तो लगभग पांच बजे हम इंदिरानगर से चले और कोरमंगला से साकिब और अभिषेक को उठाये फिर जयनगर, एनफील्ड के शोरूम. ओफ्फफ्फ्फ़ क्या जगह थी...कभी इस बाईक पर दिल आये, कभी उस पर. कभी डेजेर्ट स्टोर्म पर मन अटके कभी क्लास्सिक क्रोम जानलेवा लगे. पर सबमें प्यार हुआ तो थंडरबर्ड से...सिल्वर कलर में. दिल तो वहीं आ गया कि ये वाली बाईक तो उठा के ले जायेंगे. समस्या बस इतनी कि कुणाल को बाईक पसंद नहीं है. खैर...साकिब की बाईक आई, हमने डेरी मिल्क खा के शुभ आरम्भ किया...उफ्फ्फ क्या कहें...उस बाईक पर बैठ कर दुनिया कैसी तो अच्छी लगने लगती है. लगता है जैसे सारे दुःख-तकलीफ-कष्ट ख़तम हो गए हैं. मन के अशांत महासागर में शांति छा गयी है...कभी लगे कि जैसे पहली बार प्यार हुआ था, एकदम १५ की उम्र में, वैसा ही...दिल की धड़कन बढ़ी हुयी है...सांसें तेज़ चल रही हैं और हम हाय! ओह हाय! किये बैठे हैं. घर वापस तो आ गए पर दिल वहीं अटका हुआ था, थंडरबर्ड में...सिल्वर रंग की.
अब मसला था कि कुणाल को बाईक पसंद नहीं है...और थंडरबर्ड कोई छोटंकी बाईक नहीं है कि हम अपने लिए खरीद लें...ऊँची है और चलाने के लिए कोई ६ फुट का लड़का चाहिए होगा. हमने अपनी पीठ ठोंकी कि अच्छे लड़के से शादी की, कुणाल ६'१ का है...और थंडरबर्ड चलाने के लिए एकदम सही उम्मीदवार है. दिन भर, सुबह शाम दिमाग में बाईक घूम रही थी...कि ऐसा क्या किया जाए...और फिर समझ नहीं आ रहा था कि लड़के को बाईक न पसंद हो ठीक है...पर ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी को एनफील्ड से प्यार न हो. जिस बाईक को देख कर हम आहें भर रहे हैं...वो तो फिर भी लड़का है. कल भोरे से उसको सेंटी मार रहे थे कि क्या फायदा हुआ इतना लम्बा लड़का से बियाह किये हैं कभियो एक ठो चिन्नी का डब्बा भी दिया किचन में रैक से उतार के. हाईट का कोई फायदा नहीं मिला है हमको...अब तुमको कमसेकम बाईक तो चला दी देना चाहिए मेरे लिए. उसपर भी हम खरीद देंगे तुमको, पाई पाई जोड़ के, खूब मेहनत करके. बाईक भी सवा लाख की है, इसके लिए कितना तो मेहनत करना पड़ेगा हमें. कुणाल के पसंद की कोई चीज़ हो तो हम उससे खरीदवा लें. अपने पसंद की चीज़ तो खुद खरीदनी चाहिए ना. तो हम दिन भर साजिश बुन ही रहे थे कि कैसे कुणाल को बाईक पसंद करवाई जाए.
