कहाँ थे तुम अब तक?
कि गाली सी लगती है
जब मुझे कहते हो 'अच्छी लड़की'
कि सारा दोष तुम्हारा है
तुमने मुझे उस उम्र में
क्यूँ दिए गुलाब के फूल
जबकि तुम्हें पढ़ानी थीं मुझे
अवतार संधु पाश की कविताएं
तुमने क्यूँ नहीं बताया
कि बना जा सकता है
धधकता हुआ ज्वालामुखी
मैं बना रही होती थी जली हुयी रोटियां
जब तुम जाते थे क्लास से भाग कर
दोस्त के यहाँ वन डे मैच देखने
मैं सीखती थी फ्रेम लगा कर काढ़ना
तुम्हारे नाम के पहले अक्षर का बूटा
जब तुम हो रहे थे बागी
मैं सीख रही थी सर झुका कर चलना
जोर से नहीं हँसना और
बड़ों को जवाब नहीं देना
तुम्हें सिखाना चाहिए था मुझे
कोलेज की ऊँची दीवार फांदना
दिखानी थीं मुझे वायलेंट फिल्में
पिलानी थी दरबान से मांगी हुयी बीड़ी
तुम्हें चूमना था मुझे अँधेरे गलियारों में
और मुझे मारना था तुम्हें थप्पड़
हमें करना था प्यार
खुले आसमान के नीचे
तुम्हें लेकर चलना था मुझे
इन्किलाबी जलसों में
हमें एक दूसरे के हाथों पर बांधनी थी
विरोध की काली पट्टी
मुझे भी होना था मुंहजोर
मुझे भी बनना था आवारा
मुझे भी कहना था समाज से कि
ठोकरों पर रखती हूँ तुम्हें
तुम्हारी गलती है लड़के
तुम अकेले हो गए...बुरे
जबकि हम उस उम्र में मिले थे
कि हमें साथ साथ बिगड़ना चाहिए था
कि गाली सी लगती है
जब मुझे कहते हो 'अच्छी लड़की'
कि सारा दोष तुम्हारा है
तुमने मुझे उस उम्र में
क्यूँ दिए गुलाब के फूल
जबकि तुम्हें पढ़ानी थीं मुझे
अवतार संधु पाश की कविताएं
तुमने क्यूँ नहीं बताया
कि बना जा सकता है
धधकता हुआ ज्वालामुखी
मैं बना रही होती थी जली हुयी रोटियां
जब तुम जाते थे क्लास से भाग कर
दोस्त के यहाँ वन डे मैच देखने
मैं सीखती थी फ्रेम लगा कर काढ़ना
तुम्हारे नाम के पहले अक्षर का बूटा
जब तुम हो रहे थे बागी
मैं सीख रही थी सर झुका कर चलना
जोर से नहीं हँसना और
बड़ों को जवाब नहीं देना
तुम्हें सिखाना चाहिए था मुझे
कोलेज की ऊँची दीवार फांदना
दिखानी थीं मुझे वायलेंट फिल्में
पिलानी थी दरबान से मांगी हुयी बीड़ी
तुम्हें चूमना था मुझे अँधेरे गलियारों में
और मुझे मारना था तुम्हें थप्पड़
हमें करना था प्यार
खुले आसमान के नीचे
तुम्हें लेकर चलना था मुझे
इन्किलाबी जलसों में
हमें एक दूसरे के हाथों पर बांधनी थी
विरोध की काली पट्टी
मुझे भी होना था मुंहजोर
मुझे भी बनना था आवारा
मुझे भी कहना था समाज से कि
ठोकरों पर रखती हूँ तुम्हें
तुम्हारी गलती है लड़के
तुम अकेले हो गए...बुरे
जबकि हम उस उम्र में मिले थे
कि हमें साथ साथ बिगड़ना चाहिए था
मुझे भी कहना था समाज से कि
ReplyDeleteठोकरों पर रखती हूँ तुम्हें
तुम्हारी गलती है लड़के
तुम अकेले हो गए...बुरे
जबकि हम उस उम्र में मिले थे
कि हमें साथ साथ बिगड़ना चाहिए था
I like ur thoughts very much. Ab koi gal aise Q ni sochti......ni mila mai ab tk kisi aisi gal se,but i'm waiting 4 her
मुझे भी कहना था समाज से कि
ReplyDeleteठोकरों पर रखती हूँ तुम्हें
वाह!! बहुत ही बेहतरीन सोच है... कुछ इसी तरह के संवादों भरी कहानी मैंने कुछ दिनों पहले लिखी थी.. जिसमें एक लड़की ने एक लड़के को क्या खूब समझाया था...
इस रचना की जड़े जुड़ी है मन की गहराई से.. कुछ टूटकर सतह पर आ जाती हैं तैरते हुए..
(http://manobhumi.wordpress.com/)
बेहद गहन और सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबुरे लड़के से ....प्यार क्यों करती है अच्छी लड़की ?
ReplyDeleteये ही उम्र का तकाज़ा है .....
बिंदास ! अच्छी लड़की :-)
खुश रहो!
तुम्हें चूमना था मुझे अँधेरे गलियारों में
ReplyDeleteऔर मुझे मारना था तुम्हें थप्पड़
हमें करना था प्यार
खुले आसमान के नीचे
ये बात हुई न कुछ हटाकर नहीं सीधी सच्ची .खुबसूरत बेबाक लेकिन दिल के करीब ...लाजवाब ....
