कभी पढ़ी थी यह पंक्तियाँ If winter comes, can spring be far behind - Shelly प्रकृति के इस क्रम में इस ब्लॉग पर पलाश के फूल व http://laharein.blogspot.com/2009/03/blog-post_05.html में पलाश के ज़िक्र के बाद तो अप्रैल फ़ूल आना स्वाभाविक ही था इसे यह भी कह सकते हैं - आपने अत्यन्त सादगी से अप्रैल-फूल मनाया (बनाया)!
ज्ञान जी, फ़टाफ़ट स्क्रोल करने के लिये Firefox व Google's Chrome ब्राउज़र में तो बस Space Bar दबाईये। वापस जाने के लिये Shift+Space Bar ।
aap.............................................................................................rupaali ji.........aur............................................................................................pallavi ji.........................................................................................ye sab...............................................................kya kar rahi ho bhyi.............................................................ham bhi ho gaye naa.....................................................................................................april phool.......!!
हमने तो आपकी यह पोस्ट १ अप्रैल को इसलिए नहीं पढ़ी कि आप कही है अप्रैल फूल न बना रही हो ...पर आज ३ अप्रैल को अप्रैल फूल बनाना ...?? आपने अप्रैल फूल बनाने की परम्परा ही बदल दी...अब तो अप्रैल फूल किसी तिथि विशेष को नहीं बल्कि आपकी पोस्ट पढ़ के बनेगे.
अप्रल फूल बनाने का बिजनिस बहुत ही शानदार है इस पर पुस्तक लिखकर उसे प्रकाशित किया जाना चाहएि। मेरे ब्लगा पर भी नजरें इनायत करे। आभारी रहूंगा। अखिलेश शुक्ल् http://katha-chakra.blogspot.com
आपका तरीका वाकई यूनीक लगा.. :)
ReplyDeleteहां, ऐसे ही बन गये । कोई रास्ता हमें भी सुझाईये । आज कई बार मूर्ख बने ।
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ReplyDeleteअच्छा !
अच्छा लगा बनकर..:)
ReplyDeleteएक तरीका और भी है.....
ReplyDeleteये....:D
ha ha waah:)
ReplyDelete)))))) waah waah :)
ReplyDeleteडाक्टर पूजा..आपकी पोस्ट खुलने का इंतजार करता रहा....फ़िर टिपणी बक्सा ..बहुत नीचे चला गया.. पूरे २० मिनट लगे इस काम में..
ReplyDeleteपर बडी शांति मिली.. और इंतजार का महत्व मालूम पडा. और बनने मे बडा मजा आया.:)
रामराम.
दुख गयीं उंगलियां स्क्राल करते करते! शायद मूर्ख बनना यही है! :)
ReplyDeleteकभी पढ़ी थी यह पंक्तियाँ
ReplyDeleteIf winter comes, can spring be far behind - Shelly
प्रकृति के इस क्रम में इस ब्लॉग पर पलाश के फूल व http://laharein.blogspot.com/2009/03/blog-post_05.html में पलाश के ज़िक्र के बाद तो अप्रैल फ़ूल आना स्वाभाविक ही था
इसे यह भी कह सकते हैं - आपने अत्यन्त सादगी से अप्रैल-फूल मनाया (बनाया)!
ज्ञान जी, फ़टाफ़ट स्क्रोल करने के लिये Firefox व Google's Chrome ब्राउज़र में तो बस Space Bar दबाईये। वापस जाने के लिये Shift+Space Bar ।
lo me to aaya hi nahi aap k blog par.......
ReplyDeletedekha meto murkh bana hi nahi....
:)
ठीक है, बन तो गये. बस, याद रखना-कभी तो मौका हाथ आयेगा ही. :)
ReplyDeleteaap.............................................................................................rupaali ji.........aur............................................................................................pallavi ji.........................................................................................ye sab...............................................................kya kar rahi ho bhyi.............................................................ham bhi ho gaye naa.....................................................................................................april phool.......!!
ReplyDeleteझक्कास्।
ReplyDeleteआपके पोस्ट से बडी टिप्पणी तो रूपाली मिश्रा जी ने दे दी ... जैसे को तैसा।
ReplyDeleteअजी हम तो २२ साल से बने हुये है..... चलिये इस बनने बनाये तो आप ने भी बना दिया. ध्न्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteहमने तो आपकी यह पोस्ट १ अप्रैल को इसलिए नहीं पढ़ी कि आप कही है अप्रैल फूल न बना रही हो ...पर आज ३ अप्रैल को अप्रैल फूल बनाना ...?? आपने अप्रैल फूल बनाने की परम्परा ही बदल दी...अब तो अप्रैल फूल किसी तिथि विशेष को नहीं बल्कि आपकी पोस्ट पढ़ के बनेगे.
ReplyDeleteअप्रल फूल बनाने का बिजनिस बहुत ही शानदार है इस पर पुस्तक लिखकर उसे प्रकाशित किया जाना चाहएि। मेरे ब्लगा पर भी नजरें इनायत करे। आभारी रहूंगा।
ReplyDeleteअखिलेश शुक्ल्
http://katha-chakra.blogspot.com
आप तो अप्रैल फूल बना के गायब ही हों गयीं
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