20 November, 2015

हमारी एक ही रकीब है...मौत

'ब्रितानी साम्राज्य के बारे में तो पढ़े हो ना बाबू, कि ब्रितानी साम्राज्य में कभी सूरज डूबता ही नहीं था...वैसा ही है हमारे शहज़ादे की सल्तनत...दिन या रात का कोई भी लम्हा ले लो...दुनिया के किसी छोर पर उनके सल्तनत का कोई बाशिंदा, उनके इश्क में गिरफ्तार...उनकी याद में शब्दों के बिरवे रोप रहा होगा...'
'ये आपको कैसे पता मैडम जी?'
'अरे मत पूछो बाबू...बहुत झोल है इस कारोबार में...हम पहले जानते तो ये इश्क की दुकानी न करते...खेत में हल चला लेते, छेनी हथौड़ी उठा लोहार बन जाते...आटा चक्की भी चला लेना इससे बेहतर है...ये इश्क मुहब्बत के कारोबार में घाटा ही घाटा है...आज तक कभी धेले भर कि कमाई भी नहीं हुयी है. दुनिया भर में रकीब भरे हुए हैं सो अलग.'
'जो मान लो आपको धोखा हुआ हो तो?'
'ना रे बाबू...ई रूह की इकाई है...इसके नाप में कोई घपला नहीं है. रकीबों के कविता में मीटर होता है न...मीटर समझते हो?'
'वही जो ग़ज़ल में होता है...वैसा ही कुछ न?'
'हाँ बाबु...वही...तो जब भी हमारा कोई रकीब कविता लिखता है...तो हमारा दिल उसी मीटर से धड़कने लगता है...१-२-१-२ या कभी छोटी बहर हुयी तो बस २-२ २-२.'
'छोटी बहर?'
'मुन्नी बेगम को सुना है?
अहले दैरो हरम रह गये | तेरे दीवाने कम रह गए
बेतकल्लुफ वो गैरों से हैं | नाज़ उठाने को हम रह गए'
---
उस दिन के पहले कभी उन्हें गाते नहीं सुना था. तेरह चाँद की रात थी. मैडम जी कहती थीं कि तेरह नंबर बार बार उनकी जिंदगी में लौट कर आता है. चाँद को पूरा होने में कुछ दिन बाकी थे. उनके गाने में उदासी भरी खनक थी. जिंदगी अपनी शर्तों पर जीने वाले लोग खुल कर उदास भी कहाँ हो पाते हैं. मैं सोचता था कि मैडम जी के कैलेण्डर में अमावस्या कभी आती भी होगी कि नहीं. उनकी हँसी में इक जरा सी फीकी उदासी का शेड हुआ करता था और उनकी गहरी उदासी में भी मुस्कुराहटों का नाईट बल्ब जलता था...ज़ीरो वाट का...उससे रौशनी नहीं आती...रौशनी का अहसास होता है.

मैडम जी बहुत खुले दिल की हैं. उनके सारे मातहत बहुत खुश रहते हैं. यूं समझ लो, लौटरी ही निकलती है उनके साथ काम करने की...कभी किसी से ऊँची आवाज़ में बात तक नहीं की है. पूरे डिपार्टमेंट में किसी ने उन्हें चिल्लाते नहीं सुना है. अभी पिछले साल फिर से उन्हें जिले को बेस्ट एडमिनिस्ट्रेटेड डिस्ट्रिक्ट का अवार्ड मिला है. इतनी कम उम्र में, औरत हो कर भी ऐसा मुकाम कि बड़े बड़े सोचते रह जायें. जिस इलाके में जाती हैं लोग उनके कायल हो जाते हैं. हर जगह फब जाती हैं...हर जगह घुल जाती हैं. हमारी मैडम जी, क्या बताएं शक्कर ही हैं...मीठी एकदम. उनके रहते किसी चीज़ की चिंता की जरूरत नहीं. अभी पिछले महीने बहन के बेटे के कॉलेज की फीस देनी थी...जब जगह से इंतज़ाम करने के बाद भी दस हज़ार रुपये कम पड़ रहे थे. आखिरी दिन था. समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. बेखयाली में सुबह से काम गलत सलत हुए जा रहे थे. कभी फाइल में गड़बड़ कर देता कभी लंचबौक्स किसी और जगह भूल आता. मैडम जी ने खाना खाने के बाद बुलाया और खुद पूछा कि बात क्या है. पैसों का सुन कर थोड़ा सा हँसी...मगर ये मज़ाक उड़ाने वाली हँसी नहीं थी कि चुभ जाती...ये बचपने वाली हँसी थी...जैसे बचपन में माँ को हँसते हुए सुना था कभी कभी.

