लोग प्यार में ताजमहल दिखाने की बात करते हैं...ये मैं किससे प्यार कर बैठी थी इस बार...और उसे किस कमबख्त से प्यार हो गया था. हम तकलीफों के तोहफे देते थे एक दूसरे को...हमारा हर दर्द दुगुना होता था, एक अपने लिए और एक उसके हिस्से का दर्द भी तो जीते थे हम. एक पुरानी मज़ार थी शहर के किन्ही उजड़ चुके हिस्से में. बेहद पुरानी ईटें और उनमें खुदे हुए कैसे कैसे तो नाम...हमारा पसंदीदा शगल था कहानियां बुनना. साल के किसी हिस्से हमें वहां जाने की फुर्सत मिलती थी...हम किसी ईंट पर लिखे नामों को लेते और उन किस्सों को, उन किरदारों को बुनते रहते...मैं लड़के का किरदार बनाती, वो लड़की का...हम अक्सर इस बात पर भी लड़ते कि जो नाम लिखे हैं वो लड़के ने लिखे हैं कि लड़की ने...ऐसा कम ही होता कि नाम दो हैण्डराईटिंग में होते.
मेरी अपनी जिंदगी थी...उसका अपना काम...अपना परिवार जिसमें एक माँ, दो कुत्ते, एक पैराकीट और अक्वेरियम की बहुत सी मछलियाँ शामिल थीं. दोनों का काम ऐसा था कि हम शहर में होते ही नहीं. वो एक स्पोर्ट्स फोटोग्राफर था मैं एक इंडिपेंडेंट डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर. उसे रफ़्तार पसंद थी...मेरे पास अजीब आंकड़े लेकर आया करता था...जितने देश गया वहां के चकलाघरों के किस्से ले कर लौटा...मुझे बताता था कि औसत कितना वक़्त लगता है एक लड़की को एक ग्राहक निपटाने में...किस देश की वेश्याएं सबसे ज्यादा टाइम-इफिशियेंट हैं. जिन देशों में वेश्यावृत्ति लीगल है वहां की औरतों और यहाँ की औरतों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. वो मुझे कितनों के किस्से सुनाता, उनके नाम...उनकी तसवीरें...उनकी कहानियां. तुम्हारे जाने से उनका कितना वक़्त ख़राब होता है तुम्हें मालूम है? उनका कितना नुक्सान कर देते हो तुम. मगर उसे सनक थी...दिन को जाता और उनके लिए ख़ास फोटो-शूट रखता. मैं उसका एल्बम देखते हुए सोचती जिस्म पर इतने निशान हैं तो आत्मा पर जाने कितने होते होंगे. उनमें अधिकतर ड्रग लेती हैं. अपने जिस्म से भाग कर तो नहीं जाया जा सकता है कभी.
फिर वैसे भी दिन होते जब हम कोई तितलियों सी रंग-बिरंगी कहानी रचते, मगर उसे मेरी कहानियों के अंत पसंद नहीं आते...वो कहता जिंदगी में कभी हैप्पी एंडिंग नहीं होती, ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है. उसके जाने के बाद मुझे उसकी कही कोई बात याद नहीं रहती. कई बार तो यकीन नहीं होता था कि मैं वाकई उससे मिली भी थी. उसकी याद लेकिन हर जगह साथ चलती थी. यूँ याद करने को था ही क्या...एक उसकी आँखों और एक वो लम्हा जब हम जाने किसकी तो बात करते ऐसे उदास और तनहा हो गए थे कि लग रहा था पूरा मकबरा मेरे ऊपर गिर पड़ेगा...उसने कहा था 'यू नीड अ हग' और मुझे अपनी बांहों में समेट लिया था. मैंने उस लम्हे को रेजगारी वाले पॉकेट में डाल दिया था. मैंने कितने शहरों में उस लम्हे को खोल कर देखा...कितने लोगों के साथ उस लम्हे को साझा किया मगर उसका जादू कहीं नहीं जाता.
इस साल हमें एक दूसरे से मिलते हुए दस साल हो जायेंगे...यूँ हमारे बीच रिश्ता कुछ नहीं है सिवाए इस यकीन के कि हम अगर एक शहर में हैं तो एक फोन कॉल की दूरी पर हैं, एक देश में हैं तो एक सरप्राइज की दूरी पर हैं और अगर इस दुनिया में हैं तो एक विस्की ग्लास की दूरी पर हैं...किसी लम्हे...किसी शहर...किसी देश...हम अपने लिए एक ऑन द रॉक्स बनाते हैं तो आसमान की ओर उठा कर कहते हैं...जानेमन...आई लव यू.
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ताजमहल को देखता हुआ शाहजहाँ क्या सोचता होगा? किसी की याद में पत्थर हो जाना भी कुछ होता है क्या? पुराने किले से चलती हवा में किसका नाम आता है? उसके नाम के बाद मेरा नाम लिख दो तो कैसा लगेगा देखने में? उसका नाम कैसे भूल जाती हूँ मैं हर बार...मज़ार पर भटका हुआ, दिया जलाने हो हर शाम आता है, सफ़ेद बाल और लम्बी दाढ़ी वाला, कमर से झुका लाठी के बल पर चलता बूढ़ा...नाम क्या है उसका...और मेरी कहानी में ये कौन सा किरदार आ गया...ऐसे हो नहीं ख़त्म होनी थी कहानी...सब ख़त्म होने के समय जो कहानी शुरू होती है...वो कब ख़त्म होती है? तुम्हारे शहर में मेरे नाम से कोई मकबरा है? नहीं...तो मेरे मरने का इंतज़ार कर रहे हो मकबरा बनवाने के लिए...अच्छा, क्या कहा...तुम मुझसे प्यार ही नहीं करते...यु मीन मेरे मर जाने के बाद मुझसे प्यार नहीं करोगे...ओफ्फो...कहानी ख़त्म हुयी...ये ट्रेलर ख़त्म करो मेरी जान.
दी एंड...
(btw, you know I hate the three dots)
फिल्म की कहानी सा...अब एक फिल्म बना भी डालिये, ३० मिनट की, वीडियो कैमरे से।
ReplyDeleteबेहतरीन किस्सा सचमुच एलबम के लायक
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन क्या आईपीएल, क्या बॉस का पारा, खेल है फ़िक्स्ड सारा - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
उन लम्हों की तरह तुम्हारे शब्दों का जादू भी कम नहीं होता ...
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