कल बहुत दिन बाद Sleepless in Seattle दुबारा देख रही थी। जो चीज़ें हमने ख़ुद से नहीं देखी होती हैं उनपर कभी ध्यान नहीं जाता है। जैसे कि कितनी सारी फ़िल्मों में न्यू यॉर्क है। एम्पायर स्टेट बिल्डिंग है। इस इमारत की लाइटें हैं।
इस फ़िल्म में हीरो बता रहा है कि कैसे उस लड़की को पहली बार मिला था, जब पहली बार उसका हाथ पकड़ा था, उस वक़्त जादू था...और उसे बस मालूम था कि बस यही है वो लड़की। कि उनके बीच जादू जैसा कुछ है।
कल मैं इस फ़िल्म को देखते हुए सोच रही थी कि मेरी ज़िंदगी में जादू जैसा कितना रहा है। कितनी कितनी बार। कितने लोगों से मिली हूँ और लम्हों में कुछ एकदम अलग था, जैसे स्टार्डस्ट जैसा कुछ...जादू कोई बारीक ग्लिटर जैसा। तब लगता है शायद मैं ही जादू की बनी हूँ कि इतना सारा कुछ तिलिस्मी मेरे इर्द गिर्द घटता रहता है। वरना ऐसे कमाल के लोग कैसे मिलते मुझे ज़िंदगी में। एक दोस्त कहता है मेरे बारे में...तुम साधारण चीज़ों को भी इतने ग़ौर से देखती हो कि तुम्हें वो यूनीक लगती हैं। लोगों को ख़ास महसूस करा देती हो, उनके ख़ुद के बारे में। ये वाक़ई मेरी सुपरपॉवर है 😊
आज कुछ ऐसे ही लम्हे लिख के रख देने का मन है इधर। क्या है ना कि हम जिन चीज़ों में यक़ीन करते हैं उनसे ही बनी होती है हमारी ज़िंदगी। मैं जादू में यक़ीन करती हूँ। फ़िल्मी होने में भी।
१।
मैं उस लड़के के साथ दिल्ली में कहीं थी...क्या कर रही थी याद नहीं। लेकिन चलते चलते अचानक आसमान की ओर देखा और इमारतों और पेड़ों के बीच से पूरा पूरा पूरनमासी का चाँद निकल आया...मैं एकदम से, 'WOW! देखो उधर' आसमान की ओर दिखा कर ऐसे बोली जैसे ज़िंदगी में पहली बार देखा हो चाँद। लड़के ने उधर देखा और आँखों में सवाल लिए मेरी ओर देखा। मैं हँसते हुए बोली, 'चाँद...देखो, चाँद कितनाऽऽऽऽऽऽ सुंदर है'। अब वो हँस रहा था, 'अच्छा, वो'। फिर मैं थोड़ा झेंप कर उसे समझा रही थी कि मुझे चाँद कितना कितना तो अच्छा लगता है। वो मोमेंट एकदम से याद है मुझे। चाँद में उसका चेहरा। उसके बालों पर थोड़ी थोड़ी गिरती चाँदनी।
२।
हम लगभग पहली या दूसरी बार मिले होंगे। JNU उसका देखा हुआ था। सारी गली, पगडंडियाँ...सारी इमारतें। मैं दिल्ली में एकदम नयी थी। IIMC उसी कैंपस का हिस्सा था। उस शाम वो मुझे JNU दिखा रहा था। हम मामू के ढाबे पर गए थे। उन दिनों मामू के ढाबे में बैठने के लिए पत्थर हुआ करते थे और एक आध सीमेंट के बने हुए ब्लॉक्स। वहाँ उसने मेरे लिए गुझिया ख़रीदी। कि यहाँ की गुझिया बहुत अच्छी होती है। हम वहीं पत्थर पर बैठे हुए थे। एकदम से पूरे चाँद की रात थी। हम एक दूसरे को जान-समझ ही रहे थे। मैंने कहा होगा कि मैं गाती हूँ। उसने कहा कोई गाना सुनाओ। मैं लजा कर एक गाना गा रही थी। चाँदनी में वो बहुत सुंदर दिख रहा था। कुर्ता, जीन्स और बहुत ही प्यारी हँसी। किसी नितांत अनजान लड़के के साथ अकेले, रात की चाँद रोशनी में गीत गाना। वो जादू था। एकदम ही जादू।
३।
