खुद को साबित करने का मौका भी नहीं देना...ये कहॉ का इंसाफ़ है। वो मरती हुयी आंखें अपनी माँ की तरफ उठाती है, आत्मा के टुकड़े दिखते हैं आंखों में, दर्द पिघल कर बहता रहता है पर राहत नहीं होती। बेटी मर जाये परवाह नहीं है, बेटी खुश नहीं रहेगी परवाह नहीं है, परवाह है तो बस झूठी शान की। उसपर ये कहना की सब अपने लिए सोचते हैं। अगर बेटी अपने लिए सोच रही है तो क्या माँ पिता नहीं सोचते।
पढा लिखा के इस तरह बलि चढ़ाने के लिए बड़ा किया था, वो भी इस नपुंसक समाज के लिए, जिसकी रीढ़ की हड्डी नहीं है। वो सब से लड़ सकती ही पर अपने घर में जंग हार जाती है। कहते हैं ना औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है, माँ ही नहीं मानेगी तो पापा को समझने को रह क्या जाता है। बहरों को फरियाद सुनाने से क्या फायदा। आख़िर ये जिंदगी उसकी है, माँ पिता तो बस एक दिन में छुट्टी पा जायेंगे, समाज का काम एक दिन आके खाना खाना है पर उस इन्सान के साथ जिसे जीवन बीतना है उसकी राय की कोई परवाह नहीं। शादी के फैसले में सबको बोलने का हक है सिवाय उस बेचारी के। उसका दिमाग खराब हो गया है पढ़ लिख के ना...
उसने बहुत कोशिश की बताने की, माँ को पापा को, पर कोई सुने भी तब ना। चीख चीख के कहती रही की उसके बिना मर जायेगी पर नहीं। आख़िर वो झुक गयी, आख़िर कब तक अपनी आंख के सामने माँ को दीवार में सर पटकते देख सकती थी। कब तक एपने पापा के आंसू देखती। इस सब में उसके आंसू किसी ने नहीं देखे। तुम रोती हो तो आंसू है और मेरे आंसू पानी। कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके दिल पे क्या बीत रही है। सारे लोग तैयार हैं उसके मरने का जश्न मनाने के लिए। कोई नहीं पूछेगा की बेटा आप कैसी है...खुश तो छोड़ ही दो। जिंदा है कि नहीं ये देखने की परवाह नहीं है। चाहे उसकी अर्थी उठ जाये, जब तक परिवार की इज़्ज़त नहीं उछली सब खुश हैं...पर कुछ दिन बाद उस लडकी को अहसास होता है की इस बलिदान की जरुरत नहीं है। ये भगवान् नहीं हैं। वो क्यों इनके लिए खुद जान दे।
एक दिन दर्द हद से ज्यादा बढ जाता है। आंसू बर्दाशत नहीं होते। इतने दिन रो के कोई असर नहीं हुआ तो हर मान ली उसने। एक दिन अचानक से लगा कि वो नहीं मरेगी...इनके लिए तो बिल्कुल ही नहीं। अपने सपने दिखते हैं उसे। उस दिन अचानक से वो निर्णय ले लेती है...बस थोडा सा सामान, पैसे और दो जोडी कपडे...
निकल जाती है वो अपना आसमान तलाश करने के लिए...
ये आसमान किसी की बाहों में हो जरुरी नहीं...उसका खुद का आसमान भी हो सकता है...अपनी जिंदगी...अपनी शर्तों पर...भीख में मांगी हुयी नहीं...हर साँस पर किसी के अह्सानों का बोझ नहीं...खुली हवा...खुला आसमान
आप कहेंगे उसने बेवकूफी की...गलती की...गलत किया
पर एक बार उसकी तरफ से देखिए, ऐसी लडकियां अपने आप से नहीं पैदा होती, ये इसी समाज से बनती हैं...
self made woman- स्वनिर्मित...अपना भविष्य अपने हाथ में ले कर...अपने गलत निर्णय की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार।
ऐसी लड़कियों की हिम्मत...समझदारी...जोश और जूनून ही नए समाज की नींव रखता है...
मेरा सलाम... ऐ भागी हुयी लडकी
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