धूप से कुम्हलाता पौधा देखा है? जो कहीं थोड़ी सी छाँव तलाशता दिखे? कैसे पता होता है पौधे को कि छाँव किधर होगी... उधर से आती हवा में थोड़ी रौशनी कम होगी, थोड़ी ठंड ज़्यादा? किसी लता के टेंड्रिल हवा में से माप लेंगे थोड़ी छाँव?
भरी दुनिया की तन्हाई और उदासी में में तुम्हें कैसे तलाशती हूँ? ज़रा तुम्हारी आवाज़ का क़तरा? सालों से उतने की ही दरकार है।
हम ख़ुद को समझाते हैं, कि हमें आदत हो गयी है। कि हम नहीं चाहेंगे ज़रा कोई हमारा हाल पूछ ले। कि नहीं माँगेंगे किसी के शहर का आसमान। लेकिन मेरे सपनों में उसके शहर का समंदर होता है। मैं नमक पानी के गंध की कमी महसूस करती हूँ। बहुत बहुत दिन हो गए समंदर देखे हुए।
आज बहुत दिन बाद एक नाम लिया। किसी से मिली जिसने तुम्हें वाक़ई देखा था कभी। ऐसा लगा कि तुम्हारा नाम कहीं अब भी ज़िंदा है मुझमें। हमें मिले अब तो बारह साल से ऊपर होने को आए। बहुत साल तक whatsapp में तुम्हारी फ़ोटो नहीं दिखती थी, अब दिखने लगी है। मैं कभी कभी सोचती हूँ कि तुमने शायद अपने फ़ोन में मेरा नम्बर इसलिए सेव करके रखा होगा कि ग़लती से उठा न लो। तुम मेरे शहर में हो, या कि तुम्हारे होने से शहर मेरा अपना लगने लगा है? मुझे ज़िंदगी पर ऐतबार है...कभी अचानक से सामने होगे तुम। शायद हम कुछ कह नहीं पाएँगे एक दूसरे से। मैंने बोल कर तक़रीबन बारह साल बाद तुम्हारा नाम लिया था...पहली बार महसूस किया। हम किस तरह किसी का नाम लेना भूल जाते हैं।
ईश्वर ने कितनी गहरी उदासी की स्याही से मेरा मन रचा है। धूप से नज़र फेर लेने वाला मिज़ाज। बारिश में छाता भूल जाने की उम्र बीत गयी अब। आज एक दोस्त अपने किसी दोस्त के बारे में बता रहा था जिसकी उम्र 38 साल थी, मुझे लगा उसका दोस्त कितना उम्रदराज़ है। फिर अपनी उम्र याद करके हँसी आयी। मैंने कहा उससे, अभी कुछ ही साल पहले 40s वाले लोग हमसे दस साल बड़े हुआ करते थे। हम अब उस उम्र में आ गए हैं जब दोस्तों के हार्ट अटैक जैसी बातें सुनें... उन्हें चीनी कम खाने की और नियमित एक्सर्सायज़ करने की सलाह दें। जो कहना चाहते हैं ठीक ठीक, वो ही कहाँ कह पाते हैं। कि तुम्हारे होने से मेरी ज़िंदगी में काफ़ी कुछ अपनी जगह पर रहता है। कि खोना मत। कि मैं प्यार करती हूँ तुमसे।
अब वो उम्र आ गयी है कि कम उम्र में मर जाने वाले लोगों से जलन होने लगे। मेरे सबसे प्यारे किरदार मेरी ज़िंदगी के सबसे प्यारे लोगों की तरह रूठ कर चले गए हैं, बेवजह। अतीत तक जाने वाली कोई ट्रेन, बस भी तो नहीं होती।
क़िस्से कहानियों के दिन बहुत ख़ूबसूरत थे। हर दुःख रंग बदल कर उभरता था किसी किरदार में। मैं भी तलाशती हूँ दुआएँ बुनने वाले उस उदास जुलाहे को। अपने आत्मा के धागे से कर दे मेरे दिल की तुरपाई भी। लिखना हमेशा दुःख के गहरे स्याह से होता था। लेकिन मेरे पास हमेशा कोरे पन्ने हुआ करते थे। धूप से उजले। इन दिनों इतना दुःख है कि अंधेरे में मॉर्फ़ कर जाता है। देर रात अंधेरे में भी ठीक ठीक लिखने की आदत अब भी बरक़रार है। लेकिन अब सुबह उठ कर भी कुछ पढ़ नहीं पाती। स्याह पन्ने पर स्याह लिखाई दिखती नहीं।
