20 January, 2024

ये क़त्ल-ए-ख़ास था।


जिस
दुनिया में औरतों को इंसान होने भर की इजाज़त नहीं मिलती। उसे उसी दुनिया में ईश्वर होना था। ऐसा ईश्वर जिसे पाप का भय नहीं था। कृष्ण की तरह।तुम सब छोड़ कर मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हारे सारे पाप क्षमा करता हूँ।’ 

सारे इकट्ठा हुए पाप जाते कहाँ थे? क्या उसकी दुनिया का चित्रगुप्त दारू पी कर हिसाब में गड़बड़ कर रहा था?


अजीब दुनिया थी। सब उलट-पलट था जहाँ। वो कहकाशां को हुक्म देती तो उसके पैरों के नीचे घास के गलीचे की जगह बिछ जाता। 


उम्र भर हुस्न की जिस खुख़री को उसने अपने गले पर रखा हुआ था कि जान दे देंगे, मर जाएँगे। आख़िर को उसे समझ गया कि उसके जान देने से किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़तातो उसने बस इतना किया कि खुख़री अपनी गर्दन से हटा ली और हाथ में थाम ली


ये क़त्ल--ख़ास था। 


सिर्फ़ बहुत ख़ास लोगों को उसके हाथों, उस बदन की धारदार खुख़री से कट कर मर जाने का सौभाग्य मिलता था। उसके हाथों में सुलगायी सिगरेट से दागे जाने को लोग क़तार लगा कर खड़े रहते। 

तुम कोई दाग तो दे दो, कि तुम्हें याद रख सकें!’ उसके प्रेमी उसके पास ब्रेख़्त के गोदने गुदवाए आते, “what’s left of kisses, wounds however leave scars”. औरत को रूह पर ज़ख़्म देने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने प्रेमियों के बदन के तिलिस्म को तोड़ावहाँ उसके दांतों के निशान थे, “you hurt me here”. ये नॉर्मल हिकी नहीं थी कि पंद्रह दिन में मिट जातीये जन्मपार के ज़ख़्म थे। लोग कई जन्मों तक उन birth marks के साथ पैदा होते। उसके होठों ने जिसे छू लिया होता, उसकी रूह का एक हिस्सा उस ज़ख़्म को अपने भीतर संजो के रख लेता। कि उसे पास देने के लिए प्रेम था ही नहीं, सिर्फ़ ज़ख़्म थे और दुःख था। 


दुःख कि जो गाइडेड मिसाईल की तरह कई जन्मों तक पीछे लगा रहता। नवजात के जन्मते ही लोग सीना देखते, वहाँ टहकता हुआ ज़ख़्म होता। अधूरे इश्क़ का। 


जिन्होंने भी उसे कभी भी छुआ होता, उनपर दाग होता। सिगरेट पीने वालों की उँगलियाँ सियाह होतीं। चूमने वालों के होंठ। और जो बदनसीब उसके साथ हमबिस्तर हुए होते, वे हिजड़े पैदा होते। कि उन्हें उसके बाद किसी औरत के साथ जिस्मानी सम्बंध बनाने का सुख मिलता ही नहीं। 


जिन्हें उसने छुआ भी नहीं, सिर्फ़ बहुत क़रीब से देखा हो, वे ऐल्बाइनो पैदा होते। उनके बदन में कोई स्याह रंग होता ही नहीं। वे इतने सफ़ेद होते कि उमर भर धूप से भागे भागे फिरते। रात में ही देख पाते वे दुनिया अपनी लाल-लाल आँखों से। रात के इन बाशिंदों से धूप की कोई राजकुमारी कभी प्यार नहीं करती फिर। 


उसके साथ सिगरेट पिए लोगों को आग से इतना डर लगता कि वे शादी की रस्म तक नहीं निभा पाते कभी। अग्नि के फेरे लेने के नाम से उन्हें भय ऐसा दबोचता कि वे अविवाहित ही नहीं कुँवारे रह जाते। 


ऐसी औरत सिर्फ़ कहानियों में ज़िंदा रह सकती थी। लेकिन लड़की के पास इतना समय कहाँ कि जिलाए उसे साँस साँस। रचे उसके लिए प्रेमी। बनाए शहर। लिखे मौसम। तो कहानियों की ये औरत पैदा होने के पहले मर जाती। जबकि, क़सम से, लड़की चाहती कि इस औरत के सफ़ेद होते बालों को को देखे और  पूछे उससे ही...कहाँ से आती है उत्कट जिजीविषा? प्रेम के सिवा जीवन का कोई और अर्थ है भी?



