कैफे की एक ऐसी ही शाम पश्चिम वाले सोफे पर दो लोग एक खामोशी में अपना रंग घोल रहे थे. कोई पचास की उम्र का बेहद आकर्षक पुरुष, बेफिक्री से रखे बाल जो कि बिलकुल सफ़ेद थे पर आश्चर्यजनक रूप से उसकी उम्र को कम ही करते दिखते थे. गुजरती धूप में उसकी हलकी भूरी आँखों में आसमान का अक्स नज़र आ रहा था. साथ बैठी स्त्री की आँखें एकदाम काली थीं, गाँवों में रात को जैसा आसमान नज़र आता था कुछ साल पहले, वैसी हीं कुछ. संदली रंग का सिल्क का कुरता उसके गोरे रंग को गज़ब का निखार रहा था. इस उम्र में भी उसके चेहरे पर एक बालसुलभ मुस्कान थी जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा दे रही थी. दायें गाल पर पड़ता हल्का डिम्पल और आँखों में थोड़ी चंचलता.
'तो जान, बच्चे तो सेटल्ड हो गए तुम्हारे? अब तो निश्चिन्त लग रहा होगा.'
'पता है शिशिर, मुझे कोई जान नहीं बुलाता'.
'अरे अभी मैंने बुलाया ना! अब तो इतनी जल्दी भी भूलने लगी है, एकदम बुड्ढी हो गयी है तू'
'हाँ, उम्र तो हुयी अब...अब नहीं भूलूंगी तो कब भूलूंगी. अब बच्चे नहीं रहे घर में ना, मन भी नहीं लगता है. कॉलेज में यूँ तो आधा दिन कट जाता है, पर बाकी का पता नहीं क्या करूँ. सोच रही हूँ फिर से क्लास्सिकल म्यूजिक शुरू करूँ, पर पता नहीं अब इतने साल हो गए गाऊँगी कैसा. तू अभी तबला बजा पायेगा क्या?'
'पता नहीं, मुझे भी बहुत साल हो गए...उतना अच्छा तो शायद नहीं बजा पाऊंगा पर शायद बजा लूं थोड़ा बहुत. आजकल राशि को रविन्द्र संगीत का शौक़ लगा है. दिन भर बोलते रहती है पापा वो 'पुरानो शेई डिनर कोथा' सुनाओ ना. ये बैक टू रूट्स वाले अच्छा काम कर रहे हैं ना...वरना कितना कुछ है जो खो रहा है ना. तुम्हें पटना की याद आती है?'
'हाँ आती है ना, पर बच्चे तो बस देखते हैं बस, बिहार की आत्मा को जी नहीं सकते. उनका दोष थोड़े ही है, इस जेनेरेशन को जड़ें समझ में नहीं आएँगी ना, किसी जगह से जुड़ना वहां की हवा, पानी, यादों को पनपने देना...हम इसलिए कर पाए कि बचपन एक जगह गुज़ारा. बच्चे तो इस हजारों देशों के इस शहर से उस शहर के बीच में बस इतना याद रख पाएं कि भारतीय हैं तो बस मेरे लिए काफी है. मेरी निलोफर तो मुझपर गयी है, पुरातत्ववेत्ता बन जायेगी जल्दी ही. कौन कौन से किले, महल, खँडहर भटकती रहती है, रोज आके कहानी सुनाती थी कि मम्मा आपको पता है यहाँ के भगवान लोगों की बीमारियाँ दूर कर देते हैं. उसकी दोपहर वाली गप्पें बड़ी मिस कर रही हूँ आजकल.'
'मेरे घर आ जाया कर, बेटी पता नहीं किसपर गयी है. इतना बोलती है कि चुप होने का नाम ही नहीं लेती, उसको देखता हूँ अक्सर तेरे बचपन की याद आती है. तेरी दो चोटियाँ और कभी ना बंद होने वाला रेडियो. आके उसकी गप्पें सुना कर, लिखती भी है, जाने क्या. मुझे कभी पढ़ाया नहीं पर झुमुक बताती है कि आजकल उसकी सारी कापियों के आखिरी पन्नो में कुछ ना कुछ लिखा मिलता है. तू उसे शायद थोड़ा आइडिया भी दे सकेगी, इतनी उर्जा है कि क्या करेगी कंफ्यूज हो जाती है. कभी बोलती है किताब लिखूंगी, कभी बोलती है फिल्म बनाउंगी...कभी सब कुछ करने का एक साथ सोचती है. हम दोनों मियां बीवी के लिए तो एकदम पहेली है. थोड़ा थोड़ा अब समझ में आता है कि अंकल आंटी एक तुझे बड़ा करने में कैसे परेशान हो जाते होंगे. कभी कभी लगता है कि दिल में इतना चाहता था कि मेरी बेटी तेरी जैसी हो...तो ऊपर वाले ने सुन ली. पता है, आजकल मैं मंदिर भी जाता हूँ उसके साथ कभी कभी.'
