कैफ़े कॉफ़ी डे हमारे लिए एक सपने जैसी जगह थी। वहाँ कॉफ़ी महँगी मिलती थी लेकिन वहाँ बैठे हुए इर्द गिर्द लोग आपको घूर घूर के ऐसे नहीं देखते थे जैसे कि आप जेल से भागे हुए अपराधी हों। अभी से दस पंद्रह साल पहले देश में ऐसी किसी जगह का होना कल्पनातीत था। यहाँ चोरी छिपे नहीं, सुकून से बैठ सकते थे। हम में से कई लोग सीसीडी डेट पर गए हैं, किसी के साथ अकेले, बिना डरे हुए। CCD जाने के लिए डबल डेट की ज़रूरत नहीं पड़ती थी…कि साथ में किसी सहेली और उसके ही किसी दोस्त को लेकर जाना पड़ा हो। ये एक नए क़िस्म का कॉन्फ़िडेन्स था, जो इस बात से भी आता था कि हम इतने पैसे कमा रहे हैं कि इतनी महँगी कॉफ़ी अफ़ॉर्ड कर सकते हैं। ये अभी भी ऐसा था कि घर बताने पर डाँट पड़ सकती थी कि तुम लोग को पैसा बर्बाद करने में मन लगता है। हमारे लिए कैफ़े कॉफ़ी डे हमारी व्यक्तिगत आज़ादी का पहला पड़ाव था। हमारी पसंद की ड्रिंक थी, एक ड्रिंक से जुड़ी यादें थीं और बहुत कुछ था जो कि क़िस्से कहानियों जैसा था।
बहुत साल पहले मैंने कैफ़े कॉफ़ी डे में कॉर्प्रॉट कम्यूनिकेशन डिपार्टमेंट में काम किया था। वहाँ जा कर नयी बातें पता चलीं कि जैसे हर नए एम्प्लॉई को, चाहे वो किसी भी लेवल पर नौकरी शुरू करे… एक हफ़्ते तक किसी कॉफ़ी डे के कैफ़े में काम करना होता है। वहाँ आपको कॉफ़ी बनाने की बेसिक ट्रेनिंग, लोगों को सर्व करने की ट्रेनिंग और थोड़ा बहुत बिलिंग के बारे में भी बताया जाता है। ये चीज़ अच्छी लगी कि नौकरी शुरू करने के पहले ठीक ठीक मालूम चला कि हम असल में क्या बनाने/बेचने की कोशिश कर रहे हैं। ये लोगों के बीच एक तरह के लेवल डिफ़्रेन्स को भी ख़त्म करता था। दिल्ली तरफ नॉर्मली CCD कहते हैं लेकिन साउथ में अधिकतर लोग इन्हें कॉफ़ी डे कहते हैं। ऑफ़िस क़ब्बन पार्क के पास एक बड़ी ख़ूबसूरत सी काँच की बिल्डिंग में था। यहाँ रह कर ये भी पता चला कि कॉफ़ी डे की कॉफ़ी उनके अपने कॉफ़ी एस्टेट से आती है। इनका फ़र्नीचर बनाने की भी अपनी सिस्टर कम्पनी थी। इसके अलावा इन कॉफ़ी डे के एस्टेट्स में इनके लक्ज़री रीसॉर्ट्स भी थे। The Serai Resorts. बाक़ी चीज़ों के अलावा वहाँ काम करने की सबसे अच्छी बात लगती थी कि उन दिनों ऑफ़िस में कैफ़े कॉफ़ी डे की ही मशीन थी और हम जितना मर्ज़ी चाहे कैपचीनो पी सकते थे। ऑफ़िस कैंटीन में सब कुछ चालीस प्रतिशत डिस्काउंट पे मिलता था। मेरी पसंदीदा थी ब्राउनी… जिसे हम तक़रीबन रोज़ खारीदते थे और दो तीन लोग मिल कर खाते थे। फिर उस कैलोरी को जलाने के लिए आठवें तल्ले के ऑफ़िस तक सीढ़ियाँ चढ़ के जाते थे। मैंने वहाँ काम करते हुए शाम पर ख़ूब सारी कविताएँ लिखी थीं।
वीजी सुरेश को बस एक बार पास से देखने का मौक़ा लगा था। ऑफ़िस के ही किसी मीटिंग में, बाक़ी लोग थे, मैं काफ़ी जूनियर थी तो मैं बस सुनने गयी थी। एक आध बार लिफ़्ट तक आते जाते या ग्राउंड फ़्लोर पर भी वे दिखे थे। पर्सनली तो बस, इतना सा ही देखना-सुनना था।
परसों जब उनके लापता होने की ख़बर आयी थी तो उनके सकुशल मिल जाने की प्रार्थना बेमानी होते हुए भी की थी। नेत्रावती नदी के पुल पर उन्होंने गाड़ी रुकवायी और ड्राइवर को बोला कि वे टहल कर आते हैं। आज उनका शव मिला है। सूचना के इस दौर में किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि जिनकी हँसती हुयी तस्वीरें हमेशा देखी हैं उनका मृत शरीर नहीं देखना चाहेंगे। लेकिन पानी से निकाले उनके शव की वीडियो स्क्रोल करने पर भी फ़ीड में दिख गयी। मुझे बार बार मीडिया एथिक्स का क्लास याद आता है। वहाँ सीखी हुयी छोटी छोटी बातें हमारी ज़िंदगी को थोड़ा सुंदर बनाए रख सकती हैं। जैसे कि उन दिनों किसी भी अख़बार में मृत लोगों की तस्वीरें फ़्रंट पेज पर नहीं छापते थे। या जिन तस्वीरों में बहुत ख़ून हो, वे नहीं छापते थे। जिसने भी विडीओ बनाया, ज़ाहिर है, उसने कभी मीडिया एथिक्स का कोई क्लास नहीं किया था।
