हसरत-ऐ-नाज़ उठाना भी न आये
वो रूठें तो मनाना भी ना आये
क्यूँ इश्क में गिरफ्तार हुए बैठे हो
तुम्हारे हाथों में तो पैमाना भी न आये
खुद की खुद्दारियों में उलझे हो
तुम्हें तो खुद को मिटाना भी ना आये
खुदा की बंदगी से मुख्तलिफ यूँ
वो बुला ले तो निभाना भी ना आये
हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
हाय! साकी को शर्माना भी ना आये
वो जो पूछें गली में आने का सबब
हमें देने को बहाना भी ना आये
लौट तो जाएँ तेरे दीदार के बाद
जीते-जी तेरे दर से जाना भी ना आये
जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है
हमें तो सजदे में सर झुकाना भी ना आये
वो जो पूछें गली में आने का सबब
ReplyDeleteहमें देने को बहाना भी ना आये
waah bahut khoob
लौट तो जाएँ तेरे दीदार के बाद
ReplyDeleteजीते-जी तेरे दर से जाना भी ना आये
...........वाह, क्या बात है ... बेहतरीन ग़ज़ल !
संजय भास्कर
आदत......मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
खुद की खुद्दारियों में उलझे हो
ReplyDeleteतुम्हें तो खुद को मिटाना भी ना आये
.....आह कितनी खूबसूरत बात कही है.
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।
ReplyDeleteलौट तो जाएँ तेरे दीदार के बाद
ReplyDeleteजीते-जी तेरे दर से जाना भी ना आये ...
गहरे और सुंदर जज़्बात ...
shows the hidden perseverance of the poet .
बधाई हो. आदाब..
ReplyDeleteवो पूछें गर, क्या हाल है जनाब का,
ReplyDeleteछिपाना जो चाहें, छिपाना न आये।
'जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है'
ReplyDeleteयह है समर्पण की चरम गति!
सुन्दर!
बहुत ख़ूबसूरत, प्रसंशनीय, बधाई.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
ReplyDeleteहाय! साकी को शर्माना भी ना आये
वाह! बहुत खूब पूजा जी।
सादर
Bahut Sundar
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
क्या कहने, बहुत बढिया
ReplyDeleteहसरत-ऐ-नाज़ उठाना भी न आये
वो रूठें तो मनाना भी ना आये
लौट तो जाएँ तेरे दीदार के बाद
ReplyDeleteजीते-जी तेरे दर से जाना भी ना आये
..
बहुत सुंदर भाव... गज़ल में गहराई है ये देखकर अच्छा लगा ! हालाँकि अभी काफिया ...रदीफ ...और बहर की कुछ दिक्कत है !
भावपूर्ण सुन्दर गज़ल ! हर जज़्बात मन को छूते हैं और एक मीठा सा रिश्ता कायम कर लेते हैं !
ReplyDeleteपूजा जी,..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर जज्बाती गजल,..लिखी आपने..
मेरी शुभकामनाए,..इसी तरह लिखती रहे ,...
बढ़िया ग़ज़ल....
ReplyDeleteसादर बधाई
हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
ReplyDeleteहाय! साकी को शर्माना भी ना आये
...बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल ..हरेक शेर बहुत उम्दा..
जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है
ReplyDeleteहमें तो सजदे में सर झुकाना भी ना आये
baht khub
हम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
ReplyDeleteहाय! साकी को शर्माना भी ना आये
awesome dear
ak achhi gzal .....
ReplyDeletegood.. badhai.
वो जो पूछें गली में आने का सबब
ReplyDeleteहमें देने को बहाना भी ना आये
प्यार ही प्यार..बेशुमार.. :)
जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है
ReplyDeleteहमें तो सजदे में सर झुकाना भी न आये
वाह बहुत सुंदर ! हार्दिक बधाई
क्या बात है! वाह!
ReplyDeleteमकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
आज 15/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जिस्म से रूह तक सब मिल्कियत तुम्हारी है
ReplyDeleteहमें तो सजदे में सर झुकाना भी ना आये
बेहतरीन...बहुत खूब..!
बहुत खूब..........
ReplyDeletebahut sundar , behtarin rachana..
ReplyDeleteहम हैं तलबगार नाज़ुक-मिजाज़ी के
ReplyDeleteहाय! साकी को शर्माना भी ना आये
वो जो पूछें गली में आने का सबब
हमें देने को बहाना भी ना आये
vah puja ji kya khoob likha hai ....dil ko chhoo gayee apki ye gazal ...badhai