जाने कब तक याद करती रहूंगी उस दिलरुबा दिल्ली को...कि जिसकी पेंचदार गलियों में हम उफ्फ्फ अपना दिल दे बैठे।
जिंदगी की सबसे खूबसूरत यादें किसी कैमरा में कैद नहीं हो सकती...उन्हें दिल से लगा के रखना पड़ता है...उनकी खुशबू किसी अल्फाजों के तिलिस्म में बंधने को तैयार ही नहीं होती.
मुझे जाने क्यों रात हमेशा बड़ी प्यारी और खूबसूरत लगती है...उसपर दिल्ली की वो सर्द कोहरे वाली रातें। इंडिया गेट पर दोस्तों के साथ देर रात बैठ कर अपने स्कूल या कॉलेज के किस्से बयान करना...आहा वो काला खट्टा वाला बर्फ का गोला खाना, उफ़ वो स्वाद भला मैक डी के आइसक्रीम में आएगा कभी। बैलून खरीद कर सबके साथ खेलना, मारा पीटी करना...रेस लगाना और वो टूटे फूटे गानों के साथ अन्त्याक्षरी खेलना...वो गाने जो किसी फ़िल्म के नहीं, वो बोल जो किसी गीतकार ने नहीं लिखे...वो चाँद गाने जो दिल की धड़कनों से उठते थे...वो खोये हुए बोल...वो गुमी हुयी धुनें।
रास्ते भर कार में बजती वो गजलें या कोई शोर शराबा सा पंजाबी गीत...और हाँ उन दिनों...तारे ज़मीन पर का गाना कितना सुना था...तू धूप है...छम से बिखर, तू है नदी ओ बेखबर...अब भी कहीं भी ये गाना बजते सुनती हूँ तो मन उसी nh8 पर पहुँच जाता है। कमबख्त ये दिल्ली पीछा छोड़ती ही नहीं, कहीं भी जाओ।
वो दिन जब आधे दोस्तों की प्रेमकहानी में कोई ना कोई ट्विस्ट चल रहा था, और हम सब मिल कर उपाय ढूंढते रहते थे...वो दिन जब दोस्ती सबसे कीमती चीज़ होती थी दुनिया में और वो चंद लम्हे दिन भर की थकान उतारने का सबब।
पंख लगा के उड़ने वाले वो दिन...जब जिंदगी का नशा हुआ करता था और खुशियाँ सर चढ़ कर बोलती थीं...जब किसी की एक नज़र का खुमार हफ्तों नहीं उतरता था...जब आइना किसी भी हालात में आपपर मुस्कुराता था...जब कुछ भी पहन लो आखों में खिलखिलाहट होती थी।
उफ्फ्फ्फ्फ्फ
दिल्ली तेरी गलियों का...वो इश्क याद आता है
जिंदगी एक दौड़ है । दौड़ना है । अपने से ही जीतना है । अपने से ही हारना भी है । जिंदगी का सबसे बड़ा रहस्य तो यही है ,जिसे हम जान नही पाते । .........
ReplyDeleteइस भागदौड़ भरी जिंदगी में कभी फुर्सत मिले तो सोचे न इन सब चीजो के बारे में.......
ReplyDeleteआजकल तो ऐसा है की जो बीत गयी सो बात गयी .........
मैंने भी महसूस किया है दिल्ली की गलियों का वो इश्क
ReplyDeleteजीवन चलायमान जो है.
ReplyDeleteदिल्ली पीछा छोड़ती ही नहीं ।
ReplyDeleteजौक ने भी कहा है न - कौन जाए जौक ये दिल्ली की गलियाँ छोड़कर
ReplyDeleteहमारी दिल्ली तो है ही ऐसी, बिना किसी का जात, धर्म, पेशा देखे सबको गले लगाती है.
और दिल्ली में भी खासकर कॉलेज के बिताए गए दिनों का तो क्या कहना.
हमारे जेएनयू में तो कई लोगों को इन पलों के मोह ने इतना मारा कि पीएचडी करके यहीं चाय बेचने लगे.
विश्वास न हो तो यहाँ देख लें - www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2006/08/060805_phd_dhabha.shtml
BAHOT BADHIYA TARIKE SE AAPNE BAANDHA HAI IS SASMARAN KO... HAAY YE DILLI... ISKI PECHDAAR GALION ME HAM BHI APNA DIL KHO BAITHE HAI...
ReplyDeleteARSH
ये सब दिल्ली के पानी का असर है। जो अपने पास बार बार बुलाता है।
ReplyDeleteदिल्ली तो साडी दिल्ली है .कहाँ जाए ..इसको छोड़ कर अब :) दिल्ली की हवा दिल वाली है इस लिए याद आती है बार बार :)
ReplyDeleteमेरे पास ऐसी यादे तो नही है पर आपकी यादो ने मुझे उस तिलिस्म मे झाकने का मौका जरुर दिया है ........ अच्छी यादे है..........जो पुरी तरह से अपनी है जिसमे कोई बनावट नही है........
ReplyDeleteफुर्सत को तो देखे अर्सा हो गया। अब तो न रंग याद रहा न महक!
ReplyDeleteवैसे तो हर आदमी की एक दिल्ली होती है जो कभी उसका पीछा नहीं छोड़ती पर आपकी दिल्ली याद रहेगी.
ReplyDeleteऐसा हर किसी के साथ होता है
ReplyDeleteजिंदगी के वो चंद लम्हे , वो बेशकीमती लम्हे जब दिल आजाद होता है , जहाँ भी गुजार लिए जाते हैं हमेशा हमेशा के लिए जेहन में बस जाते हैं
आपकी यादें पढ़ कर वो गाना याद आ गया
बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी
शायद इसीलिये दिल्ली दिल वालों की है? वो भी एक दौर था.