कैफ़े कॉफ़ी डे हमारा अपना ब्रैंड है। इसे देख कर गर्व महसूस होता था। अच्छा लगता था। कुछ सालों में दुनिया के कई देश में अलग अलग क़िस्म की कॉफ़ी पीने के बाद मेरा टेस्ट भी बदला… स्टारबक्स की कॉफ़ी और वहाँ का डेकोर भी अच्छा लगा। वहाँ का जैज़। फिर कैफ़े कॉफ़ी डे में हमेशा भीड़ रहती थी और मुझे एक शांत जगह चाहिए थी… इसलिए भी स्टारबक्स में ज़्यादा आने लगी। फिर भी कभी कभार जाना हो ही जाता था, किसी न किसी दोस्त से मिलने। CCD की आइरिश कॉफ़ी मुझे सबसे ज़्यादा पसंद थी। पेरिस में आइरिश कॉफ़ी ऑर्डर की … दिखने में यहाँ जैसे ही थी… क्रीम और स्ट्रॉ के साथ… एक सिप में मुँह जला लेने के बाद मैंने जाना कि CCD में जो कोल्ड आइरिश कॉफ़ी मिलती है, उससे इतर तरीक़े से दुनिया में आइरिश कॉफ़ी सर्व होती है। नॉर्मली आइरिश कॉफ़ी में ऐल्कहाल होता है। कॉफ़ी डे का लक्ज़री ब्राण्ड कॉफ़ी डे लाउंज जब लॉंच हुआ था तो मैं CCD में ही काम कर रही थी। इसके बने नए नए स्टोर में जा कर वहाँ के डेकोर वग़ैरह को देखना और मेन्यू के आइटम को चखने का इंतज़ार करना सब कुछ नया था। साउथ इंडिया में हम में से जितने लोग इधर लम्बी रोड ट्रिप पर जाते हैं, वे जानते हैं कि रास्ते में कॉफ़ी डे का लोगो दिखना कितना सुकूनदेह है… क्यूँकि वहाँ साफ़ बाथरूम होते हैं। अच्छी कॉफ़ी होती है और थोड़ी देर इतन्मीनान से रुकने की जगह होती है।
बहुत ज़्यादा रिपोर्ट्स नहीं पढ़ी और फ़ायनैन्सेज़ की बहुत ज़्यादा समझ नहीं है। लेकिन इतना ज़रूर लगता है कि कोई एक व्यक्ति बहुत मेहनत से एक भारतीय ब्रैंड बनाने की, उसे इस्टैब्लिश करने की कोशिश कर रहा था। जिस दौर में सारे ब्रैंड्ज़ इम्पोर्टेड हैं, जींस से लेकर पिज़्ज़ा तक, वहाँ कॉफ़ी डे हमारा अपना था। हमें बहुत उम्मीद थी। हो सकता है बैलेन्स शीट पर वे प्रोफ़िट में नहीं रहे हों… लेकिन उन्होंने कई भारतीयों की ज़िंदगी में एक ख़ास जगह बानायी है। हम अपने कॉफ़ी डे अनुभव को कभी भूल नहीं सकते। काश कि इन फ़ायनैन्शल मुसीबतों का कोई हल निकाला जा सकता। ऐसे किसी उद्यमी का आत्महत्या करना हम में से कई लोगों को निराश करता है। ख़ास तौर से उन लोगों को जो किसी ना किसी क्षेत्र में अपना कुछ बनाने की कोशिश कर रहे हों। कोई अपनी पहचान बना रहे हों। ट्विटर पर #taxterrorism भी देखा लेकिन मीडिया के पास उछालने वाली बातें हैं लेकिन ठीक से एक्सप्लेन करता हुआ आर्टिकल नहीं है कि असल में क्या हुआ था। क्या वाक़ई इस ब्राण्ड को बचाने का कोई तरीक़ा नहीं था।
इसका दूसरा हिस्सा पर्सनल है। इतने साल एक सफल उद्यमी होने के बाद भी अगर वीजी सुरेश को अपने अंतिम दिनों में लगा कि वे असफल रहे हैं तो इसके पीछे क्या कारण रहे हैं। क्या उनके फ़ायनैन्शल सलाहकार अच्छे नहीं थे… क्या उनके मित्र या परिवार में ऐसे लोग नहीं थे जो ऐसी परिस्थिति से लड़ने और बाहर निकल आने का कोई रास्ता सुझाते। It’s lonely at the top. वाक़ई इतनी ऊँचाई पर इतना अकेलापन था कि किसी पुल से कूद कर जान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
मेरे पास बहुत से सवाल हैं और इनका कोई जवाब नहीं। बस एक गहरी उदासी है। इस पोस्ट को लिखते हुए कई बार आँख भर आयी। कि कैफ़े कॉफ़ी डे सिर्फ़ एक कॉफ़ी बेचने वाली दुकान नहीं है… यहाँ बहुत मुहब्बत और कई सपने थे… रहेंगे।
वीजी सुरेश… हमारी ज़िंदगी में इस एक कप कॉफ़ी की मिठास को लाने का शुक्रिया। ईश्वर आपकी आत्मा को शान्ति दे और आपके परिजनों को इस मुश्किल वक़्त में हिम्मत दे।
सच कहा आपने दीदी, "कि कैफ़े कॉफ़ी डे सिर्फ़ एक कॉफ़ी बेचने वाली दुकान नहीं है… यहाँ बहुत मुहब्बत और कई सपने थे… रहेंगे। "
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