'आती हूँ रे, मेरा भी बड़ा मन है उससे मिलने का, बचपन में देखा था...नाक नक़्शे एकदम तेरे जैसे हैं, खास तौर से आँखें. चंचल तो उस समय भी बहुत थी. झुमुक को पूरे घर में दौड़ाती रहती थी. पर बच्चे चंचल ही अच्छे लगते हैं, बड़े होके तो सबकी अपनी अपनी पर्सनालिटी हो जाती है. कितने साल बाद एक शहर में हैं ना हम लोग...बंगलोर अच्छा लगने लगा है, इतने साल बाद लौटी हूँ ना. हरियाली कम नहीं हुयी है एकदम, मेरे कॉलेज कैम्पस में तो ख़ास तौर से, केबिन के आगे खिड़की खुलती है...दिन भर अच्छी हवा आती है और कभी कभी तो गौरेय्या भी अन्दर फुदक आती है.'
'हाँ जान, साल तो बहुत हो गए, मुझे लगता है छह, नहीं आठ साल हो गए...पिछली बार आई थी तो जिनी का दसवां जन्मदिन था. और आज लड़की अठारह की होने वाली है बताओ, सच में बेटियों के बढ़ते देर नहीं लगती.'
'तू मुझे जान क्यों बुलाता है, नाम लेकर नहीं बुला सकता क्या?'
'जान बुलाता हूँ क्योंकि तुझमें मेरी जान बसती है, तुझे कोई प्रॉब्लम है?'
'और झुमुक को क्या बुलाता है?'
'झुमुक'
'अरे, ये तो बेईमानी हुयी ना, बीवी है तुम्हारी वो'
'तो? बीवी में जान बसनी जरूरी है? करता तो हूँ बहुत प्यार उससे, मरता हूँ उसपर...पर जान!, जान मेरी तुझमें बसती है, बचपन का प्यार भूला नहीं जाता रे. तुझे बुरा लगता है?'
'नहीं रे, कभी तेरी किसी बात का बुरा नहीं लगा...तू भी एक पागल है'
'हाँ, और दूसरी पागल तू'
'हम बिलकुल नहीं बदले शिशिर...देख ना, पूरी अच्छी प्यारी जिंदगी गुजरी, तू भी उसका हिस्सा रहा...तेरी जिंदगी में मैं भी रही. सब उतना कॉम्प्लीकेटेड नहीं है जितना लोग बनाते हैं. हमारी किस्मत भी अच्छी थी, हमें लाइफ पार्टनर भी अच्छे, समझदार और इतने प्यार करने वाले मिले'
'हाँ जान'
'फिर'
'फिर क्या?'
'चलते हैं...पार्टी प्लान करनी है ना...तेरे गोल्डेन बर्थडे की, पचास का हो गया तू, बच्चों ने फोन किया था कल...कि पार्टी आप ही अरेंज कीजिये...आपकी पार्टियाँ बेस्ट होती हैं'
'ब्रेकिंग न्यूज़ सुनी, मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ रे, आई स्टिल लव यु जान'
एक मुस्कराहट और उसकी आँखों में देर तक देख के बोली 'पता है मुझे'
awwwwwwwwww...........!!! unreal....sooo sweet. i dunno wut to say. sach, itna complicated nahin hai jitna duniyawale bana dete hain....samajhne wale partners mil jaayein, to sab aasaan hota hai, bas zaruri hai ki sabki soch ek level par ho...
ReplyDeletebohot pyaara wakiya hai, its beautiful
बहुत ही खुबसुरत रचना........प्यार का एहसास है।
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteB'ful story Puja... सच में... सब उतना कॉम्प्लीकेटेड नहीं है जितना लोग बनाते हैं...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लिखा है ....पढते हुए लगा सब कुछ सहज सरल सा है ..
ReplyDeleteछू लिया है इस बार तो..
ReplyDeleteज़िन्दगी के इस मोड़ पर ये बाते.. पढ़ते पढ़ते एक सिरहन चलती रही अन्दर.. बहुत अच्छा लिखा है
लेकिन हाँ 'रे' का उपयोग कुछ ज्यादा है.. जो खटकता है
सफाई देने के लिहाज़ से नहीं...मगर 'रे' का इस्तेमाल ४ बार ज्यादा तो नहीं है कुश!