'तुम गज़ब बकलोल हो रे...दुनिया में इतना बड़ा बड़ा आफत सब है और तुम ई जरा सा दस हज़ार से लिए सुबह से बौरा रहे हो...इस मुसीबत का तो सबसे आसान उपाय है न. पैसे दे देंगे तो कोई दिक्कत नहीं होगी ना? हमको जब बेमौसम ताड़ का कोआ खाने का मन होता है तो तुमको मालूम होता है न कि कौन जगह जा के मिलेगा जाते सीजन में...हम बोलते हैं तुमको तो ला के देते हो कि नहीं? तो तुमको कुछ चाहिए तो हम हैं न तुम्हारे लिए. तुमको का लगता है जी...खाली सैलरी के लिए तुम काम करते हो कि हमारे लिए काम करते हो?'

एक बार जो मैडम जी के साथ काम कर लिया हो उसका फिर किसी के साथ काम करना मुश्किल ही होता था. डिपार्टमेंट के बाकी बाबूसाहब लोग बंधुआ मजदूर की तरह ट्रीट करते थे. हमारा भी जी है ऐसा कहाँ सोचा होगा कोई. उनके लिए तो बस अर्दली हैं हम. उनके हिसाब से सोना-जागना-खाना-पीना सब. यही सब काम हम मैडम जी के लिए भी करते थे लेकिन प्यार का दो बोल में बहुत अंतर हो जाता है. सरकार सैलरी देती थी लेकिन हमारे लिए तो सरकार मैडम जी ही...और कोई सरकार हम कभी जाने नहीं.

एक दिन ऐसे ही इवनिंग कॉलेज के फॉर्म्स ले आयीं कि तुम एडमिशन ले लो. पढ़ाई में हम तुम्हारा हेल्प कर देंगे. बारवीं पास के लिए दुनिया बहुत छोटी है. ग्रेजुएट हो जाओगे तो बहुत दूर तक जा सकोगे. होशियार तो तुम बहुत हो, हमको दिखता है साफ़. जिन्दगी भर यही चौथी ग्रेड का काम थोड़े करोगे...कल को शादी होगा...बच्चे होंगे...जरा आगे बढ़ जाओगे तो समाज में इज्जत बढ़ेगा, उसपर लड़की अच्छी मिलेगी सो अलग. हमको उस समय तो पढ़ना आफत ही लग रहा था...लेकिन मैडम जी कभी दिक्कत होने नहीं दीं. मेरा क्लास शुरू होते ही खुद से ड्राइव करके घर जाने लगी थीं. डिपार्टमेंट में बहुत बार लोग दबे मुंह बोला भी कि रात बेरात समय ठीक नहीं है...कोई दुर्घटना हो गया तो कौन जिम्मेदारी लेगा. मैडम जी को लेकिन मुंह पर बोलने का हिम्मत तो दुनिया में किसी को था नहीं. मैडम जी अपने लिए एक लाइसेंसी रिवोल्वर खरीद लायीं. रात को प्रैक्टिस करतीं तो पूरा मोहल्ला गूंजा करता. बड़े बाबू एक बार मैडम को समझा रहे थे कि अकेले रात को ड्राइव करना सुरक्षित नहीं है अकेली औरत के लिए. मैडम जी बोलीं कुछ नहीं. रिवोल्वर निकाल कर डेस्क पर रख दिहिस कि ई हम्मर पार्टनर है...'कोल्ट...सिंगल एक्शन आर्मी', इससे ज्यादा केपेबल कोई आदमी है आपके पास तो बतलाइये...हम उसको साथ लेकर चला करेंगे. अब जेम्स बौंड ही आ जाए लड़ने तो पहले शायद उसको घर बिठा के ग़ज़ल सुनवाना पड़ेगा...लेकिन उसके अलावा हम सब कुछ हैंडल कर सकते हैं'.

