आठ ही बिलियन उम्र जमीं की होगी शायद
ऐसा ही अंदाजा है कुछ साइंस का
चार आशारिया छः बिलियन सालों की उम्र तो बीत चुकी है
कितनी देर लगा दी तुमने आने में
और अब मिल कर
किस दुनिया की दुनियादारी सोच रही हो
किस मज़हब और जात पात की फिक्र लगी है
आओ चलें अब ----
तीन ही बिलियन साल बचे हैं !
कल CP में भटकते हुये गुलज़ार की "रात पश्मीने की" खरीदी...ये कविता मुझे बहुत पसंद आयी...सो लिख दी...
YEH KITAB MERE PASS BH H.....ISKO PADNA PEEDHA K SAMAY M PRAYER KARNE JAISA H RAHA
ReplyDeleteKHUDA POEM MERE FAV H