न चाहने पर
बहुत क्रूर होता है प्रेम
मुस्कुरा के मांग लेता है,
मुस्कुराहटें
चकनाचूर कर देता है
सपनीला भविष्य
जहरीले शूल चुभोता है
औ सिल देता है होठ
छीन लेता है, उड़ान
रोप देता है यथार्थ पैरों में
न जानते हुए भी
हिंसक होता है प्रेम
नाखूनों से खुरच देता है
आत्मसम्मान
नमक बुरकते रहता है
पुराने, मासूम गुनाहों पर
डाह से जला देता है
रिश्तों की हर डोर
मौत के सातवें फेरे में
अर्धांगिनी को करता सामने
क्षमा करो हे प्रेम!
मैं एक साधारण स्त्री हूँ
मुझसे न पार हो सकेगी
तुम्हारी अग्नि-परीक्षा.
rachna achchhi lagi. prantu maaf karna main aapki bato se sahmat nahi hu. prem krur nahi hota hai. prem to jindgi ka wo ehsas hai jo jine ke andaz ko badal deta hai. kisi ko pa lena hi prem nahi hai. kisi ko khokar bhi hum prem ki bulindiyo ko chhute hai. agar kisi ko pa liya to wo prem ki pariniti hai prem nahi. prem ka sahi matlab kisi se juda rahkar hi samjha ja sakta hai.
ReplyDeleterachna achchhi lagi. prantu maaf karna main aapki bato se sahmat nahi hu. prem krur nahi hota hai. prem to jindgi ka wo ehsas hai jo jine ke andaz ko badal deta hai. kisi ko pa lena hi prem nahi hai. kisi ko khokar bhi hum prem ki bulindiyo ko chhute hai. agar kisi ko pa liya to wo prem ki pariniti hai prem nahi. prem ka sahi matlab kisi se juda rahkar hi samjha ja sakta hai.
ReplyDeleteरचना अच्छी है पर भाव बहुत विरोधाभास लिए हुये है
ReplyDeleteप्रेम और क्रूर दोनो ही ढाई अक्षर
पर दोनो का आपस मे कोई लेना देना नही है
क्योकि प्रेम कभी क्रूर नही हो सकता
प्रेम और क्रूर ?
ReplyDeletesamajh se bahar
बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति ....मुझे लगता है प्रेम के कारण जो भावनाएं पैदा होती हैं और उन स्थितियों में इंसान फंस जाता है उस स्थिति से जो क्रूरता का आभास होता है ..उसके बारे में कवयित्री कहना चाह रही हैं ...और असलियत यह है कि क्रूर तब ही लगता है जब वहाँ केवल प्रेम की भावना नहीं होती ...उसमे स्वार्थ होता है ....जब इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं तो क्रूरता का आभास होता है ...
ReplyDeleteकुछ बातें जो आपने लिखी हैं वो मैं देख चूका हूँ..
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी लगी..
संगीता जी की बातें भी अच्छी लगीं.
भावुक लड़की यथार्थ भी लिखती है...! अच्छा लगा..! आदर्श और सत्य अलग होते हैं, तुमने सत्य लिखा है और मन को छू गया। साधारण स्त्रियाँ समझ सकती है इसे...!! (मेरे प्रोफाइल पर देखना, मैं अपना परिचय ही इतना पाती हूँ, कि एक बहुत सामान्य सी लड़की) शायद इसीलिये अच्छी लगी...!!
ReplyDeleteना ना ...प्रेम उतना भी क्रूर नहीं होता | वो तो संगम है खुशियों और गम का...दोनों साथ साथ चलते हैं...नदी के दो किनारों की तरह .....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में इस बार आशा जोगलेकर जी की रचना |
सुनहरी यादें :-4 ...
प्रेम तो सिर्फ़ प्रेम होता है हमारी भावनायें ही उसे उपनाम देती हैं येहमारी मन:स्थिति होती है हो उसे नये नाम देती है…………ये भी प्रेम का एक रंग है जिसे आपने शब्दो मे बाँधा है ……………
ReplyDeleteप्रेम के बहुत अन्दाज़ होते हैं
सब कहाँ उनसे गुजरे होते हैं
ये कविता, प्रेम को पंथ कराल महा... का आधुनिक रूप है. इस खूबसूरत रचना के लिए आपको बहुत बधाई.
ReplyDeleteप्रेम जब अधिकार को प्राप्त हो जाता है, क्रूर होने लगता है।
ReplyDeleteना जी ना प्रेम तो बहुत सुंदर होता मीठा होता है अपने से ज्यादा दुसरो के लिए जीने और मरने का अहसास कराता है प्रेम
ReplyDeleteइस कविता के भावों से मैं सहमत हूँ. कविता भी बहुत अच्छी लगी. बस इतना ही कहना है.
ReplyDeletelaukik ya parlaukik kisi bhi prem ke liye kya khub galib ne kha hai-" ye isk na hi aasha, bas itna samajh lije, ek aag ka dariya hai aur dub ke jana hai." dub jao,kinare baith kr hisab mat lgao, mujhe vishwas hai nikal jaogi..mat puchhna kyo..
ReplyDeleteBahut Khub
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteप्रवीण जी की बात काबिले गौर है......
ReplyDeleteप्रेम उदार हो तो जीवन स्वर्ग बना जाती है और जब कृपण बन जाए तो इस सा निष्ठुर शायद ही और कोई होता है...
इतर परिभाषा प्रेम की ..
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