इन सब के बीच हमें ये नहीं पता था कि कुणाल ने एनफील्ड कभी चलाई ही नहीं है. कल रात साकिब और कुणाल ऑफिस से लौट रहे थे जब जनाब ने पहली बार चलाई. मुझे पहले ही बोल दिया था कि तैयार होके रहना घूम के आयेंगे...तो मैंने जैकेट वैकेट डाल के रेडी थी घर के नीचे. डरते डरते बैठी, कुणाल का ट्रैक रिकोर्ड ख़राब है. मुझे पहली ही डेट पर बाईक से गिरा दिया था. (लम्बी कहानी है, बाद में सुनाउंगी). तो हम बैठे...कोई रात के ११ बजे का वक़्त...बंगलौर का मौसम कुछ कुछ दिल्ली की ठंढ जैसा...इंदिरानगर गुडगाँव के सुशांत लोक जैसा...एक लम्हा था कि जैसे जादू सा हुआ और जिंदगी के सारे हिस्से एक जिगसा पजल में अपनी सही जगह आ के लग गए. हलकी हवा, कुणाल, थंडरबर्ड और मैं...और उसने इतनी अच्छी बाईक चलाई कि मुझे चार साल बाद फिर से कुणाल से प्यार हो गया. फिर से वैसा लग रहा था कि जैसे पहली बार मिली हूँ उससे और वो मुझे दिल्ली में घुमा रहा है. लगा कि जैसे उस उम्र का जो ख्वाब था...एक राजकुमार आएगा, बाईक पे बैठ कर और मेरा दिल चोरी कर के ले जाएगा...वैसा कुछ. कि कुणाल वाकई वही है जो मेरे लिए बना है. कितना खूबसूरत लगता है शादी के चार साल बाद हुआ ऐसा अहसास कि जिसने महसूस किया हो वही बता सकता है.
It was like everything just fell into place...and I know he is the one for me :) Being on bike with him was like a dream come true...exactly as I had imagined it to be, ever in my teenage dreams. My man, a bike I love...weather the way I like it and night, just beautiful night in slow motion...dreamy...ethereal.
और सबसे खूबसूरत बात...कुणाल को एनफील्ड अच्छी लगी, दरअसल बेहद अच्छी लगी...घर आ के बोला...अच्छी बाईक है, खरीद दो :) :)
पुनःश्च - It is impossible for a man to not fall in love with a Royal Enfield. There is something very subliminal...maybe instinct. I don't know how the bike-makers got it right but for me a man riding a Royal Enfield is the epitome of perfection, like the complete man from Raymond adverts. The classic, masculine image of a man before being toned down by the desire to fit into the metrosexual category. It signifies the change from being a boy to being a man. Be a man, ride an Enfield.
The views and opinions in this blog are strictly of the blog author who has a right to publish any gibberish she wants to...the busy souls are requested to find someplace else to crib!! ;) ;) I will not clarify any of the terms like metrosexual man, raymonds man, classic...whatever :D :D
:),to kar dijie mehnat shuru....gift dene ke lie....:)
ReplyDeleteमस्त बाइक है। है कित्ते की..? लिंक डाउनलोड करे पर दमवे नहीं ढूंढ पाये। डीलर है अपने शहर बनारस में।
ReplyDeleteबाइक से हो प्यार तो क्या कहने।
ReplyDelete@देवेन्द्र जी...सवा लाख की बाइक है, ऑन रोड, बंगलोर में टैक्स भी बहुत लगता है।
ReplyDeleteक्या पांच फुट का लड़का भी इसे चला सकता है... ? यही सोचा कर अभी तक नहीं लिया है....
ReplyDelete@अरुण जी, बाइक चलाने का निर्णय तो आपका ही होगा...बाइक की सीट थोड़ी ऊंची है और वजन 180 किलो...ऐसे में लंबे होने का फायदा तो होता ही है। पर चला कर देखिये, अगर आपको ठीक लगे तो हाइट का ऐसा कोई बंधन भी नहीं है। हमारे घर में जब भी आएगी तो मैं तो चलाऊँगी ही।
ReplyDeleteअन्त तक समझ नहीं कि अधिक नशीला क्या था, कुणाल, मौसम या इनफील्ड? :))
ReplyDelete:) @Praveen jee...Total combination tha :D awesome types.very very rare :D
ReplyDeleteकुछ चीजें नहीं बल्कि बहुत सी चीजें साथ साथ हैं .......हम भी ट्राई करते हैं ......!
ReplyDeleteतुम ना पूजा, कहियो नई सुधरोगी.. :)
ReplyDeleteरे पीडी, सुधरे तो ऊ जो खराब हो...हम तो एक्दम्मे अवसम हैं रे...और वो आमिर खान ने कहा था न दिल चाहता है में...perfection ko improve karna bahut difficult hai :D
ReplyDeleteएनफ़ील्ड?? हुँह..
ReplyDeleteहार्ले डेविडसन, हायाबुसा या डुकाटी की बात करते तब तो मानते आपको!
