मोरे किसना तूने मुझको कितनी मुश्किल में डाला रे
कौन सा रंग लगाऊँ तुझको...तू क्यों इतना काला रे
लाल रंग ना दीखे तुझपे...हरा रंग भी दीखे ना
कैसे खेलूं तुझसे होली... तू जो इतना काला रे
सुबह से सारी सखियाँ आयीं रंग लिए पिचकारी भी
जी भर खेली उनके संग मैं, भीगी पूरी साड़ी भी
पर जो तुझको रंगा नहीं तो क्या होली की बात
दही बड़ा ज्यों सब डाला पर भूल गई मसाला रे
प्रीत के रंग मैं डालूं तुझपे आ जाओ मेरे किसना
बतलाऊँ कि क्यों होता होली का रंग निराला रे
नीली पीली हरी गुलाबी सारे रंगो में रंग कर
एक दिन तो हो जाती मैं भी काली...तू जो काला रे
Your words can be heard .... can be seen ..... can be felt
ReplyDeleteA beautiful piece....
@kunal,thanks dear. these are the most beautiful words being said about my poem.
ReplyDeletefirst of all the main photographs of your bolg is so appealing....doosri bat aapne ek sajeev chitr kheencha hai ....agle kavita ka intzaar rahega.
ReplyDeleteआपकी ये रचना कल 6 - 3 - 2012 नई-पुरानी हलचल पर पोस्ट की जा रही है .... ! आपके सुझाव का इन्तजार रहेगा .... !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना..
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें!