14 August, 2019

सपना। बर्फ़। तुम।

सुबह उठी थी तो भोर का टटका सपना था। बहुत साल पहले पूजा के लिए फूल तोड़ने जाती थी, दशहरा के समय तो फूल ऐसे लगते थे। रात की ओस में भीगे हुए। थोड़ी नींद में कुनमनाए तो कभी एकदम ताज़गी लिए मासूम आँखों से टुकुर टुकुर ताकते। सफ़ेद पाँच पत्तों वाले फूल। कई बार चम्पा। कभी कभी गंधराज भी। मुझे सफ़ेद पत्तों वाले फूल बहुत पसंद रहे। ख़ास तौर से अगर ख़ुशबू तो तो और भी ज़्यादा। आक, धतूरा... रजनीगंधा, हरसिंगार...

सपने में तुम्हारा शहर था। मैं पापा और कुछ परिवार के लोगों के साथ अचानक ही घूमने निकल गयी थी। तुम्हारा शहर मेरे सपने में थोड़ा क़रीब था, वहाँ बिना प्लान के जा सकते थे। तुम समंदर किनारे थे। तुमने चेहरे पर कोई तो फ़ेस पेंटिंग करा रखी थी...चमकीले नीले रंग की। या फिर कोई फ़ेस मास्क जैसा कुछ था। तुम्हारी बीवी भी थी साथ में। हम वहाँ तुमसे मिले या नहीं, वो याद नहीं है।

मेट्रो के दायीं तरफ़ एक बहुत बड़ा सा म्यूज़ीयम था। आर्ट म्यूज़ीयम। घर के सारे लोग जाने कहाँ गए, मैं अकेली वहाँ अंदर चली गयी। वहाँ अद्भुत पेंटिंग्स थीं। आकार में भी काफ़ी बड़ीं और बेहद ख़ूबसूरत थीम्ज़ पर। मैं म्यूज़ीयम के सबसे ऊपर वाले फ़्लोर पर थी और फिर जाने कैसे छत पर। इसी बीच कोई बदमाश बच्चा छत पर के टाइल्ज़ उखाड़ने लगा एक एक कर के। छत पर भगदड़ सी मच गयी क्यूँकि बाक़ी टाइल्स उखड़ने लगी थीं और लोग फिसल कर गिर सकते थे। तभी पुलिस आती है और लोगों को स्थिर होने को कहती है। लोग डिसप्लिन में एक दूसरे के पीछे क़तार में लग जाते हैं। पुलिस उस बच्चे को पकड़ लेती है और नीचे उतार देती है। सब लोग भी अलग अलग तरफ़ से छत से उतर आते हैं। मैं नीचे उतरती हूँ तो ध्यान जाता है कि मैंने इस गेट से एंटर नहीं किया था और इतने बड़े म्यूज़ीयम में कितने गेट हैं मुझे मालूम नहीं, न ही ये मालूम है कि उनमें से मेरा गेट कौन सा है कि उसी गेट पर मैंने अपनी जैकेट और बूट्स जमा किए हैं। आसपास भीड़ बहुत है। तब तक तुम कहीं से आते हो, मैं बताती हूँ कि मेट्रो के पास वो गेट है जिससे मैं अंदर गयी थी। तुम मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ उस भीड़ में से लिए चलते हो। साथ में हमारे हाथ गर्म हैं, दस्ताने की ज़रूरत नहीं है। हम उस गेट से मेरे जूते और कोट लेते हैं। तुम कोट पहनने में मेरी मदद करते हो।

हम वहाँ से किसी इमारत की छत पर जाते हैं। हल्की ढलान वाली छत है। बर्फ़ पड़ी हुयी है लेकिन ठंड नहीं लग रही है। हम उस बहुत ऊँची इमारत की छत पर बैठे बैठे बहुत देर तक बातें करते हैं। मेरे पास एक दो मीठे टाको हैं जो मैंने एक कुकिंग शो में देखे थे। उनके अंदर फेरेरो रोचेर भरे हुए हैं। हम बहुत ख़ुश होकर वो खाते हैं। थक जाने पर हम दोनों ही उस छत पर पीठ के बल लेट जाते हैं, एक दूसरे के एकदम पास और आसमान देखते हैं। हमारे मुँह से भाप निकल रही होती है। हम फिर किसी चिमनी के पास थोड़ा टिक कर बैठते हैं। इस बार हम कुछ कह नहीं रहे हैं। हमने एक दूसरे को बाँहों में भरा हुआ है। हम अलविदा के लिए ख़ुद को तैय्यार कर रहे हैं। हम सपने में भी जानते हैं कि अब जाना है। तुम मुझे वहाँ से अपना घर दिखाते हो। बहुत ऊँचे फ़्लोर पर है, जहाँ लाइट जल रही है...कहते हो कि वहाँ से पूरा शहर दिखता है। मैं पूछती हूँ, ये छत और हम तुम भी... तुम कहते हो हाँ।

हम दोनों रुकना चाहते हैं एक दूसरे के पास, एक दूसरे के साथ... लेकिन सपने के किनारे धुँधलाने लगे हैं। हम थोड़ी और ज़ोर से पकड़ लेते हैं एक दूसरे का हाथ... आसपास सब कुछ फ़ेड हो रहा है। तुम भी धुँधला जाते हो और फिर सफ़ेद धुँध में घुल जाते हो। मेरी हथेली पर तुम्हारी गर्माहट मेरे धुँध में घुलते घुलते भी बाक़ी रहती है।

***
मैं जागती हूँ तो मेरी हथेली पर तुम्हारी गर्माहट और ज़ुबान पर चोक्लेट का हल्का मीठा स्वाद है। मैं पिछले काफ़ी दिनों से ख़ुद को कह और समझा रही हूँ कि मुझे तुम्हारी याद नहीं आती। कि न भी मिले तुमसे, तो कोई बात नहीं। लेकिन मेरे सपनों को इतनी समझ नहीं। तुमसे मिलना बेतरह ख़ुशी और बर्दाश्त से बाहर की उदासी लिए आता है। मैं जागती हूँ तो तुम्हें इतना मिस करने लगती हूँ कि दुखने लगता है सब कुछ। हूक उठती है और तुम्हें याद करने के सिवा और कोई ख़याल बाक़ी नहीं रहता।

जिनसे मन आत्मा का जुड़ाव रहता है, ऐसे लोग जीवन में बहुत कम मिलते हैं। ऐसा बार बार क्यूँ लगता है कि तुम किसी पार जन्म से आए हो? ऐसा मुझे सिर्फ़ बर्न जा के लगा था कि कोई ऐसी याद है जो इस जन्म के शरीर की नहीं, हर जन्म में एक, आत्मा की है।

मैं अब भी नहीं जानती कि तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो... क्या किसी सुबह तुम भी यूँ ही परेशान होते हो कि जिससे एक बार ही मिले हों, सिर्फ़, उसकी याद थोड़ी कम आनी चाहिए, नहीं?

***
Let's see each other again. Then, if you think we shouldn't be together, tell me so frankly... That day, six years ago, a rainbow appeared in my heart. It's still there, like a flame burning inside me. But what are your real feelings for me? Are they like a rainbow after the rain? Or did that rainbow fade away long ago?
-2046

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 14 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद

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