क्राकोव...पोलैंड.
9:34 am
कल मेरा क्राकोव में पहला दिन था...मैं अधिकतर ट्रैवेल डायरीज नहीं लिखती...पर पुराने अनुभव को देखते हुए पाती हूँ कि अगर न लिखूँ तो बहुत सी चीज़ें भूल जाउंगी. इसलिए इस बार जो चीज़ें मुझे सबसे अच्छी लगीं उनको यहाँ सहेज कर रख रही हूँ.
पिछले कुछ दिनों में मैं बैंगलोर से मुंबई...वहाँ से दुबई...वहाँ से म्यूनिक और आखिरकार क्राकोव पहुंची हूँ. पोलैंड आने का प्लान दो बार कैंसिल होकर ये तीसरी बार फाइनल हुआ है. इस बीच एयरपोर्ट पर घंटों का इन्तेज़ार था...म्यूनिक में हमारा वीसा लग गया था तो हम एयरपोर्ट के बाहर इंतज़ार कर रहे थे. वहाँ एक छोटा सा मेला लगा हुआ था...लाजवाब किस्म की अल्कोहल पीते हुए और जादू के कारनामे देखते हुए वक्त कैसा कटा मालूम ही नहीं चला. म्यूनिक की शाम मेरी अब तक की देखी हुयी शामों में सबसे खूबसूरत थी. वहाँ सूरज की रौशनी कम ही नहीं हुयी...पूरा चमकता हुआ गहरा नारंगी सूरज डूब गया...पूरे आसमान को गहरा नारंगी करते हुए.
हम क्राकोव रात के बारह बजे पहुंचे. अधिकतर मैं किसी देश जाती हूँ तो वहाँ के बारे में अच्छे से पढ़ कर जाती हूँ...पर पोलैंड का प्रोग्राम इतनी बार कैंसिल हुआ कि यकीं ही नहीं था कि आयेंगे भी...तो बिना कुछ पढ़े आ गयी. सुबह मुझे पीने का पानी और सिम कार्ड खरीदना था तो होटल से निकल कर मार्केट स्क्वायर की ओर चल पड़ी. मार्केट स्क्वायर के बीच में एक फाउंटेन है...मैं फोटो खींच रही थी तो देखा कि एक ग्रुप है जिसमें एक बोर्ड उठाए एक लड़की लोगों को जगह के बारे में बता रही थी...बोर्ड पर लिखा था 'Freewalkingtour Join Us'. मैं अधिकतर गाइड नहीं लेती हूँ...खुद घूमने में अच्छा लगता है...पर वहाँ जो लड़की खड़ी थी उसके बात करने का ढंग निराला था. मैं ग्रुप के साथ हो ली.
हमारी टूर गाइड का नाम अलीशिया था...जिंदगी से भरी हुयी...पोलैंड के बारे में गर्व और प्यार से बात करती हुयी...इतिहास की कहानियों को वाकई कहानी की तरह सुनाती...उसने हमें पोलैंड का इतिहास बताया...राजाओं के किस्से बताये...नाज़ी जर्मन के अत्याचार बताए और ये सब थोड़ी सी मुस्कराहट के साथ कि बोझिल न हो...इतिहास मुझे सबसे बोरिंग सब्जेक्ट लगा था...कि इतिहास में क्यूँ रूचि होगी...मगर इतिहास ऐसे पढ़ाना चाहिए. पोलैंड पर और पोलिश लोगों पर कितने अत्याचार हुए...उन्हें सुनाने के दो तरीके हो सकते थे...एक तो फ़िल्मी देवदास टाइप रोना धोना...कि हमारी दुखभरी गाथा...एक था थोड़ा हँसी मजाक करते हुए...अपनी जिंदगी से जोड़ते हुए किस्से बुनना...अलीशिया ने वही किया. हँसते हुए उसने सारी कहानियां सुनायीं. उनमें से कुछ मेरी सबसे पसंदीदा मैं आपसे शेयर कर रही हूँ. ये मैंने जो सुना उस याद पर लिखा गया है...तो गलत हो सकता है...पोलिटिकली गलत हो सकता है वैसे में कृपया बता दें ताकि मैं बदलाव कर सकूं.
अलीशिया के हिसाब से...पोलिश लोग बहुत शिकायत करते हैं...ये अच्छा नहीं है...ये खराब है...खोट निकालते रहते हैं...लेकिन जैसे ही वो चीज़ उनसे छीनने की कोशिश करो...वो उसके लिए जान लगा देंगे...फिर वही चीज़ उनको जान से प्यारी हो जायेगी. ऐसा यहाँ की हर इमारत के बारे में किस्सा है.
