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परिचय
तीन रोज़ इश्क़
11 August, 2007
गली में आज चांद निकला...
यूं तो थिरक रही हूँ सारी की सारी मैं...
नज़र आती है बस होठों की एक मुस्कान
जो जाने कब से शरारत से कभी इस कोने तो कभी उस कोने भागादौडी कर रही है
सब कुछ झूठ...सारी परेशानी सपना सी लगती है
सच है तो बस ये की
तुम आ गए हो...
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