17 November, 2011

कैन यू हीयर मी?


तुम्हारे लिए कितना आसान है यूँ खुली किताब की तरह मुझे पढ़ लेना, वो भी तब जब मुझे न झूठ बोलना आता है न तुमसे कुछ भी छिपा सकती हूँ कभी. तुमने जब जो पूछा हमेशा सच बोल गयी बिना सोचे कि सच के भी अपने सलीब होते हैं जिनपर दिन भर तिल तिल मरना होता है.

मैं तो इसी में खुश थी कि तुमसे प्यार करती हूँ, कब तुमसे कुछ माँगा जो तुम मुझसे पूछने लगे कि किस हक से मैं तुमसे सवाल कर रही हूँ. मेरा कौन सा हक है तुमपर. कभी भी कब रहा था. बस ये ही ना पूछा था कि ऐसे तुम सभी को पढ़ लेते हो या ख़ास मुझे पढ़ पाते हो. तुम एक सवाल का भी सीधा जवाब नहीं होगे, दिप्लोमटिक वहां भी हो जाते हो 'चाहूँ तो पढ़ सकता हूँ'. इससे बेहतर तो जवाब ही नहीं देते तुम.

ऐसे कैसे नरम, मासूम से ख्वाब थे कि सुनकर आँखें रोना बंद ही नहीं करतीं...दिल रो रहा है ऐसे कि लगता है मर जाउंगी. प्यार हमेशा ऐसा डर लेकर क्यूँ आता है कि लगता है गहरे पानी में डूब रही हूँ. सांस सीने में अटकी हुयी है. लोग माने न पाने प्यार का फिजिकल इफेक्ट होता है, आखिर पूरी दुनिया में किसी को भी प्यार होता है तो सबको ऐसा ही लगता है न कि जैसे सांस अटकी हुयी है सीने में. न खाना खा पा रही हूँ न किसी काम में मन लग रहा है. कॉपीचेक के लिए किताब कब से रखी हुयी है, इग्नोर मोड में डाल रखा है.


हाँ मेरा दिल करता है कि दोनों हाथों में एक बार तुम्हारा चेहरा लेकर देखूं कि तुम्हारी आँखों का रंग वाकई कैसा है. तुम्हें देखे इतने दिन हो गए कि तुम्हारा चेहरा याद में धुंधलाने लगा है...और तुम कहते हो कि तुमसे कभी न मिलूं...यूँ जैसे कि तुम बगल वाली बालकनी में रहते हो और हम रोज शाम अपने चाय और कॉफ़ी के कप उठा कर चियर्स करते हैं. बात तो यूँ करते हो जैसे दिल्ली बंगलोर में दूरी ही न हो, जैसे मैं जब चाहूँ ट्रांसपोर्ट होकर तुम्हारे ऑफिस के बाहर छोले कुलचे वाली साइकिल के पास तुम्हारा इंतज़ार कर सकती हूँ.

मुझे कभी भी प्यार हुआ तो मैंने छुपाया नहीं था...कोई कारण होगा न कि सिर्फ तुम एक्सेप्शन थे इस रूल के...कल जाने क्या मिल गया तुम्हें मेरे मुंह से कुबूल करवा के...हाँ मैं करती हूँ तुमसे प्यार...अब मैं क्या करूँ...अब मैं क्या करूँ. ये शाम जैसे हवा ज्यादा डेंस हो गयी है और सांस नहीं ली जा रही है, तुमसे बात करने का मन कर रहा है. पागल हो रही हूँ धीरे धीरे...उठा के फ़ेंक दो वो सारी चिट्ठियां कि जिनसे तुमने चीट questions बना लिए मुझे समझने के लिए.

तुम्हें लगा है कभी. डर. ऐसा. क्या करते हो ऐसे में? तुम्हारी आवाज़ के सिक्के ढलवा लूँ? जब दिल करे मुट्ठी में भर के खनखना लूँ. दिल करता है कहीं बहुत बहुत तेज़ बाईक चलाऊं और किसी दूर झील के किनारे जब कोई भी न देखे...जी भर के चिल्ला लूँ...आई लव यू...आई लव यू...कैन यू हियर मी?

10 comments:

  1. तुम्हारी आवाज़ के सिक्के ढलवा लूँ? जब दिल करे मुट्ठी में भर के खनखना लूँ.
    वाह!
    sounds like a brilliant idea:)

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  2. Ek tarfa pyar to apne saath na jane kitne dard liye aata hai!

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  3. चिल्लाने वाला सुनना भूल जाता है। पलट कर आती चीखों को....कैन यू हीयर मी? चीखते-चीखते बहरे हो जाते हैं प्रेमी। बंद कर दें थक कर चीखना तो यकबयक सुनाई पड़ सकती है आवाजें..कैन यू हीयर मी?

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  4. पगली कहीं की :)

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  5. Anterdwand ki parikalpana bhi kuch aisi hi hoti hai.

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  6. तुम्हारी आवाज़ के सिक्के ढलवा लू?सच में direct दिल पर लगी....कहा ले लाती हो एसे ideas ? काश अगर तुम्हे एसा कोई सिक्के ढलने वाला मिले तो उसे मेरा पता भी दे देना.....एसे ही कुछ सिक्कों की मुझे भी जरुरत है.....

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  7. Ya hear you screeming love you back :-)

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