क्राकोव के मार्केट स्क्वायर में एक टावर है...पहले यहाँ एक पूरी इमारत थी...यहाँ का टाउनहाल, मुख्य ईमारत के साथ लगे कुछ छोटी इमारतें भी थीं. नाज़ी छोटी इमारतों को गिरा कर एक आडियल टाउनहाल बनाना चाहते थे मगर पूरी इमारत कुछ ऐसी गुंथी हुयी थी कि बराबर की बिल्डिंग्स गिराने के क्रम में पूरा टाउनहाल गिर गया और अब बस एक टावर बचा है...और बचे हैं टाउनहाल की नींव. बिल्डिंग की नींव में लोगों के मनोरंजन का इन्तेजाम था. एक तरफ थे यातनागृह...टॉर्चर चेम्बर्स...एक्सिक्युशन चेम्बर्स और एक तरफ थे बार जहाँ यूरोप की सबसे अच्छी बियर मिलती थी...इन दोनों चेम्बर्स के बीच एक खिड़की खुलती थी...ताकि आप अपना बियर एन्जॉय करते हुए लोगों को मरते हुए देख सकें...ये लिखते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं. ये खिड़की यहाँ की सबसे प्रसिद्ध खिड़की थी.
जब नाज़ियों ने पोलैंड पर कब्ज़ा कर लिया तो हिटलर नहीं चाहता था कि पोलिश लोग पढ़ें...वो सिर्फ सस्ते कामगारों की तरह उनका इस्तेमाल करना चाहता था. उसने एक बार पोलैंड के सारे अच्छे साइंटिस्ट और प्रोफेसर्स को बुलवाया कि एक कोन्फेरेंस है जहाँ उन्हें जर्मन कल्चर के बारे में बताया जाएगा...फिर उसने उन सबको कंसन्ट्रेशन कैम्पस में भेज दिया. पूरा यूरोप सन्न रह गया क्यूंकि उस समय वैज्ञानिकों को संत के जैसा दर्जा दिया जाता था...वे हर जंग और हर सरहद से ऊपर होते थे...कोई भी देश या व्यक्ति उन्हें नुक्सान पहुंचाने के बारे में सोचता भी नहीं था. यूरोप के लोगों ने हिटलर पर बहुत दबाव डाला तो आखिर छः महीने बाद जिन साइंटिस्ट्स के जुविश(यहूदी) रूट्स नहीं थे, उन्हें छोड़ दिया गया. मगर छः महीने कैम्पस में अमानवीय तरीके से रहने के कारण अधिकतर साइंटिस्ट्स मर गए, कुछ में आगे काम करने की ताकत नहीं बची. जो साइंटिस्ट्स बचे थे और जिनमें आगे काम कारने की इच्छा थी...उन्होंने काम बरक़रार रखा...लेकिन उस वक्त यूनिवर्सिटीज नहीं थीं...कोलेज बंद कर दिए गए थे. फिर लोगों ने उपाय निकाला...सीक्रेट ग्रुप्स का...लोगों में पढ़ने और पढाने की कैसी अदम्य लालसा थी...जान का जोखिम था लेकिन लोग मिलते थे...किसी को किसी का नाम पता नहीं होता...न छात्र का न टीचर का...न जगह फिक्स होती थी...जगह बदल बदल कर, लोग बदल बदल कर लोग पढ़ते रहे. इस तरह पोलैंड में अनेक सीक्रेट सोसाइटीज बनीं पढ़ने के लिए.
अगर आपका पोलैंड जाने का मन है और घूमना है...तो ऐसे वाकिंग टूर जरूर कीजिये...इससे आपको यहाँ के लोग, उनके सपने, आज़ादी का मतलब और मकसद...कला का जीवन में महत्व पता चलता है...और सबसे ज्यादा कि हम जिंदगी को कितना टेकेन-फॉर-ग्रांटेड लेते हैं...जिंदगी सिर्फ किसी के प्यार में डूब कर सपने देखने से कहीं ज्यादा बड़ी है और ये दुनिया हम जितनी जानते हैं उससे कहीं ज्यादा विस्तृत...खूबसूरत और सहेजने लायक है...अलीशिया...मेरी ये पोस्ट तुम्हारे लिए...मैं जानती हूँ तुम इसे समझ नहीं पाओगी...लेकिन ये मेरा तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा...हैप्पी बर्थडे लड़की.
