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कितने कितने पुर्जो पर
तुम्हारे हाथों के चलने को
समेट कर रखा है मैंने
कुछ ख़त...कुछ ऐसे ही तुम्हारे ख्याल
और कितने डिज़ाईन फूलों के, बूटियों के
कुछ फिल्मो की टिकटों पर लिखे फ़ोन नम्बर
कुछ कौपी के आखिरी पन्नों पर
पेन की लिखावट देखने के लिए लिखा गया नाम
मैंने हर पन्ना सहेज कर रखा है माँ
और जब तुम बहुत याद आती हो
इन आड़ी तिरछी लकीरों को देख लेती हूँ
लगता है...तुमने सर पे हाथ रख दिया हो
कि अब भी ढूँढती हूँ
रेत पर मैं खुशियों के निशां
मैं अब भी कागजों कि कश्तियाँ देती हूँ बच्चों को
औरअब भी उनके डूब जाने पर उदास होती हूँ
ओ गंगा समेट लो अपना किनारा तुम...
कि जब भी डूबता है सूरज
और लाल हो जाता है पश्चिमी किनारा
यूं लगता है किसी ने फ़िर से कोई लाश बहा दी है
किसी ने फ़िर कोई जुर्म किया है...चुपके से
ओ गंगा समेट लो अपना किनारा तुम...
या कि एक बार आओ...साथ बहते हैं
it hurts...it does
i bleed...and life drains out of me
i lose a part of me
and the departure hurts
rescue me...i say
look around to find a way
blocked pathways
roads lost in wilderness
i feel bad about continuing to live
i try to drown myself in noise
in pain
in hurt
in death
in memories
but i cant
and life hurts
शायद
अब भी बचा है कुछ
जो तुम तोड़ नहीं पाये हो
अब भी
टुकड़े ही हुए हैं वजूद के
कि कोई है जो सम्हाल के रखता है मुझे
आश्चर्य होता होगा तुम्हें
या अफ़सोस...
कि तुम असफल हुए
इश्वर
तुम्हारी सत्ता पर कुछ प्रश्नचिंह
मैं खड़े करती हूँ
सवालों का एक चक्रव्यूह मैं
देखूं कैसे बाहर आते हो तुम
अनगिनत बाणों से
बिंध कर
कैसे महसूस करते हो दर्द
तुम क्या जानो
मौत...
क्या होती है
तुम तो अमर हो
अजन्मा हो...अनाथ का मतलब कैसे समझोगे
जो तुमने पाया ही नहीं उसका खोना कैसे जानोगे
कृष्णा तुम्हारे इतने कारनामे सुने हमने
पर क्यों नहीं एक भी वक्तव्य
यशोदा की मृत्यु पर तुम्हारे क्रंदन का
कैसे भगवान हो?
ख़ुद के लिए कुछ और
और हमारे लिए कुछ और
partiality क्यों करते हो???