16 February, 2008

शायद

अब भी बचा है कुछ

जो तुम तोड़ नहीं पाये हो

अब भी

टुकड़े ही हुए हैं वजूद के

कि कोई है जो सम्हाल के रखता है मुझे

आश्चर्य होता होगा तुम्हें

या अफ़सोस...

कि तुम असफल हुए

इश्वर

तुम्हारी सत्ता पर कुछ प्रश्नचिंह

मैं खड़े करती हूँ

सवालों का एक चक्रव्यूह मैं

देखूं कैसे बाहर आते हो तुम

अनगिनत बाणों से

बिंध कर

कैसे महसूस करते हो दर्द

तुम क्या जानो

मौत...

क्या होती है

तुम तो अमर हो

अजन्मा हो...अनाथ का मतलब कैसे समझोगे

जो तुमने पाया ही नहीं उसका खोना कैसे जानोगे

कृष्णा तुम्हारे इतने कारनामे सुने हमने

पर क्यों नहीं एक भी वक्तव्य

यशोदा की मृत्यु पर तुम्हारे क्रंदन का

कैसे भगवान हो?

ख़ुद के लिए कुछ और

और हमारे लिए कुछ और

partiality क्यों करते हो???

No comments:

Post a Comment

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...