और दो कहानियां बहुत मजेदार हैं...यहाँ के किले...वावेल कैसल की और पोप जान पौल की...वो अगली बार बताती हूँ. कहानियां बहुत सी हैं...मगर सारी सुनाने लगी तो आज की कहानी नहीं सुन पाउंगी...११ बजे एक और टूर है जिसे सुनने जाना है...तो बाकी कहानी लौट कर लिखती हूँ.
यहाँ शामें कोई ९ बजे होती हैं...रात दस बजे तक रौशनी ही रहती है...मार्केट स्क्वायर में मेला सा लगा रहता है...लोग बियर पीते...घूमते फिरते रहते हैं. मैं भी घूमने निकलती हूँ :) बाकी कहानी फिर कभी...
9:34 am
कल मेरा क्राकोव में पहला दिन था...मैं अधिकतर ट्रैवेल डायरीज नहीं लिखती...पर पुराने अनुभव को देखते हुए पाती हूँ कि अगर न लिखूँ तो बहुत सी चीज़ें भूल जाउंगी. इसलिए इस बार जो चीज़ें मुझे सबसे अच्छी लगीं उनको यहाँ सहेज कर रख रही हूँ.
पिछले कुछ दिनों में मैं बैंगलोर से मुंबई...वहाँ से दुबई...वहाँ से म्यूनिक और आखिरकार क्राकोव पहुंची हूँ. पोलैंड आने का प्लान दो बार कैंसिल होकर ये तीसरी बार फाइनल हुआ है. इस बीच एयरपोर्ट पर घंटों का इन्तेज़ार था...म्यूनिक में हमारा वीसा लग गया था तो हम एयरपोर्ट के बाहर इंतज़ार कर रहे थे. वहाँ एक छोटा सा मेला लगा हुआ था...लाजवाब किस्म की अल्कोहल पीते हुए और जादू के कारनामे देखते हुए वक्त कैसा कटा मालूम ही नहीं चला. म्यूनिक की शाम मेरी अब तक की देखी हुयी शामों में सबसे खूबसूरत थी. वहाँ सूरज की रौशनी कम ही नहीं हुयी...पूरा चमकता हुआ गहरा नारंगी सूरज डूब गया...पूरे आसमान को गहरा नारंगी करते हुए.
हम क्राकोव रात के बारह बजे पहुंचे. अधिकतर मैं किसी देश जाती हूँ तो वहाँ के बारे में अच्छे से पढ़ कर जाती हूँ...पर पोलैंड का प्रोग्राम इतनी बार कैंसिल हुआ कि यकीं ही नहीं था कि आयेंगे भी...तो बिना कुछ पढ़े आ गयी. सुबह मुझे पीने का पानी और सिम कार्ड खरीदना था तो होटल से निकल कर मार्केट स्क्वायर की ओर चल पड़ी. मार्केट स्क्वायर के बीच में एक फाउंटेन है...मैं फोटो खींच रही थी तो देखा कि एक ग्रुप है जिसमें एक बोर्ड उठाए एक लड़की लोगों को जगह के बारे में बता रही थी...बोर्ड पर लिखा था 'Freewalkingtour Join Us'. मैं अधिकतर गाइड नहीं लेती हूँ...खुद घूमने में अच्छा लगता है...पर वहाँ जो लड़की खड़ी थी उसके बात करने का ढंग निराला था. मैं ग्रुप के साथ हो ली.
हमारी टूर गाइड का नाम अलीशिया था...जिंदगी से भरी हुयी...पोलैंड के बारे में गर्व और प्यार से बात करती हुयी...इतिहास की कहानियों को वाकई कहानी की तरह सुनाती...उसने हमें पोलैंड का इतिहास बताया...राजाओं के किस्से बताये...नाज़ी जर्मन के अत्याचार बताए और ये सब थोड़ी सी मुस्कराहट के साथ कि बोझिल न हो...इतिहास मुझे सबसे बोरिंग सब्जेक्ट लगा था...कि इतिहास में क्यूँ रूचि होगी...मगर इतिहास ऐसे पढ़ाना चाहिए. पोलैंड पर और पोलिश लोगों पर कितने अत्याचार हुए...उन्हें सुनाने के दो तरीके हो सकते थे...एक तो फ़िल्मी देवदास टाइप रोना धोना...कि हमारी दुखभरी गाथा...एक था थोड़ा हँसी मजाक करते हुए...अपनी जिंदगी से जोड़ते हुए किस्से बुनना...अलीशिया ने वही किया. हँसते हुए उसने सारी कहानियां सुनायीं. उनमें से कुछ मेरी सबसे पसंदीदा मैं आपसे शेयर कर रही हूँ. ये मैंने जो सुना उस याद पर लिखा गया है...तो गलत हो सकता है...पोलिटिकली गलत हो सकता है वैसे में कृपया बता दें ताकि मैं बदलाव कर सकूं.
