अभी एक साल से कुछ ऊपर की हुयी है...बोलना सीखा है...थोड़ा थोड़ा बोलने में 'भाभी' तो नहीं बोल पायी...तो इस छुटकी ननद ने भाभी का 'भाभा' बना दिया, और घर में सब अब भाभा बोलके चिढ़ाते हैं. इसने अभी सबसे पहले 'भप!' करना सीखा है. रोती भी रहेगी और कह दीजिये, भप! कर दो गुनगुन तो रोना छोड़ के पहले भप! कर देगी. पूरा घर अब इसी धुरी पर घूमता है. एक नंबर की चटोर है ये गुनगुन, बेबी फ़ूड नहीं खाएगी...शैतान खाएगी क्या...सूपी नूडल, पकौड़ा, पापड़, मिठाई, और उसपर चटकारा भी लगाएगी. इधर हाथ के दर्द से परेशान रह रही हूँ लेकिन भला गुनगुन को गोद में घुमाने के लालच से उबरना मुमकिन है! तो एक दिन दिन भर घुमाए और भर शाम मूव लगा के पड़े रहे. उस दिन से इसका नया नामकरण किये हम 'नौ किलो की बोरिया' और ये बोरिया अपने नाम से बहुत खुश है...दाँत देखिये इसके!
नए ज़माने के बच्चों की तरह, ये गुनगुन भी घर में नहीं रहना चाहती...अभी से घर के बाहर जाने के जिद्द करती है...हमको पूरी उम्मीद है कि जैसे ही इसको अपने चलने पर और अपने दूर तक पैदल चलने के रेंज पर कांफिडेंस होगा ये भी भागना शुरू करेगी और इसको पकड़ पकड़ के लाना एक फुल टाइम काम होगा...और लोग कहते हैं कि औरतें खाली बैठी रहती हैं. गुनगुन का एक और नाम है, वो है 'घर की सबसे बड़ी डिस्टर्बिंग एलेमेन्ट' और ये नाम इसको इसकी घनघोर पढ़ाकू बड़ी दीदी ने दिया है जो दिन भर किताब में घर बनाए रहती है और जिसको जबरदस्ती पढ़ाई से खींच कर बारी बारी सब उठाते थे. सब का काम गुनगुन आसान कर दी है आजकल...इत्ती छोटी सी उम्र से इसको अपनी जिम्मेदारी का अहसास हो गया है. कित्ती गुणी है हमारी गुनगुन.
घर पर इस बार, मैं, कुणाल, आकाश, काजू भैय्या थे...एक साथ सब लोग चले आये तो गुनगुन बहुत रोती रही दिन भर...पर्दा के पीछे जा के 'झात' कर के देखती थी कि हम लोग हैं किधर छुपे हुए. अब इस छुटकी को जल्दी बंगलोर बुलाएँगे. हमको भी तो इसकी बहुत याद आती है.
नये ज़माने के बच्चे बहुत तेज सीखते हैं। गुनगुनजी से सब होशियार रहें।
ReplyDeleteबहुत प्यारी गुनगुन ....अच्छी लगी यह पोस्ट
ReplyDeleteतो भाभा जी, हालचाल निमन बा नू? :)
ReplyDeleteBTW, मामू कि बिटिया बहुत क्यूट है.. गाल खींचने का मन कर रहा है. :)
ReplyDeleteपीडी, तुमको भप! करवा देंगे गुनगुन से, गाल-उल खींचने का मत सोचो. बदमास लड़का!
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