ReplyDeleteरामराम.
शायद इसपे ही किसी ने कहा है... "उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, ना जाने किस गली ज़िन्दगी की शाम हो जाए."
ReplyDeleteनोस्टाल्जिया छोटी छोटी बातों को कीमती बना देता है ना।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteदिल्ली तेरी गलियों का...वो इश्क याद आता है
ReplyDeleteये एक लाइन ही कितनी बाते कह जाती है..
खूबसूरत रोमानी यादें।
ReplyDeletebaithey rahey tassavurey jaanaa kiye hue :)
ReplyDeleteये इश्क दिल्ली का या किसी शहर का नहीं है डा. साहिबा.. ये इश्क है अल्हड़पन वाले दिनों का.. जब हम बिना किसी बात के दोस्तों से लड़ते थे, फिर उसी दोस्त को मनाने के लिये जाने क्या-क्या जुगत लगाते थे और जब वो मान जाये तो हम भी रूठ जाते थे कि भला कोई हमें भी तो मनाओ.. ये इश्क है इश्क वाले दिनों का, जो किसी शहर के अनुरूप नहीं होता है.. वो इश्क तो जिस शहर में पलता-बढ़ता है उसी शहर से हमें इश्क हो जाता है..
ReplyDeleteउस जगह या शहर का नाम हम तुम कुछ भी दे दें.. कुछ के लिये वह दिल्ली है, कुछ के लिये पटना है, कुछ के लिये बैंगलोर तो कुछ के लिये कोई और शहर.. :)
जाने क्या-क्या खयाल करता हूं,
ReplyDeleteजब शहर से तेरे गुजरता हूं।
ज
पुरानी यादें संभाल कर रखनी चाहिए जब हम उदास होते हैं तो उन यादों को याद करके मुस्कुरा उठते हैं
ReplyDeleteवाकई ओल्ड इज गोल्ड
आपकी पोस्ट को पढ़कर आपके लिए मेरा अभी का लिखा शेर आपकी नज़र।
ReplyDeleteन जीन दी सुध, न मरन दी चाह
इह इश्क़ बड़ा है बेपरवाह
इह वसिया मेरी रूह दे अंदर
जो डंगदा मैनूं मेरे हर साह
माफ़ी चाहता हूं पंजाबी हूं इसलिए पंजाबी में ही आया है ये शेर ज़हरन में। मगर है सिर्फ़ आपके लिए
या यूँ भी कह सकते हैं-" कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन..." दिल्ली है ही ऐसी जगह हमारी तो सारी मधुर यादें वहीं बसी हैं यहाँ परदेस में तो बहुत ही याद आती है कहाँ यहाँ का अकेलापन कहाँ दिल वालों कि दिल्ली दोस्तों से सराबोर...
ReplyDeletepooja G apka dyanyavad. kyoki apki post padhkar ek sher bana aur usne ek rachna ka roop le liya.
ReplyDeleteबात जगह की नहीं होती,स्थान विशेष पर समय विशेष में अपनों का साथ स्थान और समय को विशेष बना देते हैं....
ReplyDeleteउसी जगह पर वर्षों बाद बिना उन अपनों के जाकर देखें....सब कुछ कितना नीरस लगेगा...
sach kahoon to dilli se meri buri yaadein zyaada aur meethi yaadein kam judi hai..par fir bhi ek lagaav mahsoss hota hai is sheher se...
ReplyDeletevaise dosto ke saath masti ke ye pal "timbaktoo' me bhi guzre to wo jagah bhi khaas lagegi :)
हम तो वैसे ही तुम्हे दिल्ली की दीवानी कहते है.....वैसे अपुन तो दो नहीं ढाई दिन के लिए उस शहर में चले ...जहाँ शायद उन दिनों की कोई धूप मिल जाए तो किसी लारी पे वो ऑमलेट पाव !
ReplyDeleteदिल्ली तेरी गलियों का...वो इश्क याद आता है
ReplyDeletekabhi mausam kabhi sawan
suhana yaad aata hai.......
Achchha likha hai aapne .
Navnit Nirav
जिंदगी की सबसे खूबसूरत यादें किसी कैमरा में कैद नहीं हो सकती...उन्हें दिल से लगा के रखना पड़ता है...
ReplyDeleteजी.. बिल्कुल ऐसी ही है अपनी दिल्ली.. आपकी लिखावट ने दिलवालों की दिल्ली को और भी खूबसूरत बना दिया..
ReplyDeleteपूजा,
ReplyDeleteमैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा लगा।
आप मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा लगेगा
और अपने विचार जरूर दें।प्लीज.............
मैं यहाँ एक बात बताना चाहूँगा, मैनें एक गीत
बी०एस-सी० के दौरान लिखा था, फ़ेयरवेल पार्टी
के लिये,मेरे दोस्त फ़ूट फ़ूट कर रो पडे़ थे.आप
की कालेज जीवन की बातें सुनकर यादें ताज़ा
हो गयीं।thanks......i like it.
so true nd so beautiful.... sach dilli vaisa hi hai jaisa aapne bayaan kiya... aur shayad isse bhi zyada khoobsoorat.... dilli se judaa har vyakti(phir chahe veh kitne hi chote antaraal ke liye judaa ho) use, dilli se ishk naa ho aisa ho hi nahin sakta....
ReplyDeleteloved the way u have penned down ur love.......:)
kuch ajeeb si jageh hai dilli.. napasandgi ki wajeh hone pa rbhi yaad aati hai.....
ReplyDeletekuch ajeeb si jageh hai dilli.. napasandgi ki wajeh hone pa rbhi yaad aati hai.....
ReplyDeletekuch ajeeb si jageh hai dilli.. napasandgi ki wajeh hone pa rbhi yaad aati hai.....
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