हम हर कुछ दिन में 'जिंदाबाद जिंदाबाद...ए मुहब्बत जिंदाबाद' कहते हुए इन्किलाबी परचम लहराने लगते हैं...इश्क कमबख्त अकबर से भी ज्यादा खडूस निकलता है और हमें उनके घर में जिन्दा चिनवाने की धमकी देता है...कि शहजादा ताउम्र किले की दीवार से सर फोड़ता फिरे कि जाने किस दीवार के पीछे हो अनारकली के दिल की आखिरी धड़कनें...शहजादा भी एकदम बुद्दू था...अब अगर प्यार इतनी ही बड़ी तोप चीज़ है तो थोड़े न अनारकली के मरने के बाद ख़त्म हो जाती...खैर...जाने दें, हमें तो अनारकली इसलिए याद आ गयी कि वो आजकल डिस्कोथेक के रस्ते में दिखने लगी है ऐसा गीत गा रहे हैं लोग.
ये रूहानी इश्क विश्क हमको समझ नहीं आता...हम ठहरे जमीनी इंसान...उतना ही समझ में आता है जितना सामने दीखता है अपनी कम रौशनी वाली आँखों से...किस गधे ने आँखों के ख़राब होने की यूनिट 'पॉवर' सेट की थे...कहीं मिले तो पीटें पकड़ के उसको. पॉवर बढ़ती है तो फील तो ऐसा होता है जैसे सुपरमैन की पॉवर हो...धूप में जाते ही बढ़ने लगी...पर होता है कमबख्त उल्टा...आँख की पॉवर बढ़ना मतलब आँख से और कम दिखना...कितना कन्फ्यूजन है...तौबा! खैर...हम बात कर रहे थे प्यार की...ये दूर से वाले प्यार से हम दूर ही भले...एक हाथ की दूरी पर रहो कि लड़ने झगड़ने में आराम रहे...गुस्सा-वुस्सा होने में मना लेने का स्कोप हो...खैर, आजकल हमारा दिल तीन चीज़ों पर आया हुआ है.
पहली चीज़...मेरी रॉकिंग चेयर...मैं कुछ नहीं तो पिछले चार साल में तो ढूंढ ही रही हूँ एक अच्छी रॉकिंग चेयर पर कभी मिलती ही नहीं थी. हमेशा कुछ न कुछ फाल्ट, कभी एंगिल सही नहीं...तो कभी बहुत छोटी है कुर्सी तो कभी आगे पैर रखने वाली जगह कम्फर्टेबल नहीं...तो फाईनली मैंने ढूंढना छोड़ दिया था कि जब मिलना होगा मिल जाएगा. इस वीकेंड हम सोफा ढूँढने चले थे और मिल गयी ये 'थिंग ऑफ़ ब्यूटी इज अ जॉय फोरेवर'. हाई बैक, ग्राफिक अच्छे, मोशन सही...झूलना एकदम कम्फर्टेबल. बस...हम तो ख़ुशी से उछल पड़े. बुक कराया और घर चले आये ख़ुशी ख़ुशी.
मंडे को कुर्सी घर आई और तब से दिन भर इसपर हम लगातार इतना झूला झूले हैं कि कल रात को हलके चक्कर आ रहे थे...जैसे तीन दिन के ट्रेन के सफ़र के बाद आते हैं. पर यार कसम से...क्या लाजवाब चीज़ है...इसपर बैठ कर फ़ोन पर बतियाना हो कि कुछ किताब पढना हो या कि ख्याली पुलाव पकाने हों...अहह...मज़ा ही कुछ और है. ये फोटो ठीक कुर्सी के आते ही खींची गयी है...पीछे में हमारा लैपटॉप...और कॉपी खुली है जिसमें कि कुछ लिख रहे थे उस समय.
दूसरी चीज़ जिसपर हमारा दिल आया हुआ है वो है ये कॉफ़ी मग...इसके कवर में एक बेहद प्यारी और क्यूट बिल्ली बनी हुयी है. इसकी छोटी छोटी आँखें...लाल लाल गाल और कलर कॉम्बिनेशन...सफेत पर काली-नीली...ओहो हो...क्या कहें. देखते साथ लगा कि ये बिल्ली तो हमें घर ले जानी ही होगी उठा कर. कल सुबह इस मस्त कप में कॉफ़ी विद हॉट चोकलेट पिया...कितना अच्छा लगा कि क्या बताएं. टेबल पर रखा भी रहे इतना अच्छा कॉफ़ी मग न तो उसे देख कर ही कुछ कुछ लिखने का मन करे. मुझे न अपने घर में वैसे तो ख़ास आर्डर की दरकार नहीं है. घर अधिकतर बिखरा हुआ ही रहता है...पर कुछ चीज़ें मुझे एकदम अपनी वाली चाहिए होती हैं, उसमें कोई कम्प्रमाइज नहीं कर सकती. जैसे चोकलेट या कॉफ़ी पीनी होगी तो अपने कॉफ़ी मग में ही पियूंगी...उसमें किसी और को कभी नहीं दूँगी. बहुत पजेसिव हूँ अपनी पसंदीदा चीज़ों को लेकर.
