सोच रही हूँ, कह दूँ तुम्हें।
शाम किसी से बात कर रही थी। देर तक उसकी हँसी किसी की याद दिलाती रही, ये याद नहीं आ रहा था कि किसकी। फिर धुँधलाते हुए याद आयी तुम्हारी। बहुत साल पहले, जब हम बहुत बातें करते थे और तुम बहुत हँसते थे… ऐसे ही हँसते थे तुम। मैं तुम्हें सुन कर सोचती थी, तुम्हारी हँसी का रंग उजला होगा, धुँधला उजला। जाड़ों के कोहरे वाली रात जैसा। मैं तुम्हें दिल्ली में मिलना चाहती थी, कि दिल्ली दुनिया में मेरा सबसे फ़ेवरिट शहर है।
पता है, दिल्ली दुनिया में मेरा फ़ेवरिट शहर क्यूँ है? क्यूँकि दिल्ली वो शहर है जहाँ मैं आख़िरी बार पूरी तरह ख़ुश थी। घर पर माँ, पापा, भाई थे, एक अच्छी नौकरी थी जिसमें मुझे मज़ा आता था, एक बॉयफ़्रेंड जिससे मैं शादी करना चाहती थी, बहुत से दोस्त जिनके साथ मैं वक़्त बिताना पसंद करती थी। सीपी, जहाँ हिंदी की बहुत सी किताबें थीं और मेरे इतने पैसे कि मैं जो भी किताब पसंद आए, वो ख़रीद सकती थी। मेरे पास वाक़ई सब कुछ था।
दिल्ली में आज भी कभी कभी मैं भूल जाती हूँ कि मैं कौन हूँ और बारह साल पुरानी वही लड़की हो जाती हूँ। PSR पर खड़ी, दुपट्टा हवा में लहराते हुए, लम्बे बाल, खुले हुए। मैं उस लड़की से बहुत प्यार करती हूँ। वो मेरे अतीत में रहती है, हमेशा पर्फ़ेक्ट्ली ख़ुश, ख़ुशी की ब्राण्ड ऐम्बैसडर। लोग अक्सर उससे पूछा करते थे, तुम हमेशा इतना ख़ुश कैसे/क्यों रहती हो।
लोग अब नहीं पूछते, तुम हमेशा इतनी उदास कैसे रहती हो। उदासी सबको नौर्मल लगती है। ख़ुशी कोई गुनाह है, कोई ड्रग जैसे। चुपचाप ख़ुश होना चाहिए। बिना दिखाए हुए। ख़ुद में समेट के रखनी चाहिए ख़ुशी।
धुँध से उठती धुन का कवर सफ़ेद है। जैसे तुम्हारे बारे में सोचना। जिसमें कोई मिलावट नहीं होती। कुछ नहीं सोचते उस समय। दुःख, दुनियादारी, टूटे हुए सपने, छूटे हुए शहर, अधूरी लिखी किताब… कुछ नहीं दुखता। बस, तुम ही दुखते हो।
प्रेम में शुद्धता जैसी कोई चीज़ होती है क्या? ख़ालिस प्रेम? बिना मिलावट के। कोई मशीन नाप दे। कि इस प्रेम में कोई ख़तरा नहीं है। ना दिल को, ना दिमाग़ को, ना भविष्य को, ना वर्तमान को, न ज़िंदगी में मौजूद और किसी रिश्ते को…
मैंने समझा लिया है ख़ुद को… कम करती हूँ प्यार तुमसे। नहीं चाहती हूँ तुम्हारा वक़्त। तुम्हारी आवाज़। या तुम्हारे लिखे ख़त ही। तुम्हारे विदा का इंतज़ार भी नहीं है। ज़रा से बचे हो तुम। कलाई पर लगाए इत्र का सेकंड नोट। हार्ट औफ़ पर्फ़्यूम कहते हैं जिसे। भीना भीना… सबसे देर तक ठहरने वाला। देर तक। हमेशा नहीं।
तुम हवा में घुल कर खो जाओगे एक दिन। मेरी कलाई पर सिर्फ़ स्याही होगी तब। मैं ख़ुद ही एक रोज़ चूमूँगी अपनी कलाई। जहाँ दिल धड़कता है। वहाँ। धीरे से पेपर कटर से एकदम बारीक लकीर खींचूँगी। कोई दो तीन दिन रहेगा उसका निशान। और फिर भूल जाऊँगी, सब कुछ ही।
पता है। आख़िरी बार जब तुम मुझसे बात कर रहे थे। मुझे लग रहा था कि जाने ये शायद आख़िरी बार हो। Whatsapp पर तुम्हारे नाम के आगे typing… आ रहा था। मैंने एक स्क्रीन्शाट लेकर रख लिया है उसका। याद बस इतना रहेगा। बहुत बहुत साल बाद भी।
हम बहुत बातें करते थे। हम बहुत हँसते थे साथ में। बस।
हम बहुत बातें करते थे। हम बहुत हँसते थे साथ में। बस।
U r from JNU??
ReplyDeleteNo, I am not.
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