07 March, 2018

अलविदा के गीत

कुछ फ़िल्में हमें बहुत बुरी तरह अफ़ेक्ट करती हैं। हम नहीं जानते कौन सा raw nerve ending touch हो जाता है। कुछ एकदम कच्चा, ताज़ा, दुखता हुआ ज़ख़्म होता है। रूह में गहरे कहीं। हम उन दुखों के लिए रो देते हैं जो हमारे अपने नहीं हैं। रूपहले परदे पर की मासूमियत कैसा कच्चा ख़्वाब तोड़ती है। कौन से दुःख की शिनाख्त कराती है? क्या कुछ दुःख यूनिवर्सल होते हैं? जैसे बचपने की मृत्यु।

हम कितनी चीज़ें फ़ॉर ग्रंटेड लेते हैं। आज़ादी। प्रेम। दोस्ती।
किसी को प्रेम करने का अधिकार।

फ़िल्म सिम्फ़नी फ़ॉर ऐना का एक सीन भुलाए नहीं भूलता है मुझे...स्कूल के बच्चे हैं, कुछ चौदह साल के आसपास की उम्र के...उनके साथ ही पढ़ने वाले एक लीडर की गोली मार के हत्या कर दी गयी है। बच्चे उसके कॉफ़िन को हाथों में ले कर चल रहे हैं। यह दृश्य श्वेत श्याम में फ़िल्माया गया है। सब बच्चों की आँखों में आँसू हैं। उन्होंने आँखें झुका रखी हैं। वे रो रहे हैं। लेकिन जैसे जैसे क़ाफ़िला उनके पास आता है, वे हाथ उठा कर V का सिम्बल बना रहे हैं। विक्टरी का। जीत का। अपने साथी को विदा कहते हुए भी वे कहते हैं कि हम जीतेंगे। Ever onward, to victory! ऐना इस सीन को नैरेट कर रही होती है। वो कहती है कि उस दिन के बाद हम सब बदल गए। हम बड़े हो गए।

मैं इस फ़िल्म को देखने के बाद देर तक रोती रही थी। चौदह पंद्रह साल के बच्चे...उनके हिसाब के क्रांति के उनके आदर्श। चे ग्वारा के नारे लगाते। लड़ते एक बेहतर दुनिया के लिए। जिस उम्र में उन्हें ठीक से दुनिया समझ भी नहीं आती, उस उम्र में उन्हें अरेस्ट कर लिया जाता है और फिर वे 'गुम' हो जाते हैं। फ़िल्म में कहती है इसा, तुम 'अरेस्ट' कर ली गयी, क्यूँकि उन दिनों हमारे पास 'disappear' शब्द नहीं था। बच्चे जो ग़ायब कर दिए गए। मार दिए गए। लम्बे समय तक टॉर्चर किए गए। इनसे सत्ता को कितना ख़तरा हो सकता था।

फ़िल्म के ट्रेलर में एक गीत होता है जो मैं पहचान नहीं पाती हूँ। youtube पर एक कमेंट में सवाल पूछा है जिसका कल जवाब आया है। मैं देर तक उसी गाने को सुनती रही हूँ। वो एक इतालवी युद्ध गीत है, एल पासो देल एबरो एक लोकगीत...जो कई सालों से गाया जाता रहा है। युद्ध चिरंतर हैं।

कल रात मैं देर तक अर्जेंटीना के इस स्टेट टेररिज़म के बारे में पढ़ती रही। इसे डर्टी वार कहा गया है। गंदा युद्ध। इसमें विरोधी राजनीतिक ख़याल रखने वालों लोगों को, जिनमें बच्चे, छात्र, औरतें थीं, मारा गया, अपहृत किया गया और ग़ायब कर दिया गया। इस जीनोसाइड में लगभग तीस हज़ार लोग मारे गए। औस्वितज से गुज़रना आपको ज़िंदगी भर के लिए बदल देता है। कुछ ऐसे कि उस समय भी मालूम नहीं होता है। किसी भी क़िस्म की जीनोसाइड के साथ एक मृत्युगंध चली आती है। उँगलियों में, हथेलियों में, बर्फ़ पड़ते सीने में और मैं एक मानवता के बेहद स्याह पन्ने तक पहुँच जाती हूँ। पढ़ते हुए जानती हूँ कि जो बच्चे ग़ायब कर दिए गए, उन्हें याद रखे रखने के लिए की गयी कोशिशें हैं। उनकी माएँ टाउन स्क्वेयर जाती हैं, अब भी, हर बृहस्पतिवार और अपने ग़ायब किए गए बच्चों के बारे में जानकारी माँगती हैं। अर्जेंटीना के इस ग्रूप का नाम Mothers of the Plaza de Mayo है। 

अलविदा। कैसा दुखता शब्द है। फ़िल्म के आख़िरी फ़्रेम में कुछ विडीओ रेकॉर्डिंज़ हैं जो उस समय की गयी थीं जब Ana, Lito और Isa एक समंदर किनारे गए हैं और ख़ुश हैं। प्रेम में हैं। मुझे अलविदा के कुछ लम्हे याद आते हैं।

आख़िरी बात कहता है वो मुझे, 'Au revoir' कहते हैं फ़्रेंच में। इसका मतलब होता है, फिर मिलेंगे। मैं नहीं जानती मैं उसे कब मिलूँगी फिर। दुनिया बहुत बड़ी है और तन्हाई इतनी कि दुनिया भर में बिखर जाए और पूरी ना पड़े। हम फिर कब मिलेंगे?

दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर उसे आख़िरी बार देखा था। ट्रेन के मुड़ जाने तक। उस दिन को बारह साल हुए। मैंने उसकी एक तस्वीर भी नहीं देखी है। वो कहता है मुझसे उम्र भर नहीं मिलेगा। मैं नहीं जानती ज़िंदगी कितनी लम्बी है। मैं नहीं चाहती मेरे मर जाने के बाद उसे इस बात का अफ़सोस हो कि मुझे एक बार मिल लेना चाहिए था।

सुनते हुए मैं Bella Ciao तक पहुँचती हूँ। जंग के समय एक व्यक्ति अपनी ख़ूबसूरत महबूबा को अलविदा कह रहा है, यह कहते हुए कि अगर मैं मर गया तो मुझे उस पहाड़ी पर दफ़नाना और वहाँ पर एक ख़ूबसूरत फूल उगेगा मेरी क़ब्र पर तो सब कहेंगे कि कितना ख़ूबसूरत फूल है।

सुनते हुए मैं hasta siempre तक पहुँचती हूँ। चे ग्वेरा के फ़िदेल को लिखे आख़िरी ख़त जिसमें वो कहते हैं 'Until victory, always' के जवाब में गाया गाया ये गीत अपने कमांडर को अलविदा कहता है 'until forever'. चे की मृत्यु के बाद क्यूबा की क्रांति में ये गीत बहुत महत्वपूर्ण रहा। इसे सुनते हुए अपना इंक़लाब ज़िंदाबाद याद आता है।

चीज़ों के समझने का हमारा अलगोरिदम लॉजिकल नहीं होता। यादों के साथ कहाँ कौन सा रेशा जुड़ेगा हम नहीं जानते। मेरी परवरिश एक नोर्मल मिडल क्लास परिवार में हुयी। हमारे परिवार में राजनीति के लिए जगह नहीं रही। पापा ने अपने समय में जेपी आंदोलन में हिस्सा लिया, चाचा शाखा में जाते हैं मगर ये बात अब समझ में आयी। बचपन में बस ये याद है कि चाची उनके हाफ़ पैंट पहनने पर ग़ुस्सा करती थी। मैंने कभी कार्ल मार्क्स की किताबें नहीं पढ़ीं। हाँ, मोटरसाइकल डाइअरीज़ ज़रूर पढ़ी है...लेकिन उसमें चे सिर्फ़ ख़ुद को तलाशते और समझते एक घुमक्कड़, सहृदय, युवा डॉक्टर की तरह दिखे हैं मुझे।

युद्ध से मेरी पहली मुलाक़ात महाभारत में हुयी। दूसरी, पानीपत के युद्ध में और फिर गॉन विथ द विंड पढ़ते हुए। इतिहास हमें इतने बोरिंग तरीक़े से पढ़ाया जाता है कि किसी को अच्छा नहीं लगता। अगर पढ़ाई का तरीक़ा बदल दिया जाए तो इतिहास झूठी कहानियों से बहुत ज़्यादा रोचक लगेगा। इतनी बड़ी दुनिया में इतनी सारी चीज़ें मुझे नहीं समझ आती हैं। मैं थोड़ा थोड़ा सब कुछ समझने की कोशिश करती हूँ। मेरे दिल में प्रेम के बाद की बची हुयी जगह में एक बहुत बड़ा ख़ाली मैदान है।  वहाँ अलग अलग बंजारा ख़याल डेरा डालते हैं। इन दिनों कला की प्रदर्शनी उठ गयी है और टेक्नॉलजी और युद्ध अपने खेमे डाल रहे हैं।
Screenshot from Symphony for Ana

मैं तुम्हारी अधूरी चिट्ठियाँ जला देना चाहती हूँ।
मैं तुम्हारी आवाज़ मिस करती हूँ।
और तुम्हें।

अलविदा के शब्दों को लिख रखा है। आख़िरी बार कहूँगी तुमसे। कितनी भाषाओं में गुनगुनाते हुए...अलविदा।

Hasta Siempre
Bella Ciao
Au revoir

*ये लेख तथ्यात्मक रूप से ग़लत हो सकता है। यहाँ इतिहास की घटनाएँ मेरी याद्दाश्त में घुलमिल गयी हैं, और फिर विकिपीडिया पर बहुत ज़्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08.03.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2903 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  2. बहुत अच्छी रोचक प्रस्तुति
    कभी अलविदा न कहना

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अरे हुजूर वाह ताज बोलिए : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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