तीसरी चीज़ जिसके लिए हम एकदम ही पागल हो रखे हैं वो है हमारी नयी कलम...लिखने को लेकर हम वैसे भी थोड़े सेंटी ही रहते हैं. पहली बार हम खुद के लिए महंगा पेन ख़रीदे हैं...हमको अच्छे पेन से लिखना अच्छा लगता है...उसमें भी नीले या काले रंग के इंक से लिखने में मज़ा नहीं आता...इंक भी हमेशा कुछ दूसरा रंग ही अच्छा लगता है. ये मेरा पहला पार्कर है...इंक पेन...और रंग एकदम जैसा मुझे पसंद हो...पेन की बनावट भी ऐसी है कि लिखने में सुविधा होती है. निब एकदम स्मूथ...कागज़ पर फिसलता जाता है. गहरे गुलाबी-लाल रंग का पेन इतना खूबसूरत है कि लिखने के पहले मन करता है पेन पर ही कुछ लिख लें पहले. आजकल इसमें शेल पिंक इंक भरा हुआ है :) जिस दिन से पेन लायी हूँ...कॉपी में बहुत सारा कुछ जाने क्या क्या लिख लिया है.
संडे को नयी इंक भी खरीदी...ओरेंज क्रश...तो मेरे पास तीन अच्छी अच्छी कलर की इंक्स हो गयीं हैं...Daphne Blue, Shell Pink and Orange Crush. अधिकतर फिरोजी रंग से ही लिखती हूँ...मुझे बहुत अच्छा लगता है...खुश खुश सा रंग है, पन्ने पर बिखरता है तो नीला आसमान याद आता है...खुला खुला. पर पिछले कई दिनों से एक ही रंग से लिख रही थी और नारंगी रंग को उसी बार देख भी रखा था...नारंगी रंग भी अच्छा है...खुशनुमा...फ्रेश...बहार के आने जैसा. मैं अधिकतर इन दोनों रंग से लिख रही हूँ आजकल. फिर से चिट्ठी लिखने को मन कर रहा है...सोच रही हूँ किसको लिखूं. हरे रंग से लिखने का फिर कभी मूड आएगा तो लिखूंगी.
तो अगर आप मेरे घर आये हो...और मैं आपको अपनी रॉकिंग चेयर पर बैठने देती हूँ...और अपने फेवरिट मग में कॉफ़ी पेश करती हूँ और कॉपी देकर कहती हूँ...औटोग्राफ प्लीज...तो मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ...इसमें से एक भी मिसिंग है तो यु नो...वी आर जस्ट गुड फ्रेंड्स ;-) ;-)
ya ya...I am a materialistic girl! :-)
ये रूहानी इश्क विश्क हमको समझ नहीं आता...हम ठहरे जमीनी इंसान...उतना ही समझ में आता है जितना सामने दीखता है अपनी कम रौशनी वाली आँखों से...किस गधे ने आँखों के ख़राब होने की यूनिट 'पॉवर' सेट की थे...कहीं मिले तो पीटें पकड़ के उसको. पॉवर बढ़ती है तो फील तो ऐसा होता है जैसे सुपरमैन की पॉवर हो...धूप में जाते ही बढ़ने लगी...पर होता है कमबख्त उल्टा...आँख की पॉवर बढ़ना मतलब आँख से और कम दिखना...कितना कन्फ्यूजन है...तौबा! खैर...हम बात कर रहे थे प्यार की...ये दूर से वाले प्यार से हम दूर ही भले...एक हाथ की दूरी पर रहो कि लड़ने झगड़ने में आराम रहे...गुस्सा-वुस्सा होने में मना लेने का स्कोप हो...खैर, आजकल हमारा दिल तीन चीज़ों पर आया हुआ है.
पहली चीज़...मेरी रॉकिंग चेयर...मैं कुछ नहीं तो पिछले चार साल में तो ढूंढ ही रही हूँ एक अच्छी रॉकिंग चेयर पर कभी मिलती ही नहीं थी. हमेशा कुछ न कुछ फाल्ट, कभी एंगिल सही नहीं...तो कभी बहुत छोटी है कुर्सी तो कभी आगे पैर रखने वाली जगह कम्फर्टेबल नहीं...तो फाईनली मैंने ढूंढना छोड़ दिया था कि जब मिलना होगा मिल जाएगा. इस वीकेंड हम सोफा ढूँढने चले थे और मिल गयी ये 'थिंग ऑफ़ ब्यूटी इज अ जॉय फोरेवर'. हाई बैक, ग्राफिक अच्छे, मोशन सही...झूलना एकदम कम्फर्टेबल. बस...हम तो ख़ुशी से उछल पड़े. बुक कराया और घर चले आये ख़ुशी ख़ुशी.
मंडे को कुर्सी घर आई और तब से दिन भर इसपर हम लगातार इतना झूला झूले हैं कि कल रात को हलके चक्कर आ रहे थे...जैसे तीन दिन के ट्रेन के सफ़र के बाद आते हैं. पर यार कसम से...क्या लाजवाब चीज़ है...इसपर बैठ कर फ़ोन पर बतियाना हो कि कुछ किताब पढना हो या कि ख्याली पुलाव पकाने हों...अहह...मज़ा ही कुछ और है. ये फोटो ठीक कुर्सी के आते ही खींची गयी है...पीछे में हमारा लैपटॉप...और कॉपी खुली है जिसमें कि कुछ लिख रहे थे उस समय.
दूसरी चीज़ जिसपर हमारा दिल आया हुआ है वो है ये कॉफ़ी मग...इसके कवर में एक बेहद प्यारी और क्यूट बिल्ली बनी हुयी है. इसकी छोटी छोटी आँखें...लाल लाल गाल और कलर कॉम्बिनेशन...सफेत पर काली-नीली...ओहो हो...क्या कहें. देखते साथ लगा कि ये बिल्ली तो हमें घर ले जानी ही होगी उठा कर. कल सुबह इस मस्त कप में कॉफ़ी विद हॉट चोकलेट पिया...कितना अच्छा लगा कि क्या बताएं. टेबल पर रखा भी रहे इतना अच्छा कॉफ़ी मग न तो उसे देख कर ही कुछ कुछ लिखने का मन करे. मुझे न अपने घर में वैसे तो ख़ास आर्डर की दरकार नहीं है. घर अधिकतर बिखरा हुआ ही रहता है...पर कुछ चीज़ें मुझे एकदम अपनी वाली चाहिए होती हैं, उसमें कोई कम्प्रमाइज नहीं कर सकती. जैसे चोकलेट या कॉफ़ी पीनी होगी तो अपने कॉफ़ी मग में ही पियूंगी...उसमें किसी और को कभी नहीं दूँगी. बहुत पजेसिव हूँ अपनी पसंदीदा चीज़ों को लेकर.
तीसरी चीज़ जिसके लिए हम एकदम ही पागल हो रखे हैं वो है हमारी नयी कलम...लिखने को लेकर हम वैसे भी थोड़े सेंटी ही रहते हैं. पहली बार हम खुद के लिए महंगा पेन ख़रीदे हैं...हमको अच्छे पेन से लिखना अच्छा लगता है...उसमें भी नीले या काले रंग के इंक से लिखने में मज़ा नहीं आता...इंक भी हमेशा कुछ दूसरा रंग ही अच्छा लगता है. ये मेरा पहला पार्कर है...इंक पेन...और रंग एकदम जैसा मुझे पसंद हो...पेन की बनावट भी ऐसी है कि लिखने में सुविधा होती है. निब एकदम स्मूथ...कागज़ पर फिसलता जाता है. गहरे गुलाबी-लाल रंग का पेन इतना खूबसूरत है कि लिखने के पहले मन करता है पेन पर ही कुछ लिख लें पहले. आजकल इसमें शेल पिंक इंक भरा हुआ है :) जिस दिन से पेन लायी हूँ...कॉपी में बहुत सारा कुछ जाने क्या क्या लिख लिया है.
संडे को नयी इंक भी खरीदी...ओरेंज क्रश...तो मेरे पास तीन अच्छी अच्छी कलर की इंक्स हो गयीं हैं...Daphne Blue, Shell Pink and Orange Crush. अधिकतर फिरोजी रंग से ही लिखती हूँ...मुझे बहुत अच्छा लगता है...खुश खुश सा रंग है, पन्ने पर बिखरता है तो नीला आसमान याद आता है...खुला खुला. पर पिछले कई दिनों से एक ही रंग से लिख रही थी और नारंगी रंग को उसी बार देख भी रखा था...नारंगी रंग भी अच्छा है...खुशनुमा...फ्रेश...बहार के आने जैसा. मैं अधिकतर इन दोनों रंग से लिख रही हूँ आजकल. फिर से चिट्ठी लिखने को मन कर रहा है...सोच रही हूँ किसको लिखूं. हरे रंग से लिखने का फिर कभी मूड आएगा तो लिखूंगी.