अलीशिया के हिसाब से...पोलिश लोग बहुत शिकायत करते हैं...ये अच्छा नहीं है...ये खराब है...खोट निकालते रहते हैं...लेकिन जैसे ही वो चीज़ उनसे छीनने की कोशिश करो...वो उसके लिए जान लगा देंगे...फिर वही चीज़ उनको जान से प्यारी हो जायेगी. ऐसा यहाँ की हर इमारत के बारे में किस्सा है.
जब नाज़ियों ने पोलैंड पर कब्ज़ा कर लिया तो हिटलर नहीं चाहता था कि पोलिश लोग पढ़ें...वो सिर्फ सस्ते कामगारों की तरह उनका इस्तेमाल करना चाहता था. उसने एक बार पोलैंड के सारे अच्छे साइंटिस्ट और प्रोफेसर्स को बुलवाया कि एक कोन्फेरेंस है जहाँ उन्हें जर्मन कल्चर के बारे में बताया जाएगा...फिर उसने उन सबको कंसन्ट्रेशन कैम्पस में भेज दिया. पूरा यूरोप सन्न रह गया क्यूंकि उस समय वैज्ञानिकों को संत के जैसा दर्जा दिया जाता था...वे हर जंग और हर सरहद से ऊपर होते थे...कोई भी देश या व्यक्ति उन्हें नुक्सान पहुंचाने के बारे में सोचता भी नहीं था. यूरोप के लोगों ने हिटलर पर बहुत दबाव डाला तो आखिर छः महीने बाद जिन साइंटिस्ट्स के जुविश(यहूदी) रूट्स नहीं थे, उन्हें छोड़ दिया गया. मगर छः महीने कैम्पस में अमानवीय तरीके से रहने के कारण अधिकतर साइंटिस्ट्स मर गए, कुछ में आगे काम करने की ताकत नहीं बची. जो साइंटिस्ट्स बचे थे और जिनमें आगे काम कारने की इच्छा थी...उन्होंने काम बरक़रार रखा...लेकिन उस वक्त यूनिवर्सिटीज नहीं थीं...कोलेज बंद कर दिए गए थे. फिर लोगों ने उपाय निकाला...सीक्रेट ग्रुप्स का...लोगों में पढ़ने और पढाने की कैसी अदम्य लालसा थी...जान का जोखिम था लेकिन लोग मिलते थे...किसी को किसी का नाम पता नहीं होता...न छात्र का न टीचर का...न जगह फिक्स होती थी...जगह बदल बदल कर, लोग बदल बदल कर लोग पढ़ते रहे. इस तरह पोलैंड में अनेक सीक्रेट सोसाइटीज बनीं पढ़ने के लिए.
अगर आपका पोलैंड जाने का मन है और घूमना है...तो ऐसे वाकिंग टूर जरूर कीजिये...इससे आपको यहाँ के लोग, उनके सपने, आज़ादी का मतलब और मकसद...कला का जीवन में महत्व पता चलता है...और सबसे ज्यादा कि हम जिंदगी को कितना टेकेन-फॉर-ग्रांटेड लेते हैं...जिंदगी सिर्फ किसी के प्यार में डूब कर सपने देखने से कहीं ज्यादा बड़ी है और ये दुनिया हम जितनी जानते हैं उससे कहीं ज्यादा विस्तृत...खूबसूरत और सहेजने लायक है...अलीशिया...मेरी ये पोस्ट तुम्हारे लिए...मैं जानती हूँ तुम इसे समझ नहीं पाओगी...लेकिन ये मेरा तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा...हैप्पी बर्थडे लड़की.
और दो कहानियां बहुत मजेदार हैं...यहाँ के किले...वावेल कैसल की और पोप जान पौल की...वो अगली बार बताती हूँ. कहानियां बहुत सी हैं...मगर सारी सुनाने लगी तो आज की कहानी नहीं सुन पाउंगी...११ बजे एक और टूर है जिसे सुनने जाना है...तो बाकी कहानी लौट कर लिखती हूँ.
यहाँ शामें कोई ९ बजे होती हैं...रात दस बजे तक रौशनी ही रहती है...मार्केट स्क्वायर में मेला सा लगा रहता है...लोग बियर पीते...घूमते फिरते रहते हैं. मैं भी घूमने निकलती हूँ :) बाकी कहानी फिर कभी...