नींद फिर से ग़ायब है। इन रातों को जागे रहने का अपराध बोध भी होता है। कि जैसे आदत बनती चली गयी है। बारह से एक से दो से तीन से चार से पाँच से छह बजने लगते हैं। मैं सो नहीं पाती। इन दिनों कार्पल टनल सिंड्रोम फिर से परेशान कर रहा है। सही तरीके से लिखना ज़रूरी है। पीठ सीधी रख के, ताकि नस न दबे। spondilytis के दर्द वाले बहुत भयानक दिन देखे हैं मैंने। सब उँगलियों की झनझनाहट से शुरू होता है।
पिछले कई महीनों से बहुत ख़ूबसूरत काग़ज़ देखा था ऐमज़ान पर। लेकिन इंपोर्ट ड्यूटी के कारण महँगा था काफ़ी। सोच रहे थे अमरीका जाएँगे तो ख़रीद लेंगे। फिर ये भी लगता रहा, इतने ख़ूबसूरत काग़ज़ पर किसे ख़त लिखेंगे। आइवरी रंग में दो फ़िरोज़ी ड्रैगनफ़्लाई बनी हुई हैं। आज ख़रीद लिया। फिर चेरी ब्लॉसम के रंग की जापानी स्याही ख़रीदी, गुलाबी। जब काग़ज़ आएगा तो शायद कोई इजाज़त दे भी दे, कि लिख लो ख़त मुझे। तुम्हें इतना अधिकार तो दे ही सकते हैं।
मेरी चिट्ठियों से प्यार हो जाता है किसी को भी...क्या ही कहूँ, मनहूस भी नहीं कह सकती उन्हें...बेइमानी होगी।
आज फ़राज़ का शेर पढ़ा कहीं। लगा जान चली ही जाएगी अब।
"दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता"
मुझे प्यार मुहब्बत यारी दोस्ती कुछ नहीं चाहिए। जब ऑर्डर वाला काग़ज़ आ जाए, मुझे ख़त लिखने की इजाज़त दे देना, बस।
प्यार।
आज बहुत दिन बाद एक नाम लिया। किसी से मिली जिसने तुम्हें वाक़ई देखा था कभी। ऐसा लगा कि तुम्हारा नाम कहीं अब भी ज़िंदा है मुझमें। हमें मिले अब तो बारह साल से ऊपर होने को आए। बहुत साल तक whatsapp में तुम्हारी फ़ोटो नहीं दिखती थी, अब दिखने लगी है। मैं कभी कभी सोचती हूँ कि तुमने शायद अपने फ़ोन में मेरा नम्बर इसलिए सेव करके रखा होगा कि ग़लती से उठा न लो। तुम मेरे शहर में हो, या कि तुम्हारे होने से शहर मेरा अपना लगने लगा है? मुझे ज़िंदगी पर ऐतबार है...कभी अचानक से सामने होगे तुम। शायद हम कुछ कह नहीं पाएँगे एक दूसरे से। मैंने बोल कर तक़रीबन बारह साल बाद तुम्हारा नाम लिया था...पहली बार महसूस किया। हम किस तरह किसी का नाम लेना भूल जाते हैं।
ईश्वर ने कितनी गहरी उदासी की स्याही से मेरा मन रचा है। धूप से नज़र फेर लेने वाला मिज़ाज। बारिश में छाता भूल जाने की उम्र बीत गयी अब। आज एक दोस्त अपने किसी दोस्त के बारे में बता रहा था जिसकी उम्र 38 साल थी, मुझे लगा उसका दोस्त कितना उम्रदराज़ है। फिर अपनी उम्र याद करके हँसी आयी। मैंने कहा उससे, अभी कुछ ही साल पहले 40s वाले लोग हमसे दस साल बड़े हुआ करते थे। हम अब उस उम्र में आ गए हैं जब दोस्तों के हार्ट अटैक जैसी बातें सुनें... उन्हें चीनी कम खाने की और नियमित एक्सर्सायज़ करने की सलाह दें। जो कहना चाहते हैं ठीक ठीक, वो ही कहाँ कह पाते हैं। कि तुम्हारे होने से मेरी ज़िंदगी में काफ़ी कुछ अपनी जगह पर रहता है। कि खोना मत। कि मैं प्यार करती हूँ तुमसे।
अब वो उम्र आ गयी है कि कम उम्र में मर जाने वाले लोगों से जलन होने लगे। मेरे सबसे प्यारे किरदार मेरी ज़िंदगी के सबसे प्यारे लोगों की तरह रूठ कर चले गए हैं, बेवजह। अतीत तक जाने वाली कोई ट्रेन, बस भी तो नहीं होती।