तो अगर आप मेरे घर आये हो...और मैं आपको अपनी रॉकिंग चेयर पर बैठने देती हूँ...और अपने फेवरिट मग में कॉफ़ी पेश करती हूँ और कॉपी देकर कहती हूँ...औटोग्राफ प्लीज...तो मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ...इसमें से एक भी मिसिंग है तो यु नो...वी आर जस्ट गुड फ्रेंड्स ;-) ;-)
ya ya...I am a materialistic girl! :-)
पूजा !
ReplyDeleteराकिंग चेयर की मैंने फोटो कापी कर ली है ..मुझे बहुत पसंद आई ..
वैसे तो मेरे पास है ..पर वो आराम देने की जगह मुझे थकाती ज्यादा है |सो बुरा मत मानना ...
बाकि की दोनों ..तुम्हे और उसको .? मुबारक हो :-))))
खुश रहो ,बिंदास रहो !
आशीर्वाद!
:) अशोक जी...मेरी कुर्सी बड़ी अच्छी है...थकाती नहीं है...आप आराम से रख लीजिए...मैं बुरा नहीं मान रही. :)
Deleteप्यारी दुआओं और कमेन्ट के लिए शुक्रिया.
बहुत ही बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग
विचार बोध पर आपका हार्दिक स्वागत है।
Loved the pen... and of course will love all the stuffs I chance to read that the lovely pen will write:))
ReplyDeleteMay the three C's keep you as happy as ever!!!
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
पेण्डुलम की तरह हिलने में दिमाग काम करना बन्द कर देता है, नींद आने लगती है। टहलने या आवारगी में सोचना प्रारम्भ होता है। तो पहला क हुआ कदम।
ReplyDeleteजो भी लिखना होता है सीधे आईफोन या लैपटॉप पर लिखते हैं। दूसरा क हुआ कीबोर्ड।
जब एकान्त बैठते हैं तो कल्पना का ही साथ भाता है। तो तीसरा क हुआ कल्पना।
कदम, कीबोर्ड, कल्पना।
tumhare pen par dil aa gaya pooja...kai dino se pen se nahi likha ek baar kagaz par likho fir use keyboard se likho aalas kar leti hu.par aj lag raha hai wapas pen se likhna chahiye zara sukun rahta hai....
ReplyDelete:-) :-) हमारा पेन है ही ऐसा कि दिल आ जाए...हम पेन से भी लिखते हैं...ब्लॉग पर मोस्टली तो टाईप ही करते हैं पर कभी कभी पहले कॉपी में लिखा होता है कुछ तो वो लिख लेते हैं. कलम से लिखने की बात ही कुछ और होती है...खुशबू होती है उसमें...बाद में पन्ने पलटने पर एक जादू सा महसूस होता है.
Deletebs puja aj to mera b mn ho hi gya new pen kharidne ka.kbhi dairy likhti thi aj b jb panne palatti hu chehre samne aa jate hai.
Deleteकिलकती हैं तो पाँवों में लगती है गुदगुदी.
ReplyDeleteओफ्फो !
मैंने ऐसा तो नहीं कहा था.
सुन्दर. हमने भी बहुत सारे निब पेन इकट्ठे किये थे. उन्हें ठीक करना है. वक्त आ गया है.
ReplyDeleteआलेख अभी पढ़ा नहीं सिर्फ झांकने आया था।
ReplyDeleteलहरों की बातें कुर्सी में बैठकर ! वो.. छई छपाक छई.. करती अच्छी थी..तश्वीर।
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कब तक अस्तिनो में सांप पालते रहेंगे ?? - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteenjoy the chair... coffee and pen...blue colour mujhe bhi bahut pasand ...aap esa hi achaa likhti rahe....aapka likha pad kar bahut sukun milta hae....
ReplyDeleteबाकी पर तो नहीं पर आपके कॉफी मग पर जरूर दिल आ गया है। बेहद प्यारा है।
ReplyDeleteसच कहूँ तो मुझे आज ही पता कि स्याही इतने रंगों में आती है। वैसे भी इंक पेन से लिखे कई दशक बीत गए।
मनीष जी...स्याही और भी रंगों में आती है :) मैंने तो अभी यही खरीद रखे हैं...लिखने का कीड़ा है...कॉपी में लिखे बिना मन नहीं मानता...उसपर ऑफिस में भी बहुत बहुत लिखना होता था...इसलिए इंक्स और कलमों पर शोध चलता रहा :)
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