09 December, 2023

अधूरी कहानियों के सल्तनत की शहज़ादी

 


उम्र का तक़ाज़ा है। हम बहुत कुछ भूलने लगे हैं। चीज़ें कहीं रख कर भूल जाना। शहरों में अकेले जाती और अकेले लौटती हूँ तो कोई कमरे से निकलते हुए नहीं कहता, ठीक से देख लो, कुछ छूट तो नहीं गया। हम उन शहरों में छूटे हुए रह जाते हैं। कभी रातें छूट जाती हैं, कभी सुबह। कभी कोई मौसम रह जाता है बिना ठीक से देखे हुए। हम उस अनदेखे मौसम को अपने कपड़ों में टटोलते रहते हैंकि सिल्क की इस साड़ी को तो उस शहर की आख़िरी डिनर पार्टी में पहनना था। कैसे भूल गयी मैं। बहुत साल पहले एक कहानी पढ़ी थी, जिसमें दो लोग एक साथ चल रहे थे। ठंढ के दिन थे इसलिए लड़के ने लड़की का हाथ पकड़ पर अपनी कोट की जेब में रख लिया। वह लड़की जब उसके जीवन से जा चुकी थी, तब भी उसके उस कोट में उसे लड़की का हाथ महसूस होता था। 

मैंने उसे पहली बार देखा तो उसने काला कोट पहना हुआ था। उसके इर्द गिर्द वसंत की ख़ुशबू थी। आसमान में मेरी पसंद के फूल खिले थे। उसके पैरों तले घास का ग़लीचा था। मैं उसे दुनिया से छुपा कर देखना चाहती थी, इसलिए मैंने हम दोनों के इर्द गिर्द धुएँ का एक पर्दा खींच दिया। मैं भूल गयी हूँ कि मैं उससे पहली बार कितने साल पहले मिली थी। कि पहली बार मिलते हुए ऐसा लगा कि मैं उसके इर्द गिर्द हमेशा से रही हूँ। उस छूटी हुयी सिगरेट की तरह जो बेहद ख़राब आदत थी। 


उसकी सिफ़ारिश करते हुए उसके एक परिचित ने कहा कि वो अच्छा आदमी है। उसका परिचित शायद अच्छा आदमी रहा होगा। अच्छे आदमी दूसरे अच्छे आदमियों की यह कह कर तारीफ़ करते हैं कि वो अच्छा आदमी है। ख़राब लेखक, ख़ूबसूरत महबूब को दिल और क़िस्सों में बसाए रखते हैं, उसके अच्छे या ख़राब आदमी होने से बेपरवाह। 


***


यह शहर बेहद ठंढा है। इसकी तासीर भी और इसका मौसम भी। 

आजकल तो टेम्प्रेचर-कंट्रोल्ड स्विमिंग पूल का पानी भी ठंढा रहता है।


मुझे फ़ुरसत मिली तो मैंने धुएँ से रचे हाथ से सिगरेट छीन के पीने वाले दोस्त। कि उँगलियों में उलझ जाए उनकी बदमाशी, आँख में ठहर जाए उनकी मुस्कान। हम सोचते रह जाएँ कि ख़ूबसूरती का गोदाम तो आज ही शाम को हमने लूटा है, तो फिर आज इस ख़ुराफ़ाती के चेहरे पर इतनी रौशनी कैसे है। हम मजाज़ का शेर भूलना चाहते हैं सड़क क्रॉस करते हुए ही, “हुस्न को शर्मसार करना ही इश्क़ का इंतिक़ाम होता है।” 


***


वैसे तो आज क़ायदे से इक आध छोटा मोटा गुनाह कर लेना चाहिए।

क्या है आज मेरे उस नालायक दोस्त का जन्मदिन है, जो भगवान क़सम, इतना भला है कि हरगिज़ कभी नरक नहीं जाएगा। उसके बिना तो हमारा मन लगेगा ही नहीं। तो ऐसा करते हैं, आज कुछ गुनाह कर लेते हैं, और उसके बही-खाते में लिखवा देते हैं, बतौर तोहफ़ाकि तुमसे तो होगा नहीं। दोस्त आख़िर होते किस लिए हैं। इतना सारा अधूरा इश्क़ कर कर के छोड़े हो इस जन्म, सब को मुकम्मल करने के लिए मल्टिपल जन्म तो लेना ही होगा तुमको। 


***


अधूरी कहानियों की एक सल्तनत थी। वहाँ की एक शहज़ादी थी। जिसके इर्द गिर्द कच्ची कहानियों के मौसम रहते थे। उसकी ज़ुबान पर टूटी-फूटी शायरी के मिसरे भटकते रहते थे। कभी कुछ पूरा नहीं करती। उसका दिल भी क़रीने से ठीक ठीक पूरा टूटा नहीं था। 


वहाँ कुछ क़िस्से लूप में चलते थे, कुछ गाने लूप में बजते थे और कुछ लोगों को उमर भर उन्हीं लोगों से बार बार प्यार होता रहता था, जिनसे एक बार भी नहीं होना चाहिए था। 


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