18 June, 2007

देर आयद

आठ ही बिलियन उम्र जमीं की होगी शायद
ऐसा ही अंदाजा है कुछ साइंस का
चार आशारिया छः बिलियन सालों की उम्र तो बीत चुकी है
कितनी देर लगा दी तुमने आने में
और अब मिल कर
किस दुनिया की दुनियादारी सोच रही हो
किस मज़हब और जात पात की फिक्र लगी है
आओ चलें अब ----
तीन ही बिलियन साल बचे हैं !

कल CP में भटकते हुये गुलज़ार की "रात पश्मीने की" खरीदी...ये कविता मुझे बहुत पसंद आयी...सो लिख दी...

1 comment:

  1. YEH KITAB MERE PASS BH H.....ISKO PADNA PEEDHA K SAMAY M PRAYER KARNE JAISA H RAHA
    KHUDA POEM MERE FAV H

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