17 August, 2009
जिंदगी...तुम जो आए तो
बादलों का ब्रश उठाऊं
रंग दूँ आसमान...
सिन्दूरी, गुलाबी, आसमानी नीला,
तोतई हरा और थोड़ा सा सुनहला भी...
टांक दूँ एक इन्द्रधनुष का मुकुट
उगते सूरज के माथे पर
थोड़ी बारिश बरसा दूँ आज
धुल के निखर जाएँ पेड़, पत्ते सड़कें
खिला दूँ बहुत से फूल रास्तों पर
खुशबू वाले कुछ हरसिंगार...
भीनी रजनी गंधा और थोड़े से गुलाब
आम के पत्ते गूँथ लूँ
थके उदास लैम्पपोस्ट्स पर
बंदनवार सजा दूँ क्या
मौसम भीगा हुआ है आजकल
थोड़ी धूप बुला लूँ, शायद खूबसूरत लगे
क्या करूँ इंतज़ार के आखिरी कुछ लम्हों का
कट नहीं रहे हैं मुझे...
बावली हो गई हूँ मैं जैसे
कल सुबह तुम जो आ रहे हो!
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बहुत खुब... जोरदार है..
ReplyDeleteबहुत खूब.. आपकी बेहतरीन उपमाओं ने इस कविता को बहुत खूबसूरत बना दिया है.. अगर lamposts को लैम्पपोस्ट्स लिखतीं को पठनीयता का क्षणिक अवरोध भी दूर हो जाता.. हैपी ब्लॉगिंग.
ReplyDeleteक्या करूँ इंतज़ार के आखिरी कुछ लम्हों का
ReplyDeleteकट नहीं रहे हैं मुझे...
बावली हो गई हूँ मैं जैसे
कल सुबह तुम जो आ रहे हो!
बहुत सुन्दर,
तब तलक खुद को बीजी रखने का अच्छा तरीका ढूंढ निकाला आपने !
@ ashish ji...change kar diya hai.
ReplyDeleteक्या करूँ इंतज़ार के आखिरी कुछ लम्हों का
ReplyDeleteकट नहीं रहे हैं मुझे...
बावली हो गई हूँ मैं जैसे
बहुत ही खुबसूरत एह्सास को शब्द देकर स्पन्दित कर दिया है भाव को .......
कविता यूं है मानो कैनवास पर कुछ स्ट्रोक्स उकेर दिये हों। बहुत सुन्दा।
ReplyDeleteCongratulation.. :)
ReplyDeleteपूजा यहाँ आप कवि से अधिक चित्रकार लगी. बधाई शब्दों की इस पेंटिंग के लिए जिसमे रंगों के अलावा खुशबू भी बसती है .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
It is very beautiful and as pleasant as like the essence of nature carrying so many emotive colors and graceful shades of life. ...........Thanks Puja . Really its a very natural poem that creates some hidden dots exploring new glances to enhance the joy of natural resources. I hope such kind of privileges would be contd. to me through your poems.
ReplyDeleteकई रंगो से बुनी सुन्दर रचना।
ReplyDeleteतुम आये तो आया मुझे याद...गली में आज चाँद निकला...!किसी का आना शायद इतना ही हसीं होता है....
ReplyDeleteठसके दार कविता है जी। जय हो!
ReplyDelete:)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDelete:) prem aur kalpana ke rangon se saji yeh post behad pyaari lagi...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत कविता जो प्रियतम के इंतज़ार में बुनी गयी
ReplyDeleteBest wishes for mornig...! Ishwar aaj raat ke hours kam kar de aap ke liye... :)
ReplyDeleteaap man se likhti hai yahi ap ki visheshata hai..!
bahut accha likha hai puja ji..............थोड़ी बारिश बरसा दूँ आज
ReplyDeleteधुल के निखर जाएँ पेड़, पत्ते सड़कें
खिला दूँ बहुत से फूल रास्तों पर
खुशबू वाले कुछ हरसिंगार...
