14 June, 2010

कहीं से तो लौट के आओ जिंदगी

बारिशों में खोयी हो
अलसाई सी सोयी हो
थकी हो उदास हो
हाँ, मेरे आसपास हो
वहीँ से लौट आओ जिंदगी

ठहरा सा लम्हा है
भीगी सी सडकें हैं
चुप्पी सी कॉफ़ी है
बुझी सी सिगरेट है
वहीं बिखर जाओ जिंदगी

वो चुप मुस्कुराता है
हौले क़दमों से आता है
छत पे सूरज डुबाता है
अच्छी मैगी बनाता है
उससे हार जाओ जिंदगी

इश्क की थीसिस है
डेडलाइन की क्राईसिस है
जिस्म की तपिश है
रूह की ख्वाहिश है
इसमें उलझ जाओ जिंदगी

शब्द होठों पे जलते हैं
कागज़ पे खून बहता है
आँखें बंजर हो जाती हैं
शहर मर जाता है
अब अंकुर उगाओ जिंदगी

अब भी वापसी की राह तकती हूँ
कहीं से तो लौट के आओ जिंदगी. 

14 comments:

  1. Lovely Poem, no special efforts yet so touching.

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  2. जीवन को जब कहा, ठहर जा, नहीं उसे रुकना भाता है ।
    और हृदय जब भरे उलाछें, सन्नाटा पसरा जाता है ।

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  3. Appne isse bahut achi achi kavitaye likhi hai par ye phir bhi thodi alag thodi pyari si hai :), aajse 11 mahine pahle hum aapse maange the kuch :( aapne abhi tak hamari request par dhyan nahi diya :( please post list of your favorite songs plzzzzzzzzzzzzzzzz

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  4. अब भी वापसी की राह तकती हूँ
    कहीं से तो लौट के आओ जिंदगी.

    sundar kavita...

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  5. kavita ko mjak na bnaye, gambhirta de. achchhe kaviyo ko padhe.

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  6. वाह ही वाह!
    बहुत सुन्दर.

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  7. Nice poem.Some times,it seem that the life has gone missing from the soul.For others,the body lives like machine,but a lifeless soul is nothing less than a frozen corpse.Well keep writing.

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  8. तुम्हारे कितने रंग हैं ? या मास्टरी ??

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  9. वो चुप मुस्कुराता है
    हौले क़दमों से आता है
    छत पे सूरज डुबाता है
    अच्छी मैगी बनाता है
    उससे हार जाओ जिंदगी

    जादू इसे ही कहते हैं??

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