मैडम जी में खाली टशन नहीं था. मर्द का कलेजा था उनका. बिना आवाज़ ऊंची किये अपनी बात दमदार तरीके से रखना हम उनसे सीखे हैं. कभी उनको लगा ही नहीं कि औरत होना कोई कमजोरी भी है. और लगता भी क्यूँ. उनके पिताजी आर्मी में कर्नल थे. शेरदिली उनको विरासत में मिली थी. बाकी मार्शल आर्ट्स ट्रेनिंग तो थी ही...उसपर रही सही कसर रिवोल्वर ने पूरी कर दी...उनसे जो भिड़ने आये भगवान् ही बचा सकता है उसको. 

देखते देखते दिन निकल गए. एक्जाम में हम डिस्टिंक्शन से पास हो गए. रिजल्ट लेकर मैडम जी के पास आये तो बोलती हैं अगले महीने प्रोमोशन के लिए अप्लाई कर दो अब से जान धुन कर पढ़ो. एक्जाम के पहले एक महीना का छुट्टी हम सैंक्शन कर देंगे. अफसर बनने का ख्वाब पहली बार मैडम जी ही रोपीं थीं आँख में. उन दिनों तो बस गाँव भर में में एक आध ही लोग बन पाए थे अफसर. मैं दिन दिन भर ऑफिस में खटता और फिर शाम होते ही मैडम जी लालटेन साफ़ करवा कर बैठकी में मेरी किताबें जमा करवा देतीं. ऐसी पर्सनल कोचिंग किसी को भी क्या मिली होगी. उनपर जैसे धुन सवार थी. किसको जाने क्या प्रूव करना था. 

साल में लगभग तीन चार बार उनके नाम किसी अस्पताल से ख़त आते. हमेशा गहरे नीले लिफ़ाफ़े में. जब भी ये ख़त आते मैडम जी जरा उदास रंगों के कपड़े पहनने लगतीं. घर में गज़लें बजतीं. फीका खाना बनवातीं. न मसाला. न हल्दी. बड़े मनहूस ख़त होते थे. उन दिनों मैडम जी सिर्फ ओल्ड मौंक पिया करती थीं. देर रात जागती रहतीं और सिगरेट के डिब्बे खाली होते रहते. उन्हीं दिनों मैंने उन्हें पहली बार बौक्सिंग प्रैक्टिस करते भी देखा था. अजीब जूनून चढ़ता था उनपर. आँखों में खून उतर आता. फिर एक दिन अचानक से देखता कि सुबह सुबह उन्होंने कोई सुर्ख गुलाबी साड़ी पहनी है. सूजी हुयी आँखों पर काला चश्मा चढ़ा लिया है. मैं जान जाता था कि मौसम बदल दिए गए हैं. अब अगली नीली चिट्ठी तक सब ठीक चलेगा. 