रात हो चुकी थी। कोई दस बज रहे होंगे। मुहल्ले की अंदर की सड़कों पर गाड़ियों की आवाजाही एकदम ही बंद थी। हमें घर जाने का मन नहीं कर रहा था और बातें बची रह गयी थीं। पीले लैम्पपोस्ट्स की रोशनी गिर रही थी हर थोड़े थोड़े अंतराल में। हम अक्सर मिला करते थे इस शहर में। शाम को ही। उस शाम हम कोई एक गीत साझा सुन रहे थे। वो काफ़ी लम्बा सा है। मैं एकदम छोटी सी हूँ। उसे मुझे कोई गीत सुनाना था अपने फ़ोन से। एक हेड्फ़ोन मैंने लगा रखा था दाएँ कान में...एक उसने लगा रखा था बाएँ कान में। हम क़रीब क़रीब...धीरे धीरे चलते हुए एक धुन को आधी आधी बाँट के सुन रहे थे, पीली रौशनी में भिगो कर। वो जादू था। आधी बँटी हुयी धुन का जादू।
ऐसे कई सारे लम्हे हैं ज़िंदगी में। कि मुझे अपनी पूरी डिटेल के साथ याद हैं। वे लोग। वो वक़्त। मौसम का तापमान। जादू हमेशा रोमांस नहीं होता। जादू ज़िंदगी को पूरी तरह डूब के महसूस लेने का नाम होता है। दो लोग जो एक दूसरे के प्यार में नहीं हों, लेकिन एक दूसरे के साथ होते हुए एक दूसरे के साथ ही हों...महसूस करते हैं इसे अपने बीच।
ज़िंदगी जीने के लिए है। डूब कर। प्यार करते हुए इससे बेपनाह। हाँ, दुखता है अपना अकेलापन कभी कभी। लेकिन मुझे इतना इतना प्यार करने का कोई अफ़सोस नहीं है। इस तरह डूब के ज़िंदगी जीने का भी नहीं। कि मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ। आइने में दिखती अपनी हँसती हुयी छोटी छोटी काली आँखों से। अपने बेतरह इश्क़ में दूबे हुए बुद्धू से दिल से। और अपने सारे पागल क़िस्म के दोस्तों से कि जो मेरी ज़िंदगी में हज़ार रंग भरते हैं। मेरी ज़िंदगी एक जादू का खेल है। बहुत सुंदर। बहुत रंगीन। बहुत आयामों का। शुक्रिया उन सारे लोगों का जो कभी जाने-अनजाने इस खेल का हिस्सा बने।
प्यार। बहुत।
इस फ़िल्म में हीरो बता रहा है कि कैसे उस लड़की को पहली बार मिला था, जब पहली बार उसका हाथ पकड़ा था, उस वक़्त जादू था...और उसे बस मालूम था कि बस यही है वो लड़की। कि उनके बीच जादू जैसा कुछ है।
कल मैं इस फ़िल्म को देखते हुए सोच रही थी कि मेरी ज़िंदगी में जादू जैसा कितना रहा है। कितनी कितनी बार। कितने लोगों से मिली हूँ और लम्हों में कुछ एकदम अलग था, जैसे स्टार्डस्ट जैसा कुछ...जादू कोई बारीक ग्लिटर जैसा। तब लगता है शायद मैं ही जादू की बनी हूँ कि इतना सारा कुछ तिलिस्मी मेरे इर्द गिर्द घटता रहता है। वरना ऐसे कमाल के लोग कैसे मिलते मुझे ज़िंदगी में। एक दोस्त कहता है मेरे बारे में...तुम साधारण चीज़ों को भी इतने ग़ौर से देखती हो कि तुम्हें वो यूनीक लगती हैं। लोगों को ख़ास महसूस करा देती हो, उनके ख़ुद के बारे में। ये वाक़ई मेरी सुपरपॉवर है 😊
आज कुछ ऐसे ही लम्हे लिख के रख देने का मन है इधर। क्या है ना कि हम जिन चीज़ों में यक़ीन करते हैं उनसे ही बनी होती है हमारी ज़िंदगी। मैं जादू में यक़ीन करती हूँ। फ़िल्मी होने में भी।
१।
