04 June, 2009
इश्क की उम्र...
सदियों पुराने खंडहरों में
अक्सर अपनी रूह के हिस्से मिल जाते हैं
दीवारों में चिने हुए, चट्टानों पर खुदे हुए
कब के बिसराए हुए गीत
हवा की सरसराहट पर चले आते हैं
और धूल के गुबार में थिरकने लगते हैं
उभरने लगते हैं कुछ पुराने रंग
यादों को छेड़ते हैं अनजान चेहरे
टीसने लगता है जाने किस जन्म का इश्क
उजाड़ मंदिरों में होने लगता है शंखनाद
याद आने लगती हैं दुआएँ मज़ारों पर
साथ बैठा महसूस होता है इश्वर सा कोई
महसूस करती हूँ कि एक जिंदगी से
कहीं ज्यादा होती है इश्क की उम्र
तुमसे बिछड़ने का दर्द कुछ कम हो जाता है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
दर्द भरी यादें और यादों में भरा दर्द..........सुंदर रचना।
ReplyDeleteमहसूस करती हूँ कि एक जिंदगी से
ReplyDeleteकहीं ज्यादा होती है इश्क की उम्र
तुमसे बिछड़ने का दर्द कुछ कम हो जाता है
अद्भुत पंक्तियाँ हैं...बहुत गहरा असर छोड़ जाती हैं पढने के बाद...बहुत शशक्त रचना...
नीरज
महसूस करती हूँ कि एक जिंदगी से
ReplyDeleteकहीं ज्यादा होती है इश्क की उम्र"
जबरदस्त पंक्तियाँ । काफी महसूसियत से लिखी गयी पंक्तियाँ ।
लाजवाब अभिव्यक्ति. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब।
ReplyDeleteजिन्दगी तो है मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी।
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
SHABD KITNI KHUBSURATI SE APNE BHAV KO LEKAR THIRAK RAHE HAI... WAAH...
ReplyDeleteBAHOT HI SUNDARATAA SE AAPNE... GAHARAYEE KI BATEN KI HAI KO MUDDATON BAAD PADHNE KO MILI HAI... DHERO BADHAAYEE
ARSH
तुमसे बिछड़ने का दर्द कुछ कम सा हो जाता है ......ये पंक्ति पसंद आई .....
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है
बस यही एक मेहरबानी की है खुदा ने ...इश्क की उम्र तय नहीं की......करता भी तो ....कोई फायदा नहीं होता.....नसीर तुराबी साहब ने फरमाया है...
ReplyDeleteयही शहर ,शहरे करार है तो दिले शिकस्ता खैर हो
मिरी आस है किसी ओर से मुझे पूछता कोई ओर है
है मुहब्बतों की अमानते यही हिजरते यही कुरबते
दिए बमों दर किसी ओर ने तो रहा बसा कोई ओर है......
गर इस जमीन पर जगजीत सिंह की एक गजल याद आती न हो तो पूछना ....
अनोखे से अहसास और जज्बात।
ReplyDeleteअपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
ReplyDeleteNice poem....
ReplyDeleteउफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ !
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवीनस केसरी
कल्पनाओ को एक नया आयाम -- एक ज़िन्दगी से ज्यादा होती है इश्क की उम्र
ReplyDeleteबधाई
jindgi se jyada hai ishak ki umra tabhi to jinda hai tjmahl bhi tak
ReplyDeleteatisunder rachana.
ये भी अंदाज़ जुदा है..
ReplyDeletenice poem
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
pooja ji
ReplyDeletebahut sundar rachna ..
bahut hi komal ahsaas hai aapki kavita me .. pyaar ka ek manjar saamne aa jata hai ...
badhai sweekar kare...
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
- - - इक आग का दरिया है और डूब के जाना है । सदियों पुराने खंडहरों में ही क्यों, अपने सीने में दबे दिल के खंडहर में भी हुई, चिथड़ा-चिथड़ा ऐसी जाने कितनी तस्वीरें उभर हाती है । यूं ही अनायास, कभी भी । अच्छी कविता है। कविताओं में रुचि है तो कभी हमारे ब्लाग कोलाहल पर भी तशरीफ लाएं, बहुत उत्कृष्ट तो नहीं, पर अपनी तरह की कुछ रचनाएं पड़ी हुई हैं ।
ReplyDeleteitne blog padne ke bad...2 hi log mile jo itna acha likhte hai.....gourav solanki(is best) and pooja....
ReplyDeletesuperb..as usual..aap shabdon aisa gunthti hain ki unse nikal pana namumkin hai :) Dekhiye abhi tak uljha hua hoon..
ReplyDeleteसाथ बैठा महसूस होता है इश्वर सा कोई
ReplyDeletetoo goood....