उस दिन एक्जाम देकर लौटा था. मूड अच्छा था. महीने भर से पागलों की तरह पढ़ रहा था. लौटते हुए मैडम जी के लिए रजनीगंधा के बहुत से फूल ले लिए. मैडम जी को खुशबूदार फूल बहुत पसंद थे. बहुत सी उनके पसंद की सब्जियां भी खरीद लीं...कि आज तो दो तीन आइटम बनायेंगे. ठेके पर से विस्की का अद्धा लिया कि आज तो मूड अच्छा ही होगा मैडम जी का...आराम से विस्की पियेंगी और खाना खायेंगी. पेपर अच्छा हुआ था तो लग रहा था कि शायद अफसर बन ही जाऊं. ख़ुशी ख़ुशी उनके घर का गेट खोल कर अन्दर घुसने को था कि पोर्टिको में गाड़ी लगी देखी. मैडम जी जल्दी घर आ गयीं थीं. घर की ओर आ ही रहा था कि मुन्नी बेगम की आवाज़ कानों में पड़ी, 'हम से पी कर उठा न गया, लड़खड़ाते कदम रह गए'. सत्यानाश! नीले लिफाफे को आज ही आना था. मनहूस. 

कॉल बेल पर ऊँगली रखते ही मैडम जी का ठहाका गूंजा और मैं जान गया कि टेप नहीं बज रहा...मैडम जी खुद गा रही थीं. दरवाजा किसी लड़के ने खोला. कोई पंद्रह साल उम्र रही होगी उसकी. मैडम जी ने बताया कि ये छोटे शाहज़ादे साहब हैं. दुनिया को अपने ठेंगे पर रखते हैं. बड़े होकर एस्ट्रोनॉट बनेंगे. फिलहाल किसी तरह मैनेज कर रहे हैं इस दुनिया को...जल्दी ही इनके पास इनका अपना स्पेसशिप होगा...इन्होने प्रॉमिस किया है कि हर प्लैनेट पर एक पोस्टऑफिस खोलेंगे और मुझे बहुत सारे पोस्टकार्ड भेजेंगे. मैंने उतना टेस्टी खाना अपनी जिंदगी में फिर कभी नहीं खाया है. रात को हँसी ठहाके गूंजते रहे. छोटे शाहज़ादे साहब अपने नानाजी के किस्से सुना रहे थे...अपनी मम्मा के किस्से सुना रहे थे और बस पूरी रात किस्सों-कहानियों में गुज़र गयी. मैंने चैन की साँस ली कि मैं फालतू घबरा रहा था.

मगर ये तूफ़ान से पहले की शांति थी.

इस बार कई कई कई दिनों तक घर में मुन्नी बेगम गाती रहीं. ग़ज़ल का एक एक शेर...एक एक शब्द याद हो गया था मुझे...गाना शुरू होने के पहले का संगीत...बीच का संगीत...सब कुछ...मैडम जी ने शायद खाना खाना कम कर दिया था. कुक रोज झिकझिक करती थी...कुछ तो खाया करो दीदी...ऐसे जान चला जाएगा. मैं अपनी आँखों के सामने उनको टूटते देख रहा था. वो आजकल बात भी कम किया करती थीं. ऑफिस का काम ख़त्म और मैं अपने घर वापस. रिजल्ट आने में अभी एक हफ्ता बाकी था. उस दिन बहुत खोज कर ताड़ का कोआ लेते आया कि मैडम जी शौक़ से कुछ तो खायेंगी. के जो भी बात उन्हें अंदर अन्दर खाए जा रही थी...अब उसके असर बाहर भी दिखने लगे थे.

'तो नीले लिफाफों में क्या आता है मैडम जी?'
'लिफाफों में उनकी कवितायें, गजलें, नज्में, कहानियां...जो कुछ भी उन्होंने लिखा होता है नया वो आता है. हर बार एक नए रकीब का चेहरा आता है...शाहज़ादे की मुहब्बत कुबूलनामा आता है इनमें'
'मगर वो आपको क्यूँ भेजते हैं ये सब...उन्हें मालूम नहीं होता कि आपको तकलीफ होती है'
'अरे बाबू, शाहज़ादे को इतनी फुर्सत कहाँ...इतनी फिकर कब...ये तो मैंने एक जासूस बिठा रखा है...वही भेजता रहता है मुझे ये सब...मर जाने का सामान'
'लेकिन मैडम जी, शहजादे को कभी आपसे इश्क था न?'
'अरे न रे पगले...कभी सुना है कि चाँद को इश्क़ हुआ है किसी से?, उनकी चांदनी में भीगे हुए खुद का अक्स देखा था आईने में एक बार...खुद से ही इश्क़ हुआ था उन दिनों...बस उतना ही था...सुन रहे हो, मुन्नी बेगम हमारे दिल का हाल गा रही हैं, 'देख कर उनकी तस्वीर को, आइना बन के हम रह गए'.

