shabdon के ढेर आँखों में पड़े रहते हैं
पर भाषा है कोई अनजानी सी
पढ़ नहीं पाता है कोई भी आँखों में
या आँखें ही अजीब है
शायद opaque हैं
जबकि मुझे लगता है transparent होंगी
नहीं है ऐसा
सिर्फ शब्दों के होने से अभिव्यक्ति नहीं होती
उसके लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है
आँखों कि भाषा पढ़ने के लिए आँखें भी वैसी होनी चाहिऐ
बड़ी बड़ी, कजरारी, काली आँखें, जिनमें एक ही झलक में सब साफ दिख जाए
क्लास के blackboard की तरह
मेरी आँखें तो बड़ी नहीं हैं
छोटी छोटी सी हैं मेरी आँखें
इनमें सारे शब्द उलझ जाते होंगे
बहुत confusing सा होगा
जैसे जगह कम पड़ने पर ख़त में लिख देते हैं
आदि तिरछी लकीरों में ही सारी बातें
मुझे एक पोस्टकार्ड याद आ गया
मेरी बातें हमेशा ज्यादा होती थी
और पोस्टकार्ड में जगह कम
कितनी मुश्किल से अटाना पड़ता था सब कुछ
अगर आँखों से नहीं उठता इतना सारा भर
तो मैं कह क्यों नहीं देती
कह भी दूंगी,पर पहले जान तो जाऊँ कि क्या कहना है
क्या इतना कहना काफी होगा की मैं दुखी हूँ
शायद नहीं
वजहें ढूंढ़नीं होंगी
मैं अकेला महसूस करती हूँ
मैं अनाथ महसूस करती हूँ
कुछ नहीं है माँ तुम्हारी बहुत याद आती है बस और तुम आ नहीं सकती हो