क़िस्से कहानियों के दिन बहुत ख़ूबसूरत थे। हर दुःख रंग बदल कर उभरता था किसी किरदार में। मैं भी तलाशती हूँ दुआएँ बुनने वाले उस उदास जुलाहे को। अपने आत्मा के धागे से कर दे मेरे दिल की तुरपाई भी। लिखना हमेशा दुःख के गहरे स्याह से होता था। लेकिन मेरे पास हमेशा कोरे पन्ने हुआ करते थे। धूप से उजले। इन दिनों इतना दुःख है कि अंधेरे में मॉर्फ़ कर जाता है। देर रात अंधेरे में भी ठीक ठीक लिखने की आदत अब भी बरक़रार है। लेकिन अब सुबह उठ कर भी कुछ पढ़ नहीं पाती। स्याह पन्ने पर स्याह लिखाई दिखती नहीं।
नींद फिर से ग़ायब है। इन रातों को जागे रहने का अपराध बोध भी होता है। कि जैसे आदत बनती चली गयी है। बारह से एक से दो से तीन से चार से पाँच से छह बजने लगते हैं। मैं सो नहीं पाती। इन दिनों कार्पल टनल सिंड्रोम फिर से परेशान कर रहा है। सही तरीके से लिखना ज़रूरी है। पीठ सीधी रख के, ताकि नस न दबे। spondilytis के दर्द वाले बहुत भयानक दिन देखे हैं मैंने। सब उँगलियों की झनझनाहट से शुरू होता है।
पिछले कई महीनों से बहुत ख़ूबसूरत काग़ज़ देखा था ऐमज़ान पर। लेकिन इंपोर्ट ड्यूटी के कारण महँगा था काफ़ी। सोच रहे थे अमरीका जाएँगे तो ख़रीद लेंगे। फिर ये भी लगता रहा, इतने ख़ूबसूरत काग़ज़ पर किसे ख़त लिखेंगे। आइवरी रंग में दो फ़िरोज़ी ड्रैगनफ़्लाई बनी हुई हैं। आज ख़रीद लिया। फिर चेरी ब्लॉसम के रंग की जापानी स्याही ख़रीदी, गुलाबी। जब काग़ज़ आएगा तो शायद कोई इजाज़त दे भी दे, कि लिख लो ख़त मुझे। तुम्हें इतना अधिकार तो दे ही सकते हैं।
मेरी चिट्ठियों से प्यार हो जाता है किसी को भी...क्या ही कहूँ, मनहूस भी नहीं कह सकती उन्हें...बेइमानी होगी।
आज फ़राज़ का शेर पढ़ा कहीं। लगा जान चली ही जाएगी अब।
"दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता"
मुझे प्यार मुहब्बत यारी दोस्ती कुछ नहीं चाहिए। जब ऑर्डर वाला काग़ज़ आ जाए, मुझे ख़त लिखने की इजाज़त दे देना, बस।
प्यार।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मंगलवार 27अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteदिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
ReplyDeleteऔर तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता"
बेहतरीन..
सादर..
इश्क मुहब्बत को इतने रूमानी अंदाज़ में लिखा जा सकता है ये आपको पढ़कर और बार बार पढ़कर सीखा ज्जा सकता है | पुस्तक मेला में देखा था आपको | हिम्मत ही नहीं हुई बात कहने करने की | यहां पढ़ कर मुलाक़ात हो जाती है आपसे | लिखती रहिये
ReplyDeleteपुस्तक मेला मैं हर बार किताबें ख़रीदने जाती हूँ। यहाँ बंगलोर में अपने पसंद की किताबें नहीं मिलतीं, हिंदी तो कुछ भी नहीं। लेकिन उसके सिवा लोगों से मिलना जुलना, किताबों कहानियों पर बातें करना भी बहुत अच्छा लगता है। हर बार कुछ नए लोगों से मिलती हूँ और अच्छा लगता है कि लिखना पढ़ना बचा रहेगा। बहुत कुछ सीखती हूँ लोगों से मिल कर। आप तो इतने साल से पढ़ रहे हैं मुझे, हिंदी ब्लॉगिंग के शुरुआती दिनों से... जब हम एक बिल्ली को कार से चीप नहीं सकते, तो लोगों के साथ तो क्या ही बुरा करेंगे। टोक कर बात कर लेनी चाहिए थी आपको। अगली बार कहीं दिखूँ तो टोक दीजिएगा। हम बहुत ही भले और नॉन-ख़तरनाक क़िस्म के इंसान हैं। किसी से भी पूछ लीजिए जो हमसे मिला/मिली हो। हिंदी ब्लॉगिंग के तो कई लोग मिलते हैं मेले में। बस नाम भूल जाने की बीमारी है थोड़ी। कुछ लोगों का नाम याद होने में एक दो साल लगा।
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