24 December, 2010

उसकी सजाएं

दिन गुज़रते, उसकी सजाएं और भी ज्यादा कातिल होतीं जा रही थीं...
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वो अपनी स्कूटी मेरे एकदम पास ला कर जोर से ब्रेक मारती और रोकती. हमेशा कहता था कि जिस दिन तुम्हारी गाड़ी के ब्रेक फेल हुए सबसे पहला मरने वाला मैं ही होऊंगा. उसके इस रुकने के अलावा कोई तरीका नहीं था पता करने का कि स्कूटी वही चला रही होगी, मैं तो क्या कोई भी नहीं पहचान पाए उसे. कितने परदे होते थे उसके मेरे बीच. सबसे पहले अपना हेलमेट उतारती थी, फिर स्कार्फ, गले तक बंद ऊँची जैकेट, दास्ताने और आखिर में उसके वो बड़े सनग्लासेस...इतने पर्दों के बाद जाके नज़र आती थी उसकी आँखें...हलकी नीली, पारदर्शीं. उन आँखों में कौन सी ख़ुशी नाचती रहती थी मैं समझ नहीं पाया...क्यों होती थी इतना खुश वो मुझसे मिलकर हमेशा?

स्कूटी स्टैंड पर लगा कर वो धीमे क़दमों से मेरे पास आती थी और एक पल को लगता था जैसे चिलचिलाती गर्मी में बर्फ सा ठंढा पानी का एक जग अन्दर उतर गया हो. वो लगती भी तो थी बर्फ की गुड़िया, छू देने भर से पिघल जाने वाली...बाँहों में होती थी तो रूह तक भीगने लगती थी. उसका ये पल भर मेरी बाँहों में आना हर बार इतना आश्चर्य और सुकून कैसे देता था मैं आज तक नहीं समझ पाया. वो जितनी देर आसपास रहती थी मौसम जाड़ों का होता था, खुशगवार...धूप गुनगुनी और हवा में खुनक. हर बार चैन से बैठ कर मेरी गर्लफ्रेंड्स की कहानियां सुनती थी, कभी अपनी राय देती थी...कभी कोई मुश्किल का हल बताती थी. कभी कभी जिद्द पर अड़ जाती कि अपनी गर्लफ्रेंड्स का नाम तो बताओ, किसी एक का बता दो कमसेकम. मैं हर बार बहाने बना के टाल जाता था. इस जिद के बावजूद उसे मेरी किसी गर्लफ्रेंड का नाम जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है ये भी मैं जानता था.

मैं उसे उस वक़्त से जानता था जब रिश्तों के नाम नहीं होते...जिंदगी में होना होता है बस. मैं नहीं जानता कि मैं उसे कैसे प्यार करता हूँ...एक दोस्त की तरह, बहन(?), प्रेमिका या सब कुछ से परे कुछ. उससे पहली बार मिला था उसके कुछ सालों बाद इतना तो जान गया था कि उसको बहन की तरह तो बिलकुल भी नहीं प्यार करता हूँ...उसके अलावा किसी भी रिश्ते से ऐतराज़ नहीं था. जिंदगी के इतने मोड़ पर हम टकराते रहे कि किस्मत जैसी किसी चीज़ पर आज यकीन करने को दिल चाहता है. जिंदगी में उसके पहले भी लड़कियां थीं, उसके बाद भी लड़कियां आयीं पर सबके होने के साथ और सबके होने के बावजूद वो हमेशा मेरी जिंदगी का हिस्सा रही.

