वो बारिशों का मौसम याद है जानां?
कि जब मैंने घबरा के कहा था
मुझे बारिशों से डर लगता है
और तुमने मेरी ठुड्ढी
अपनी दो उँगलियों से
आसमानों की ओर उठा दी थी
बारिश की बूँदें ठंढी थीं
और तुम्हारी हथेलियाँ गर्म
बहुत दिन बीते गुलमोहर देखे
लाल सुलगते अल्हड़पन को
अब भी कभी कभी सुर्ख गर्मियों में
आइसक्रीम खाती हूँ
तो तुम्हारी याद का मौसम
बरस जाता है रातों में
तुम न कहा करते थे
पहली बारिश भी कोई छोड़ता है जानां!
tan-man bhigoti prastuti....
ReplyDeletekunwar ji,
सुन्दर और रोचक रचना. आभार.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर...........सुन्दर अभिव्यक्ति.........
ReplyDeleteमुझे बारिशों से डर लगता है
ReplyDeletebayan karne ka aapka andaz hee juda hai Pooja jee.........kabhee apne yahan(blog par)bhee tashreef le ayeeye pooja jee.
बहुत प्यारी नज़्म ....बारिश की बूंदें ठंडी और हथेलिया गर्म ....अच्छी लगी यह कविता सी ...
ReplyDeleteपहली बारिश निकल जाने के 4 महीनों बाद याद आई। खैर याद आ ही गयी तो उसे कोई छोड़ता है क्या? जोरदार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द एवं भावमय प्रस्तुति ।
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