मैं उस लड़के के साथ दिल्ली में कहीं थी...क्या कर रही थी याद नहीं। लेकिन चलते चलते अचानक आसमान की ओर देखा और इमारतों और पेड़ों के बीच से पूरा पूरा पूरनमासी का चाँद निकल आया...मैं एकदम से, 'WOW! देखो उधर' आसमान की ओर दिखा कर ऐसे बोली जैसे ज़िंदगी में पहली बार देखा हो चाँद। लड़के ने उधर देखा और आँखों में सवाल लिए मेरी ओर देखा। मैं हँसते हुए बोली, 'चाँद...देखो, चाँद कितनाऽऽऽऽऽऽ सुंदर है'। अब वो हँस रहा था, 'अच्छा, वो'। फिर मैं थोड़ा झेंप कर उसे समझा रही थी कि मुझे चाँद कितना कितना तो अच्छा लगता है। वो मोमेंट एकदम से याद है मुझे। चाँद में उसका चेहरा। उसके बालों पर थोड़ी थोड़ी गिरती चाँदनी।
२।
हम लगभग पहली या दूसरी बार मिले होंगे। JNU उसका देखा हुआ था। सारी गली, पगडंडियाँ...सारी इमारतें। मैं दिल्ली में एकदम नयी थी। IIMC उसी कैंपस का हिस्सा था। उस शाम वो मुझे JNU दिखा रहा था। हम मामू के ढाबे पर गए थे। उन दिनों मामू के ढाबे में बैठने के लिए पत्थर हुआ करते थे और एक आध सीमेंट के बने हुए ब्लॉक्स। वहाँ उसने मेरे लिए गुझिया ख़रीदी। कि यहाँ की गुझिया बहुत अच्छी होती है। हम वहीं पत्थर पर बैठे हुए थे। एकदम से पूरे चाँद की रात थी। हम एक दूसरे को जान-समझ ही रहे थे। मैंने कहा होगा कि मैं गाती हूँ। उसने कहा कोई गाना सुनाओ। मैं लजा कर एक गाना गा रही थी। चाँदनी में वो बहुत सुंदर दिख रहा था। कुर्ता, जीन्स और बहुत ही प्यारी हँसी। किसी नितांत अनजान लड़के के साथ अकेले, रात की चाँद रोशनी में गीत गाना। वो जादू था। एकदम ही जादू।
३।
रात हो चुकी थी। कोई दस बज रहे होंगे। मुहल्ले की अंदर की सड़कों पर गाड़ियों की आवाजाही एकदम ही बंद थी। हमें घर जाने का मन नहीं कर रहा था और बातें बची रह गयी थीं। पीले लैम्पपोस्ट्स की रोशनी गिर रही थी हर थोड़े थोड़े अंतराल में। हम अक्सर मिला करते थे इस शहर में। शाम को ही। उस शाम हम कोई एक गीत साझा सुन रहे थे। वो काफ़ी लम्बा सा है। मैं एकदम छोटी सी हूँ। उसे मुझे कोई गीत सुनाना था अपने फ़ोन से। एक हेड्फ़ोन मैंने लगा रखा था दाएँ कान में...एक उसने लगा रखा था बाएँ कान में। हम क़रीब क़रीब...धीरे धीरे चलते हुए एक धुन को आधी आधी बाँट के सुन रहे थे, पीली रौशनी में भिगो कर। वो जादू था। आधी बँटी हुयी धुन का जादू।
ज़िंदगी जीने के लिए है। डूब कर। प्यार करते हुए इससे बेपनाह। हाँ, दुखता है अपना अकेलापन कभी कभी। लेकिन मुझे इतना इतना प्यार करने का कोई अफ़सोस नहीं है। इस तरह डूब के ज़िंदगी जीने का भी नहीं। कि मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ। आइने में दिखती अपनी हँसती हुयी छोटी छोटी काली आँखों से। अपने बेतरह इश्क़ में दूबे हुए बुद्धू से दिल से। और अपने सारे पागल क़िस्म के दोस्तों से कि जो मेरी ज़िंदगी में हज़ार रंग भरते हैं। मेरी ज़िंदगी एक जादू का खेल है। बहुत सुंदर। बहुत रंगीन। बहुत आयामों का। शुक्रिया उन सारे लोगों का जो कभी जाने-अनजाने इस खेल का हिस्सा बने।
प्यार। बहुत।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-12-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2810 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर
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