ReplyDeleteयदि आप अच्छे चिट्ठों की नवीनतम प्रविष्टियों की सूचना पाना चाहते हैं तो हिंदीब्लॉगजगत पर क्लिक करें. वहां हिंदी के लगभग 200 अच्छे ब्लौग देखने को मिलेंगे. यह अपनी तरह का एकमात्र ऐग्रीगेटर है.
ReplyDeleteआपका अच्छा ब्लौग भी वहां शामिल है.
अच्छा तो ये बात..!! सही है जी सही है
ReplyDelete@ kush :) :)
ReplyDelete'तो? बीवी में जान बसनी जरूरी है? करता तो हूँ बहुत प्यार उससे, मरता हूँ उसपर...पर जान!, जान मेरी तुझमें बसती है, बचपन का प्यार भूला नहीं जाता रे. तुझे बुरा लगता है?'
ReplyDelete'नहीं रे, कभी तेरी किसी बात का बुरा नहीं लगा...तू भी एक पागल है'
ये वाक्य किसी संजीदा लघु उपन्यास के बीज से दिखते हैं. फुरसत निकल के लिखना शुरू कर दो. खूबसूरत, बहुत खूबसूरत !
थोड़ा सोचें तो गाड़ी पटरी पर वापस आ भी सकती है।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .
ReplyDeletehttp://charchamanch.uchcharan.com/
bahut sahjata se aapne pyar ko paribhashit kar diya.......
ReplyDeletealoukikta jhalak gayee........
सब उतना कॉम्प्लीकेटेड नहीं है जितना लोग बनाते हैं.
ReplyDeleteयही है सौ बात की एक बात ..
बेहद खूबसूरत लिखा है .दिल को छूता हुआ.
सच में प्यार ही प्यार झलकता है...बड़ा ही प्यारा अनुभव है ये भी..
ReplyDeleteमैं गद्य लेखन में थोडा कच्चा हूँ हालाँकि लिखने को बहुत है मेरे पास, पर लिख नहीं पाता.. पढना तो बहुत ही अच्छा लगता है और आपका और अनिल कान्त जी का लेखन तो बस कायल ही बना देता है....
उम्मीद है मैं भी कभी ऐसा लिख पाऊंगा...अगर कोई स्पेशल टिप्स हो तो ज़रूर बताईएगा..
पूजा, शायद आज ये तुम्हारी पहली ही पोस्ट पढ़ी है.............
ReplyDeleteमन को छु गई.....
पता नहीं अब तक क्यों इस ब्लॉग का पता नहीं चला.....
@एक मुस्कराहट और उसकी आँखों में देर तक देख के बोली 'पता है मुझे'
इस तरह कहानी लिखने का ये अंदाज़ पसंद आया........
बढिया है.
उम्र के उस पहर
ReplyDeleteफिर यही रहगुजर
याद आयेगी हम-तुम
मिले थे कभी.
सच रिश्ते शायद इतने कॉम्प्लीकेटड भी नहीं होते....जितना होव्वा बनाया जाता है......कितना ग्रेसफुली केरी किया दोनों ने ......सोचते हैं! लोग कहानियों जितने समझदार क्यों नहीं होते..... बहुत स्वीट है स्टोरी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट...बहुत स्वीट स्टोरी
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आयें[http ://shikhakaushik666 .blogspot .com ]
बहुत सुन्दर पोस्ट...बहुत स्वीट स्टोरी
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आयें[http ://shikhakaushik666 .blogspot .com ]
behatareen post!!!!
ReplyDeleteकौन कहता है प्यार की एक्सपाइरी डेट होती है?:-)
ReplyDeleteजो सच में किसी को प्यार करता है, वो पूरी दुनिया को प्यार करता है, पूरी कायनात उसके प्यार का हिस्सा होती है और उसका प्यार पूरी कायनात में समाया होता है...
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी सी कहानी है. अपनी-अपनी सी लगी.ये लाइनें बहुत अच्छी लगीं, " देख ना, पूरी अच्छी प्यारी जिंदगी गुजरी, तू भी उसका हिस्सा रहा...तेरी जिंदगी में मैं भी रही. सब उतना कॉम्प्लीकेटेड नहीं है जितना लोग बनाते हैं. हमारी किस्मत भी अच्छी थी, हमें लाइफ पार्टनर भी अच्छे, समझदार और इतने प्यार करने वाले मिले"
काश हर-एक के साथ ऐसा ही हो कि प्यार को समझने वाले मिलें, तो शायद बहुत सी बातें सुलझ जाएँ. ना ?
Spent most of my evening reading you .... awesome ! You are a beautiful writer Puja !
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