भीनी रजनी गंधा और थोड़े से गुलाब..........word nhi hai mere pass aapki tariph kerne ke liye.........god bles u aap aise hi likhti rhe
थोड़ी बारिश बरसा दूँ आज
ReplyDeleteधुल के निखर जाएँ पेड़, पत्ते सड़कें
खिला दूँ बहुत से फूल रास्तों पर
खुशबू वाले कुछ हरसिंगार...
भीनी रजनी गंधा और थोड़े से गुलाब
... बहुत दिनों बाद लगातार खूबसूरती बरसाती ऐसी लाइंस पढ़ी... सुमित्रा नंदन पन्त का 'कला और बूढा चाँद' याद आ गया... ऐसी कवितायेँ सच्ची घटनाओं पर आधारित होती है... तभी सरस झरने कि तरह प्रवाहित होती है... लेकिन एक बात है अगर वाकई ऐसे नज़ारे हो जाये तो... क्या बात हो ! नहीं... ?
bahut sundar.
ReplyDeletedono hi
Wow..what a usage of words you have done in this poem.
ReplyDeleteI wish i could get back that grip that i had long back.
Yours is pure work of hindi and i see no usage of any single urdu word also.
Good word pooja :)
Cheers
वाह ! पूजा। अच्छा लिखा है।
ReplyDeletewaah sunder manbhav hai rachana ke,bahut khub.
ReplyDeleteअपने अहसासों को बहुत खूबसूरत शक्ल दी आपने....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
ati sundar
ReplyDeleteati sundar
ReplyDeleteWell...I wouldn't prefer commenting! That would take away the beauty of ur art!
ReplyDeleteWould just inform that for months, your blog is on my browser's top bookmark, and your blog on my blogroll, since long!!
इंतज़ार में बड़ी क्रियेटिव हो गयी हो पूजा......
ReplyDeleteउफ़ कुछ सुबहे बड़ी हसीन होती है.!!!!!!
ReplyDeleteक्या लिखूं मैं तुमको
ReplyDeleteखुशियों का हास लिखूं
यां कलियों का भाष लिखूं
अपने ह्रदय के उदगार लिखूं
या तुमको अपना आभार लिखूं
सुन्दर रचना
बधाई
किसी को भेज रहा हूँ ये अप्रतिम इंतजार के क्षण बगैर तुम्हारी इजाजत लिये, बस आखिरी पंक्ति को बदल कर "कल सुबह तुम जो आ रही हो" कर के।
ReplyDeleteआज नहीं, कल बताऊँगा "उसे’ कि ये कविता तुम्हारी {एक लौंग-दालचिनी वाली लड़की की} लिखी हुई है।
Its been a long time since I read a hindi poem with a clear progression and control without an overshot of imagination. Very concise. Good work.
ReplyDeletePar comment artharth tippani toh hindi mein hi honi chahiye, isliye yeh rehe mere do amriki paise (here are my 2 cents :) ):
Aksar aapki kavitaey ek umeed ya ek aas se anth hoti hain. Kabhi kisi ke aaney ki umeed se, toh kabhi kisi ke na honay ke gam pe - yeh anth ko aur bhi sundar bana deta hain.
Aapke profile mein dekha ki aap bhi Gulzar sahab ki kavitaey pasand karti hain. Mujhe unke ek kavita ya film ke gaaney ki thodi panktiya abhi tak yaad hain:
Ek woh din bhi thhey,
Ek yeh din bhi hain,
Ek woh raat thi,
Ek yeh raat hain,
Raat yeh bhi guzar jayegi.
:)
हाय राम !!
ReplyDeleteक्या खूबसूरत बेकरारी है जी.
हम भी ललच गए, ऐसे स्वागतम को.
achha laga ye intzaar khubsurat shabdo me dhal jo gya
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