वो मुझे ऐसे गले लगाता है जैसे मैं कांच की बनी हूँ...जरा से जोर से टूट जाउंगी...बिखर जाउंगी किरिच किरिच. जितने से मेरी जान चली जाए, उससे बस एक लम्हा ज्यादा रखता है अपनी बांहों में. ऐसा क्यूँ महसूस होता है कि उसने मेरी रूह को छू लिया है? ठीक उस लम्हे, मैं जानती हूँ...मुझे उसे जाने की इजाज़त दे देनी चाहिए.
पहले मुझे लगता था उसके आने का नियत मौसम है. वो हर साल नवम्बर से दिसंबर के बीच कभी आएगा. मगर वो बैंगलोर की बारिश की तरह मूडी होता चला गया है. अब उसके आने का कोई नियत वक़्त नहीं है. हमेशा बिना किसी नोटिस के आता है. ये नहीं कि आने के पहले कोई हिंट दे दे कि मैं तैयार रहूँ...वैसे में चोट ऐसे तो नहीं लगेगी. ऑफिस में काम कर रही हूँ या किसी मीटिंग में हूँ...बात करते करते देखती हूँ तो जिंदगी का फ्रेम ऑफ़ रेफरेंस गड़बड़ा जाता है, ऐसे उसने आने को प्रोसेस नहीं कर पाती है आँखें. दिल पे हाथ रख कर इतना ही कह पाती हूँ...तुम मेरी जान ले लोगे किसी दिन, कसम से.
कभी किसी बहुत बारिशों वाले डिप्रेशन के दिन इस गुलमोहरों वाले शहर में टहलने निकली होती हूँ...एक मिलीजुली गंध होती है...मिट्टी में गिरे फूलों की पंखुड़ियों की. ऐसे में सिगरेट के लम्बे कश खींचती हूँ...कहीं अपनी साँसों को वैलिडेट करती हुयी. लगता है जैसे सांस ली नहीं जा रही तो उस खालीपन को सिगरेट के धुएं से रंगती हूँ...फिर हर सांस महसूस होती है. मेरी पसंदीदा चीज़ों में बारिश रुक जाने के बाद की सिगरेट है. यूँ भी मुझे सिगरेट पीते हुए किसी की कंपनी पसंद नहीं है. तो जब हवा में बेतरह नमी होती है...मूड कुछ अनसुलझा होता है तो मैं कहीं बाहर होती हूँ...ऐसे में उसकी तलाशती नजरें मिलती हैं...सिगरेट के धुएं के उस पार...और वो मुझे देखते ही बाँहें खोल देता है...मैं चाहती हूँ कि अहतियात से उससे गले मिलूं...कि उँगलियों में सिगरेट फँसी हुयी है...कि सीने में सांस अटकी हुयी है...कि दिल की धड़कन...बारिश के बाद किसी पेड़ की डाली को पकड़ कर हिला दो तो पत्तों पर अटकी सारी बूँदें बौछार की तरह गिरेंगी...वैसे ही भीगती हूँ मैं ... अचानक ... सराबोर.
'माय सनशाइन, खुश हो मेरे मौसमों का रंग बदल कर?'. सिगरेट बुझा दी है मैंने. उसके होते हुए मुझे हमेशा यकीन होता है कि मैं हूँ. उसके साथ चलने से कितनी कैलोरीज बर्न होती होगी सोचती हूँ...दिल इतनी तेज़ तो आधे घंटे की जॉगिंग के बाद धड़कता है. साथ चलते हुए तकलीफ ये है कि मैं उसका चेहरा नहीं देख पाती हूँ...मैं किसी जगह उसके साथ थोड़ा वक़्त बिताना चाहती हूँ जहाँ मैं उसे देख सकूं...वो किसी धूमकेतु की तरह है...इतने कम वक़्त के लिए दिखा है कि उसका चेहरा ठीक से याद नहीं लेकिन हर बार जब वो दिखा है मेरी पूरी दुनिया टॉप्सी टरवी कर गया है. वो चुटकी बजाता है और सितारे घबरा कर उसे जगह दे देते हैं...मेरा हाथ अपने हाथ में लेता है तो लकीरें उसकी मन मुताबिक बदल जाती हैं.