डॉक्टर कहते हैं उस रात उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा था. हॉस्पिटल में एडमिट कर के हफ्ते भर ऑब्जरवेशन कह दिया डॉक्टर ने. मेरा जोइनिंग लेटर भी मैडम जी के पते पर ही आया. लेटर बौक्स में एक नीला लिफाफा भी पड़ा था. दिल तो किया कि उसे वहीं आग लगा दूं. यूं ही कम आफत पड़ी है मैडम जी पर जो ये नीला लिफाफा और दे दूं उनको. कहीं कुछ हो गया तो क्या कह के खुद को माफ़ करेंगे.

हॉस्पिटल में उन्हें देखा तो वो करीबन खुश लग रही थीं. चेहरे की चमक लौट आई थी. नर्सेस से छेड़खानी कर रही थीं. मेरा ज्वायनिंग लेटर देख कर वो ख़ुशी से पगला गयीं...डॉक्टर्स तो घबरा गए कि उन्हें ख़ुशी के मारे हार्ट अटैक न आ जाए. मगर फिर उन्होंने नीला लिफाफा देखा और ख़ुशी जैसे फिर से हॉस्पिटल के उदास पर्दों के पीछे कहीं दुबक गयी. इस बार मैडम जी ने लिफाफा खुद नहीं खोला...मुझे दे दिया कि खोल कर पढ़ो. ख़त में दिल तोड़ने वाली इक नज़्म लिखी थी...कि अब लौट आओ...तुम्हारे बिना यहाँ जी नहीं लगता. ख़त पर तारीख साल २००५ की थी. मैंने कहा कि आपके शाहज़ादे इतनी बेख्याली में लिखते है कि दस साल पहले की तारीख डाल देते हैं. मैडम जी हमारी बात पर मुस्कुरा रही थीं...वही मुस्कराहट जिसमें एक छटांक भर ज़ख्म झलक जाता है...
'बाबु, हमारी एक ही रकीब हो सकती थी, वही एक रही है. मौत. किसी और की औकात जो हमारे होते शहज़ादे को अपने ख्यालों में भी सोच ले...कसम से सपनों में घुस के मारते'
'और शहजादे?'
'को गए हुए पंद्रह साल होने को आये, जीने के लिए कुछ खुशफहमियां चाहिए होती हैं. उन दिनों डिलीवरी होने वाली थी...और मेरी हालत देख कर डॉक्टर्स ने मुझे डिनायल में रहने दिया...मैंने उनकी डेड बॉडी तक नहीं देखी...शायद इसलिए आज तक कभी यकीन भी नहीं हुआ कि वो नहीं है इस दुनिया में...हम खुद को दिलासे देते रहते हैं कि वो किसी और के पहलू में हैं...कभी उठ कर हमारी चौखट पर दुबारा आयेंगे'
'तो शहजादे को आपसे इश्क था?'
'बेइंतेहा'
---
ग़ज़ल ख़त्म होने को थी...लूप में फिर से प्ले होने के पहले...मुन्नी बेगम गा रही थीं...मुकम्मल...'पास मंजिल के मौत आ गयी, जब सिर्फ दो कदम रह गए'.
---

1 comment:

  1. so nice imotionally heart touching ...
    Find your best SMS to send your friends and family from our vast collection of SMS, Jockes, Shayari, Quotes. Best SMS collection ever.

    Fun4youth.com
    Best SMS
    Best Jokes
    Best Shayari
    Golden Inspiriotional quotes
    Double Meaning Jokes
    Whatsapp status
    Facbook Status

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...