जिंदगी के किसी चौराहे पर, किसी मोड़ पर...ठहरे हुए किसी लम्हें में वो पलक झपकाने जैसी याद आ जाती थी, अचानक. जब भी फुर्सत से जिंदगी के बारे में सोचा करता था वो जैसे किसी परदे की पीछे झांकती मिलती थी. बचपन के उन दिनों की तरह जब उसे छुपा छिपी खेलना पसंद था...और मुझे क्रिकेट. उसका छुपा छिपी मुझे बहुत बचकाना लगता था और उसका वो कहीं से भी आके 'धप्पा' दे देना बेहद गुस्सा दिलाता था. सारे लड़कियों के खेल, खाली नौटंकी. बिन मतलब की जिद...कि मैं आई हूँ तो क्रिकेट खेलने मत जाओ...अरे तुम कोई महारानी हो जो तुम्हारे आने पर खेलने नहीं जाऊं. सन्डे को अधिकतर बड़े मैच होते थे.
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उससे मिले कुछ साल बीत गए थे. बड़े दिन बाद वापस पटना जाना हुआ था, इत्तिफाकन वह भी घर आई हुयी थी उस समय. हफ्ते भर की छुट्टियाँ थी पर कुछ ना कुछ कारण होने से मिलने नहीं जा पाया. छुट्टियाँ ख़तम और वापस आना पड़ा...ट्रेन में सारे वक़्त सोचता रहा कि उससे मिल नहीं पाया इस बार, उसे पता चला तो क्या करेगी. झगड़ झगड़ के जान ही ले लेगी, उसका गुस्सा, उफ्फ्फ...बस मम्मी गुस्सा किया करती थी मेरे ऊपर इतना ज्यादा उसके अलावा.

अगली शाम सड़क पर टहल रहा था कि उसे देखा. खुले लहराते बाल, स्लीवलेस टी-शर्ट और गले में पड़ा स्कार्फ...गहरे लाल रंग का...दूर से ही पहचान में आ गयी. पर वो इतना तेज़ क्यों चला रही थी स्कूटी, ना हेलमेट ना जैकेट...दिमाग तो नहीं फिरा है लड़की का. इस बार उसने बाइक थोड़ी सी दूर पार्क की...जब वो मेरी तरफ आ रही थी तो सोच रहा था कि ये हमेशा इतनी सुन्दर थी या आज ख़ास लग रही है, उसके चेहरे से नज़र ही नहीं हट रही थी. वो एक खाली सी सड़क थी, बहुत ज्यादा ट्रैफिक नहीं था कालोनी के भीतर...वो एकदम धीमे कदम लेती हुयी मेरे पास आई...उसने कुछ तो हील पहन रखी होगी, बिलकुल मेरी आँखों की हाईट पर उसकी आँखें थीं...मेरे बायें कंधे पर अपना हाथ रखा और मेरी आँखों में देखते हुए बोली...तुम इस बार पटना आके मुझसे मिले बिना चले गए? जानते हो मुझे कैसा लगा?

मेरी आँखों में आँखें डाले हुए वो जैसे स्लो मोशन में मेरे पास आती गयी, जब कि उसका चेहरा धुंधला गया...वो बस महसूस हो रही थी होटों से इंच भर के फासले पर जब उसने कहा 'ऐसा'. और एक लम्हे में वो मेरी बाँहों से फिसल कर अपनी स्कूटी पर पहुँच गयी, यु टर्न लिया और चली गयी...बस ऐसे ही. मैं जब तक सम्हलता कि वो जा चुकी है मुझे याद तक नहीं आ रहा था कि वो सच में आई थी या मैंने कोई सपना देखा था. पूरा शरीर शॉक की अवस्था में था. उबरने में थोड़ा वक़्त लगा. आसपास देखा तो सब एकदम शांत, धीमा जैसे कहीं कुछ हुआ ही ना हो. उसकी हलकी सी खुशबू अपने आसपास महसूस कर सकता था मैं. दिल की धड़कन ऐसे बढ़ी हुयी थी जैसे पूरी कालोनी का एक राउंड दौड़ के खड़ा हुआ हूँ. मतलब...वो आई तो थी.

मैंने बहुत बार उस शाम का विश्लेषण करने की कोशिश की...पर उस शाम को यथार्थ की तरह देख ही नहीं पाता था...सब लगता था जैसे सपने में घटा हो. उसकी आँखें, उसके बाल, उसका स्कार्फ, उसकी बाहें...और उसकी सांसें मेरी साँसों में घुलती हुयी...बस. मैं उससे प्यार करता हूँ क्या? और इससे ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल था कि वो मुझसे प्यार करती है क्या?

