आजकल मुझे कोई स्क्रीन अच्छी नहीं लगती. घर आते ही लैपटॉप टीवी से कनेक्टेड और गाने चालू. स्क्रीन ऑफ. मोबाईल चार्जिंग पर. किचन में या तो खाना बनाती हूँ या रोकिंग चेयर पर झूलते हुए अख़बार या मैगजीन पढ़ती हूँ. चैन और सुकून लगता है. आज सुबह लैपटॉप खोला लेकिन फिर जैसे इरीटेशन होने लगी. लिख रही थी, सोचा अपलोड कर देती हूँ. कभी बाद में अपनी हैण्डराईटिंग देखूंगी इधर. कोपियाँ तो जाने कहाँ जायेंगी.
ये जो लिफाफा सा दिख रहा है, एक छोटा सा पाउच है, पेन रखने के लिए.
खास नहीं. बस. ऐसे ही.
शानदार | बहुत खूब लिखा | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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वाकई हाथ से लिखना तो लगभग छूट ही गया है। पार्कर मनपसंदीदा पेन था..
ReplyDeleteमजदूर दिवस के उपलक्ष्य में मजदूरी। अब लगता है कि कहीं हाथ से लिखना भूल न जायें..समय बीत गया कि एक पन्ना भी पूरा लिखा हो।
ReplyDeleteयह भी अच्छा प्रयोग है :)
ReplyDeleteवैसे पहले पृष्ठ पर एक छोटा पीला दाग है, शायद दाल का रहा होगा... :)
अज नेट और चैट कम्प्यूटर के दौर में हाथ से लिखा कुछ देखना सुखद है
ReplyDeleteमन कभी कभी एक सा जीवन जीकर उबता है शायद यही स्थिति खुबसूरत लेकिन .....
ReplyDeleteआज की नयी पीढ़ी तो चिट्ठी लिखना जानती ही नहीं। मेरा मन होता है कि अपने बेटे को चिट्ठी लिखा करूँ पर उसे चिट्ठियाँ पढ़ने में रुचि नहीं "इतना वक़्त है ही किसके पास है?" पार्कर मैं भी यूज करता हूँ पर केवल प्रिस्क्रिप्शन लिखने भर के लिये। क्या लेखन की एक विधा अपने अंतिम काल की ओर है?
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