मैं उसको लेकर पजेसिव नहीं हूँ. पूछती हूँ उससे कि अब मेरी उम्र हुयी...उसके लिए तो दुनिया की सारी सोलह साला लड़कियां पलकें बिछा कर इंतज़ार कर रही हैं, वो मेरे लिए फुर्सत कैसे निकालता है...क्यूँ निकालता है...इश्क कुछ कहता नहीं...उसकी मुस्कुराहटों में बहुत से राज़ छुपे हैं...मैं देखती हूँ उसे, एक पूरी नज़र...इस साल्ट-पेपर हेयर पर कितनी लड़कियां फ़िदा होती होंगी...उम्र हो गयी है अब उसकी भी. कहीं न कहीं दर्द की एक बारीक रेखा भी दिखती है उसकी आँखों के इर्द गिर्द. मैं उसका हाथ अपने हाथों में लेती हूँ...मैं जानती हूँ. उसकी कद्र अब पहले जैसी नहीं रही. आजकल कितने तरह का गुबार लोग इश्क पर निकालते हैं. दिल टूटने पर भी मैंने इश्क को कभी बुरा-भला नहीं कहा बल्कि हम पुराने दोस्तों की तरह हर हार्ट ब्रेक के बाद साथ ड्रिंक पर चल देते थे. मैंने जब उसके होने की दुआ मांगी थी तभी उसने वादा किया था कि वो मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेगा.
वो बहुत अहतियात से मुझे बरतता है क्यूंकि उसे मालूम है उसके आने से मुझे बेहद तकलीफ होने वाली है...वो बड़े अहतियात से जहर का प्याला मेरी ओर बढ़ाता है. विस्की में घुला धीमा जहर. उसके रहते हुए रगों में घुलना शुरू करता है. मैं इश्क की ओर हाथ बढ़ाती हूँ...
वो मुझे ऐसे गले लगाता है जैसे मैं कांच की बनी हूँ...जरा से जोर से टूट जाउंगी...बिखर जाउंगी किरिच किरिच. जितने से मेरी जान चली जाए, उससे बस एक लम्हा ज्यादा रखता है अपनी बांहों में. ऐसा क्यूँ महसूस होता है कि उसने मेरी रूह को छू लिया है? ठीक उस लम्हे, मैं जानती हूँ...मुझे उसे जाने की इजाज़त दे देनी चाहिए.
aapke articles me Gulmohar bahut aata h. :)
ReplyDeleteyakinan kabhi kabhi sochta hun ki kuchh itna achha likh paun.
badhaiyaan.
बहुत सुंदर
ReplyDeleteकाँच, पारदर्शी भी, टूटने को तैयार भी। जो रंग भर दो, उसे अपना मान बैठता है।
ReplyDeleteबेहद सुंदर....
ReplyDeleteचलो फिर बात शुरू करते हैं हम गुलमोहर की छाँव तले एक प्रवाह जो शुरू होता है कहने का थमता ही नहीं कहने के बाद भी इंतजार रहता है अगली मुलाकात का *****
ReplyDeleteHaan hum sath chalte hue ek doosre ko dekh nahi pate.. Bus chalte chalte ungliyaan choo jaen itta bhar kaafi hota hai.. Chehra ghuma k dekho tho doosre ki nazren nahi milti..
ReplyDeleteYe din tho GULMOHAR aur AMALTAASH k he hain..poore shabaab per hain.. Bus baarishen nahin hain..
Nostalgic. Sepia colored description
ReplyDeleteNostalgic. Sepia colored description
ReplyDeleteओह ...कमेंट लिखने के बाद डिलीट हो गया। अब दोबारा लिखना मुश्किल है। पूजा के गाँव में आकर कुछ बोलने का मतलब होता है धूप को जलाना। धूप बत्ती की ख़ुश्बू ठहरती कहाँ है? झरना जहाँ गिरता है वहाँ पानी के सूक्ष्म कणों का एक बादल सा बन जाता है उस बादल को पकड़ पाना सम्भव है क्या?
ReplyDeleteहाँ ... तो मैं यह कहने वाला था कि इश्क़ के साथ ज़हर पीने की मज़बूरी बड़ी अज़ीब सी लगती है। हालांकि इश्क़ करने वाले तो इसे शहादत की तरह कुबूल किया करते हैं। उनके एक हाथ में होता है दीवानगी का नशा और दूसरे में ज़हर का प्याला। दोनो कुबूल करना इश्कियाना मिज़ाज़ का असली धर्म है। इश्क़ रुलाता भी है जार-जार और गुदगुदाता भी है। इश्क़ नन्हें हाथों में रखा तिलकुट है, इश्क़ पिघलती बर्फ़ है। इश्क़ ज़न्नत से तिज़ारत किये फूलों का गज़रा है, इश्क़ ज्वालामुखी का विस्फोट है। इश्क़ नदी के तेज प्रवाह में बह जाना है, इश्क़ आँसुओं में डूबे अम्मा के चेहरे की याद में उलझ जाना है। इश्क़ अकेले में गुनगुनाना है, इश्क़ रातों में तकिया को भिगोना है ...उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ! ये मुआ इश्क़ न तो जान लेता है, न चैन से जीने देता है!
ReplyDeleteआपके लेखों में से एक सोंधी सी खुशबू आती है। कच्ची माटी की गंध... आप अपने कच्चे लेखों को यथावत जो हमारे सुपुर्द कर देतीं हैं । बिना किसी बनावट के । बिल्कुल नेचुरल ।
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