वैसे, पौन लाख की होंडा डैज़लर पर भी कभी निगाहें मारें... :)
@रवि जी...दिल के बहलाने को इतना ही ख्याल काफी है...सवा लाख की बाइक अलरेडी ओवरबजट लगती है :) इससे ऊपर की बाइक चलाने के लिए देश में सड़कें कहाँ हैं :)
ReplyDeleteदेखो मेरा बाईक पुराना जैसा कब होता है, उसी के इन्तजार में हैं.. कमबख्त पिछले तीन साल से एकदम नया का नया दिखता है.. इंजन भी एकदम चकाचक.. एक बार पुराना हो जाए तो हम भी थंडरबर्ड पर ही नजर गडाये बैठे हैं.. :) अगर थंडरबर्ड ना भी तो होंडा का CBR 250 भी पसंद है.. :)
ReplyDeleteहम होंडा का सीबीआर देख के आए...अच्छा नहीं लगा...उसका प्लास्टिक सब एकदम घटिया दिया है। देख के जो एक बार दिल से आह! निकलना चाहिए ऊ भी नहीं निकला...बाकी तुमरा मन। Worth it nahin laga...1.75 lakh hai bangalore mein.
ReplyDeleteहम चला कर देखे हैं.. एकदम गर्दा चलता है रे.. गजब का पिकअप और बैलेंस है.. बैंगलोरे में चलाये थे, जब पिछली बार आये थे तब. वैसे ये तो मानते हैं की थंडरबर्ड के सामने कुच्छो नहीं है..
ReplyDeleteबाईक पर पीछे बैठने का भी अपना आनंद है.. अब कौन तो याद रखे कि कौन सा गीयर लगाना है, तो एक्सीलेटर लेना है.. भाईसाहेब ये सब सोचने का काम आगे बैठने वाले का.. पीछे वाला बस मौसम देखता है..
ReplyDeleteलेकिन इस तस्वीर को देखकर लग रहा है कि इट्स हाई टाईम, अब बाईक चलाना सीख ही लिया जाय... :-)
u r perfectly correct. I have also been trying to ride one, or say trying to gather the courage (and money :P) to buy one soon (my personal fav is the split seat model.). well in my city the waiting is around 3 months.... its worth waiting !!
ReplyDeleteएक मुद्दत से गुजर रहे हैं आपकी लहर को छू कर…पर कभी कुछ कहते नहीं बना… पर आज लगा कि कुछ ना कहूँ तो एनफ़ील्ड बुरा मान जाये शायद।
ReplyDeleteवैसे आपकी लहरों से रू-ब-रु होते हैं तो खामोशी से उनमें भीगते रहना ही अच्छा लगता है।
दो-तीन बातें लगती हैं। तुम्हारा जुझारू एंडोर्समेंट अगर आइशर वालों ने देख लिया तो एनफील्ड के पीआर में नौकरी पक्की। फिर उसमें सुविधा होती है ट्रिप्स ऑर्गनाइज करने की, तब मजे में करना बाइकिंग। साल में कम से कम दो बार, 15-15 दिन की रोड ट्रिप।
ReplyDeleteदूसरे, काहे लिए ये हाईट वाइट का मसला उठाकर कॉम्प्लेक्स पैदा कर रही हो। बुलेट शरीर के सबसे ऊपरी हिस्से से चलती है...जिसे दिमाग कहते हैं। इट लाइज़ इन योर माइंड, बेइबे ;)
चकाचक पोस्ट!
ReplyDeleteचार साल बाद फिर से कुणाल से प्यार हो गया
पढ़कर लगा कि ये मोहब्बत न हुई सरकारी विभागों में चार साल में मिलने वाली आल इंडिया एल टी सी हो गयी। :)
पंकज चिंता न करें। किसी भी वीकेंड पर गुड़गांव से कानपुर आ जायें। लौटेंगे तो बाइक चलाना सीखकर ही लौटेंगे!
:) :) आज तो हम उड़ने ही लगेंगे...अनूप जी की इतनी सारी चकाचक टिप्पणी जो मिल रही है। :) :)
ReplyDeleteमुहब्बत बहुत सी चीज़ें होती है, चार साल वाली ऐल टी सी भी सही :)