प्रेम में आवरण बनना और अपने उपर सब झेलना, किसी एक को निभाना होता है यह। कोमलता को संजोकर रखना होता है, संभवतः प्रेम का मर्म यही होता है..
ReplyDeleteअसाधारण ............प्रेम की नयी व्याख्या!!
ReplyDeleteअभी तक मैं यही सोचता था -
"प्रेम में साथ साथ बढ़ना होता है ...
जीवन के उच्चतम आदर्शो को प्राप्त करना होता है ...प्रेम यानी आदर्श?"
लेकिन आपकी कविता को पढ़ एक नयी धारणा बनी!
लाजबाब!!
bahut hi sundar rachna..........
ReplyDeleteआपकी इस भाव-रचना का एक बार में पाठ कर गया... बहुत प्रवाहमय हैं भाव.
ReplyDeleteएक 'अच्छी लड़की' की 'बुरे' बन चुके 'लड़के' के प्रति ढेर सारी शिकायतें क्या वाजिब हैं?
मुझे किसी की बात याद आ रही है, उसमें था--"सुविधा से किसी के साथ चलने के लिये उसका विपरीत हाथ अपने हाथ में लेना होता है."
दो व्यक्ति अपने-अपने सीधे हाथ एक साथ मिलाकर नहीं चल सकते.... मैंने अपनी पत्नी से कहा-- "देखा, हम दोनों विपरीत रुचियों के हैं, इसलिये निभ रही है.' अन्यथा हम दोनों ही एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी होते. जाने, तब क्या होता?"
isse badiya kuch or nahi ho sakta
ReplyDeleteतुमने क्यूँ नहीं बताया
कि बना जा सकता है
धधकता हुआ ज्वालामुखी
मैं बना रही होती थी जली हुयी रोटियां
जब तुम जाते थे क्लास से भाग कर
दोस्त के यहाँ वन डे मैच देखने
मैं सीखती थी फ्रेम लगा कर काढ़ना
तुम्हारे नाम के पहले अक्षर का बूटा
shabd nahi hain in shabdo ki tareef karne ko....
समाज 'बैड ब्वायज' और 'गुड गर्ल्स' ही पसंद करता है...
ReplyDeleteप्रेम के लिए जरूरी होता है बुरा लड़का होना ,की अच्छे लड़के खुल के सांस भी नहीं ले पाते | अच्छे लड़के आई .आई. टी ,आई.आई.ऍम ....में रहते हैं ,उन्हें मार्केट पोलिसीस आती है ,बैंकिंग आती है ......................दरबान से मांग बीडी पीने वालों को प्रेम आता है ,इत्तेफाक ही है ,अछि पर बेवकूफ लड़कियां ,प्रेम के लिए डिग्री नहीं देखतीं | और यह अच्छा है |
ReplyDeletePure Awesomeness Puja maam! waaah!
ReplyDeleteAgreed !
Deleteबहुत खूब! यह कविता बहुत दिन तक याद रखी जायेगी।
ReplyDeleteअनूप शुक्ला: आज ये पूजा मैम तो बड़ी धांसू कविता लिख मारी,
ReplyDeleteme: aaj ?
अनूप: बवालजयी टाइप की!
hamane to टिपिया भी दिया था
बहुत खूब! यह कविता बहुत दिन तक याद रखी जायेगी।
Agree !
Deleteबुराई की अपनी एक 'अच्छाई' भी तो होती है
ReplyDeleteऔर फिर 'मुहजोर' का ही तो जोर चलता है
तुमने मुझे उस उम्र में
ReplyDeleteक्यूँ दिए गुलाब के फूल
जबकि तुम्हें पढ़ानी थीं मुझे
अवतार सिंधु पाश की कविताएं
वाह!
अच्छी लड़की की स्पष्ट सोच से सज कर कविता अच्छे/बुरे से परे यादगार हो गयी है!
बिलकुल सच! अच्छा बनना बुरे बनने से ज्यादा रिग्रेटफूल होता है !
ReplyDeletebht kuch yaad dila gyi ye rachna...
ReplyDeletejus loved it :)
कुय़ कहूं....लड़की बदल रही है.....मैं क्यूं बना रहूं अच्छा .. लड़का भी यही सोचता है...सोच रहा हूं कि..नाइस गॉय वाली कहावत बदलनी चाहिए
ReplyDeleteपहले कैसे छूट गयी यह कविता मुझसे...
ReplyDeleteसच में बेहतरीन है...
अनूप जी की शब्दों में कहूँ तो "बवालजयी टाइप की"(सागर के कमेन्ट से साभार :P)
behad acchi nazm....
ReplyDeleteतुमने मुझे उस उम्र में
ReplyDeleteक्यूँ दिए गुलाब के फूल
जबकि तुम्हें पढ़ानी थीं मुझे
अवतार सिंधु पाश की कविताएं................. JUST SPEECHLESS.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपढ़कर एक बार फिर उन्ही गलियों में भटकने लगा मन।बहुत सच्ची सी लगती कविता .प्रेम से भींगी हुई .
ReplyDeleteस्त्री स्वतंत्रता पर लिखी कविताओं में यह कविता मील का पत्थर साबित होगी !इस स्वर और इस तेवर को सलाम करता हूँ !पूजा उपाध्याय को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteek bindaass ladki banane ki lalak dikh rahi hai.. bahut behtareen..:)
ReplyDeleteलिखो न और .
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