13 August, 2009
गिनती, मैं और तुम
हर तीसरे दिन
मेरा हिसाब गड़बड़ा जाता है
मैं भूल जाती हूँ गिनती...
पलंग पर बिछा देती हूँ
तुम्हारे पसंद वाली चादर
सीधा कर देती हूँ सलवटें
बुक रैक पर तुम्हारी किताबें
झाड़ देती हूँ, एक एक करके
रख देती हूँ उन्हें अपनी किताबों के साथ
फेंक देती हूँ अलमारी में
धुले, बिन धुले कपड़े साथ में
मेरे तुम्हारे...हम दोनों के
जूतों को रैक से बाहर निकाल कर
धूप हवा खिलाने लगती हूँ
और अक्सर बाहर भूल जाती हूँ
जाने क्या क्या उठा लाती हूँ
अनजाने में...तुम्हारे पसंद की चीज़ें
और फ्रिज में भर देती हूँ
सारे कपड़े पुराने लगते हैं
कोई आसमानी रंग की साड़ी खरीदना चाहती हूँ
और कुछ कानों के बूंदे, झुमके, चूड़ियाँ
फ़िर से तेज़ी से चलने लगती हूँ बाइक
भीगती हूँ अचानक आई बारिश में
और पेट्रोल टैंक फुल रखती हूँ
टेंशन नहीं होती है अपनी बीमारी की
लगता है अब कुछ दिन और बीमार ही रहूँ
अब तो तुम आ रहे हो...ख्याल रखने के लिए
कमबख्त गिनती...
मैथ के एक्साम के रिजल्ट से
कहीं ज्यादा रुलाती है आजकल...
हर तीसरे दिन
मैं गिनती भूल जाती हूँ
लगता है तुम आज ही आने वाले हो...
जाने कितने दिन बाकी हैं...
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Nice Blog.
ReplyDeleteशानदार! बेहतरीन अभिव्यक्ति! मन खुश हो गया पढ़कर!
ReplyDeleteक्या बात है ... बहुत खूब ....
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब ..शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत कोमल अभिव्यक्ति. मन ऊष्मा से भर गया.
ReplyDeleteuff..
ReplyDeletehaaye yeh intazaar...aur aapkaa dher saara pyaar... :)
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteवीनस केसरी
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDelete
ReplyDeleteबेकली की इन्तेहाँ .. भई वाह !
नथिंग एल्स, जस्ट सिम्पली सुपर्ब !
हर तीसरे दिन
ReplyDeleteमैं गिनती भूल जाती हूँ
लगता है तुम आज ही आने वाले हो...
==
बेहतर संवेग सम्प्रेषण की अद्भुत शैली है.
बहुत सुन्दर
सुना है इंतज़ार का भी अपना मजा होता है और उसके बाद आने वाले प्यार से मिलने के बारे में ख़याल रूमानी होते जाते हैं :)
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत उदासी
ReplyDeleteउदास कर गई ये कविता
ऑफिस आते वक़्त यही ख्याल आ रहा था अगर आपने कोई पोस्ट लिखी होगी आज तो कुछ बताऊंगा आज
ReplyDeleteआज सुबह जम कर बारिश हुई है...
मौसम हस्सास लग रहा है
सारे पत्ते सीधे खड़े है
और डी पी एस पर का तिरंगा भीगा हुआ शरमा-शरमा कर लहरा रहा है...
ऐसे में गिनती भूल जाना कोई गुनाह नहीं... वाजिब है...
bahut hi sunder
ReplyDeleteghar ke bheetar
bachhon ke khel
apki relampel
sunder kavita
ham kahte : dil jeeta
भावनाओं से ओतप्रोत एक प्यारी सी रचना। बस जल्दी से इंतजार खत्म हो।
ReplyDeleteBAHOT HI SHAANDAAR PRASTURI PUJA JI.. BAHOT PASAND AAYEE YE RACHANAA
ReplyDeleteBADHAAYEE
ARSH
बहुत ही खुबसूरत एहसास है आपके .......कोमलता के साथ उर्जा भी है .......बधाई
ReplyDeleteमुझे पता है की आप हमेशा ही अपने मन की लिखती हैं...तभी ये लिख पाती हैं...मन से लिखने और कलम से लिखने में यही तो वो गहरा फर्क है..जो हम नहीं कर पाते..आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर आभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete्बहुत बढिया!!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteमनभावन रचना...।बहुत खूब।
ReplyDeleteभूलती गिनती, और प्रतीक्षा पर्यायवाची हैं!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
लगता है तुम आज ही आने वाले हो...
ReplyDeleteजाने कितने दिन बाकी हैं...
रूह में हलचल पैदा कर देने वाली कविता है ।
वैसे एक बात कहूँ ....
जितना मज़ा इंतज़ार करने में आता है उतना मज़ा इंतज़ार करवाने में नहीं है कि नहीं.....
Thanks for this poem INTEZAR. one peg of ghazal mixed with 1/2 tea spoon full blank verse poured on the cube of iced Haiku.
ReplyDeleteBrilliant.
बहुत प्यार करती हैं आप... :)
ReplyDeleteTooooo Gud
ReplyDeleteaajkal roz aapka blog khol k nahi dekhti...kaaran aapki ek post padh k man nahi bharta
lagta hai jab 2-3 ikaththi ho jaayegi tab padhungi.
Dil se kahu to bahaut saari baate karne ka man karta hai aapse...fir lagta hai ki aap mujh anjaan se kyu baat karengi..
hum dono mai ek chiz common lagti hai mujhe....humari tanhayi (shayad naa ho)...
पूजा जी, भावनाऒं का बेहतरीन प्रस्तुतिकरण है सचमुच काबिले तारीफ
ReplyDeleteआभार
बहूत खुबसूरत है यह इंतज़ार और इसमें डूबे पल...
ReplyDeleteतुम्हें पढ़ना यूं अचानक से...ऊबे मन को सकून देता है।
ReplyDeletekole को सुन कर डांस करती हुई लड़की नज़्म कहने पे उतरती है तो रूह को थिरका देती है...
god bless you!!!!
तुम्हें पढ़ना यूं अचानक से...ऊबे मन को सकून देता है।
ReplyDeletekole को सुन कर डांस करती हुई लड़की नज़्म कहने पे उतरती है तो रूह को थिरका देती है...
god bless you!!!!
पूजा जी
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ बेहद सच्छी अभिव्यक्तियाँ हैं। पढ़कर इक पल ठहर जाता है मन। कृपया अपनी रचनाएँ, अपना संक्षिप्त परिचय और एक चित्र chiragblog@gmail.com पर भेजें। मैं आपको kavyanchal.com के कवियों में सम्मिलित करना चाहता हूँ।
हर तीसरे दिन
ReplyDeleteमैं गिनती भूल जाती हूँ
लगता है तुम आज ही आने वाले हो...
जाने कितने दिन बाकी हैं...
I just love the closing lines!
GBU
Arti