उसे फ़ोन लगाया तो नंबर स्विच ऑफ...अगले दिन घर फोन किया तो आंटी ने कहा कि कहीं टूर पर गयी है बाहर...फ़ोन नहीं लेगी उधर. लैंडलाइन से कॉल कर लेती है रोज़ शाम को, कोई बात है...कोई मेसेज देना है? अब मेसेज क्या दूं उसे जहाँ सवाल दर सवाल फैले हुए हैं. उस दिन के बाद सदियों उसे ढूँढने की कोशिश की, वो कहीं नहीं मिली. उसने कभी कॉल नहीं किया...कभी याद भी नहीं किया. उससे मिलने के ठीक एक महीने बाद मेरे नाम एक पार्सल आया था...मैं इतना परेशान था उसे ढूँढने में कि पार्सल खोला भी नहीं था. कुछ सात आठ साल हो गए होंगे...एक दिन अचानक से वो पार्सल सामने मिला.

पार्सल में एक गहरे लाल रंग का स्कार्फ था और एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा...एक ही पंक्ति लिखी हुयी थी उसपर. 'मेरी सन्डे शाम की फ्लाईट है...रोकने आओगे क्या?'. दिल तो किया वो सामने रहती अभी तो खींच के थप्पड़ मारूँ उसको...पर वो दूर देश में थी कहीं...हर नेटवर्क से कटी हुयी.

कल की मेरी फ्लाईट है...रास्ता बहुत लम्बा है, दूसरे महाद्वीप तक का, बीच में कई समंदर आते हैं...सोच के कई सारे टापू...
हर सिम्त सोचता हूँ कि उसे जब मिलूँगा तो पहले थप्पड़ मारूँ या उसके होठों को चूमूँ?

17 comments:

  1. पता नहीं कहाँ कहाँ से कैसी कैसी यादें उठ गयी..
    बाकी और कुछ कहने के हालत में नहीं हूँ अभी!!

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  2. हम्म, दोनों ही, पर पहले थप्पड़।

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  3. उफ़! दिल धडका दिया अजब कशमकश मे फ़ँसा दिया।

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  4. बेहद दिलचस्प लिखा है।

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  5. मन के भावों का उद्वेलन ..बहुत सुन्दर ..

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  6. दूसरी वाली सजा ज्यादा ठीक बैठती है.

    बहुत बहुत बढ़िया लिखा है.

    - मनोज

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  7. बहुत अच्छा लिखती हैं आप। अभी दो पोस्ट ही पढ़ी है, चाहता हूं सभी पढ़ लूं।

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  8. हाउ रोमांटिक ........


    क्रिसमिस है... सोचा अंग्रेजी में टीप दे दें......

    हमेशा की तरह ... बेहतरीन.

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  9. Kaafi der se soch rahi hu k kya likhu magar kuchh samajh nahi aata.. kuchh is post ka asar h aur kuchh unsi yaado ka k dimaag kaam hi nahi kar raha.. bt itna to taya h k behad pasand aayi h mujhe ye post.. kai baar padhungi :)

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  10. आपकी अति उत्तम रचना कल के साप्ताहिक चर्चा मंच पर सुशोभित हो रही है । कल (27-12-20210) के चर्चा मंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.uchcharan.com

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  11. बहुत सुंदर प्रेम कहानी :-)...कहीं ना कहीं हरेक लड़के और लड़की की जिंदगी में ऐसा ज़रूर घटता है..

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  12. आपके ब्लॉग पर प्रथम आगमन है (सौजन्य से श्री गिरिजेश राव)

    आपके लेखन में कमाल की ताजगी है .....
    अतीत से लगाव सबको होता है और जब कोई अतीत से जुडी बात (किसी की भी) सामने आती है तो मन कुछ ग़मगीन हो जाता है लेकिन ये गमगीयत बहुत सुखद लगती है

    साधुवाद !
    शुभकामनाएं

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  13. आज जाने किस मूड में तुम्हें ढ़ूंढने आया तो नज़्म और कविता वाली को इतनी सुंदर कहानी बखान करते देख हैरत में पड़ गया....

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