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परिचय
तीन रोज़ इश्क़
08 October, 2007
किसी खिड़की का कांच तोड़ें कोई तो आहट हो
बहुत सन्नाटा है आज मेरे दिल के मकान में
शायद मेरा सोया सा दर्द जाग जाये
सर्द राहों पर उदास सा चल रहा है
लपेट कर पुराना कम्बल, कई जगहों से फटा हुआ
बहुत पुरानी है यादों की सीली हवा, ठंढ लगती होगी
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