हफ्ते भर की थकान ने उसे बहला फुसला कर झांसे में ले लिया था. सोते हुए उसकी उँगलियों में उलझी हुयी थी किताब और होठों पर आधी रखी हुयी थी मुस्कान. जिस दुनिया में किसी चीज़ का भरोसा नहीं था उसमें उनींदे भी ये यकीन होना कि उठने के बाद एक किताब होगी लौट कर जाने के लिए ये बहुत बड़े सुकून की बात थी. लड़की के दिल की धड़कन अक्सर काफी तेज़ चलने लगती थी...इसकी कोई ख़ास वजह नहीं होती मगर वो अक्सर डूब जाने का सामान तलाशती रहती, कि जिसमें खुद को खोया जा सके. नए घूमते हुए देशों में भी वो नक्शा लेकर नहीं भटक जाने के इरादे ले कर जाती. किताबें भी उसे ऐसी ही अच्छी लगती थीं, पगडंडियों वालीं. वो अधमुंदी आँखों से दीवार का सहारा थामे आगे बढ़ती जा रही है, पगडंडियों पर डाकुओं का डर नहीं होता.
दोपहर किताब उसे एक आश्चर्य की तरह मिली थी. वो खुश इतनी थी कि डिलीवर करने वाला शख्स घबरा गया. बबल व्रैप के सारे बुलबुले फोड़ने के दरमयान वो एक कलीग के साथ एक बेहद जरूरी प्रेजेंटेशन पर काम कर रही थी. काम ख़त्म होने पर किताब पढ़ते हुए उसने तीन तल्ले की सीढियां चढ़ीं. वो लड़की जिसे आम तौर पर भी कहीं चलते हुए टकराने और गिर जाने का खौफ बना रहता है. ऊपरी तल्ले के ऑफिस में दोपहर की बेहतरीन धूप आ रही थी. किताब की तस्वीर उतारते हुए लड़की के मन में धूप उतर कर बेसब्री का ताना बाना बुनती रही. घर के रास्ते में सब्जियां खरीदनी थीं. बहुत सालों बाद उसे ऐसी बेचैनी थी कि सब्जी बिल करवाने की लाइन में लगे लगे उसने कहानियां पढ़ीं. उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट चस्पां हो गयी थी...कुछ बेहतरीन पढ़ने की ललक जैसी...पहले प्यार के खुमार जैसी. बाईक चलाते हुए उसने सोचा लगातार मुस्कुराने से उसके गाल दर्द कर रहे हैं.
घर पर दोस्त आये हुए थे. मिठाई की दूकान वाले ने कहा कि समोसे बनने में दस मिनट लगेंगे. वहीं एक छोटी सी मेज पर बैठी वो कहानियों में डूबने उतराने लगी. उसे कहीं नहीं जाना था. कहानियों के किरदार उसे हंसाते, रुलाते....रुला रुला हंसाते. उसकी आँख भर आती और वो सोचती कि कोई देख न ले उसकी आँखों में ऐसे आंसू...जबकि उसके सामने कोई होता नहीं था. किताब ऐसी थी जैसे हाथ पकड़ कर हर छोटी सी कहानी में खींच लाती उसे. प्यास ऐसी थी कि हर कहानी को छू कर भाग जाना चाहती थी वो, जैसे छुप्पन छुपाई का खेल चल रहा हो. कितने दिलकश किरदार थे...कितने सच्चे कि उनकी सच्चाई देख कर किताब के डायरी होने का भ्रम होने लगता. इतनी छोटी कहानी में कोई इतना पूरा किरदार कैसे रच सकता है? एक घटना में जिंदगीनामा लिखने जैसा.
उसने बहुत सालों बाद ऐसी किताब पढ़ी थी...नहीं...उसने पहली बार ऐसी किताब पढ़ी थी. उसकी आज की दुनिया की किताब, उसकी जान पहचान जैसे किरदार. हर कहानी एक जादू बुनती हुयी. भीड़ में अनायास दिखे किसे चेहरे के सम्मोहन जैसी. किसी को सदियों जानने के सुख जैसी. एक ऐसी किताब जो हर किस्म के खालीपन को भर दे...उस खालीपन को भी जिसके होने का अंदाजा नहीं हो. ऐसी किताब जो आधी पढ़ी होने पर सुकून का बायस बने. ऐसी किताब जो अपनी हो जाए...धूप, हवा, पानी जैसा अधिकार हो जिसपर. इसकी समीक्षा लिखूंगी फुर्सत से...पहले लिखना जरूरी था कि एक खूबसूरत किताब पढ़ना कैसी चीज़ होती है.
पढ़ने के खोये हुए सुख को जो ऊँगली पकड़ कर लौटा लाये...ऐसी विरले लिखी जाने वाली मेरी बहुत सालों तक फेवरिट रहने वाली ये किताब 'तमन्ना तुम अब कहाँ हो...' को लिखा है निधीश त्यागी ने और इसे छापा है पेंग्विन हिंदी ने. मैंने किताब ureads से खरीदी थी...ये फ्लिप्कार्ट भी भी मिल रही है. कुल १८८ पन्ने की किताब है, छोटी कहानियों वाली. इसकी आखिरी कहानी का नाम है...जिस सुखांत की तलाश है कहानी को...और ये कुछ ऐसे ख़त्म होती है...कहानी सुखान्तों की तलाश से फिर थके और धूसर पांव लौटती है. कहानी एक दिन सुखान्त की शर्त से खुद को मुक्त करती है. और पूरी होती है.
अब दिलफरेब इसको नहीं कहेंगे तो किसको कहेंगे. कुछ चीज़ें इतनी बेहतरीन होती हैं कि उन्हें बिना बांटे चैन नहीं पड़ता. आप ब्लॉग पर कुछ पढ़ने के खातिर ही भटक रहे होंगे...इस किताब को पढ़ना, पढ़ने के सुख की वापसी है. अखाड़े का उदास मुगदर नाम से जब ब्लॉग पर कहानियां आती थीं, तब भी इंतज़ार रहता था. बहुत साल की चुप्पी के बाद ये कहानियां पन्ने पर मिली हैं. शुक्रिया निड...इतनी खूबसूरत किताब लिखने के लिए. कभी इसपर आपका ऑटोग्राफ लेने जरूर आउंगी.
दोपहर किताब उसे एक आश्चर्य की तरह मिली थी. वो खुश इतनी थी कि डिलीवर करने वाला शख्स घबरा गया. बबल व्रैप के सारे बुलबुले फोड़ने के दरमयान वो एक कलीग के साथ एक बेहद जरूरी प्रेजेंटेशन पर काम कर रही थी. काम ख़त्म होने पर किताब पढ़ते हुए उसने तीन तल्ले की सीढियां चढ़ीं. वो लड़की जिसे आम तौर पर भी कहीं चलते हुए टकराने और गिर जाने का खौफ बना रहता है. ऊपरी तल्ले के ऑफिस में दोपहर की बेहतरीन धूप आ रही थी. किताब की तस्वीर उतारते हुए लड़की के मन में धूप उतर कर बेसब्री का ताना बाना बुनती रही. घर के रास्ते में सब्जियां खरीदनी थीं. बहुत सालों बाद उसे ऐसी बेचैनी थी कि सब्जी बिल करवाने की लाइन में लगे लगे उसने कहानियां पढ़ीं. उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट चस्पां हो गयी थी...कुछ बेहतरीन पढ़ने की ललक जैसी...पहले प्यार के खुमार जैसी. बाईक चलाते हुए उसने सोचा लगातार मुस्कुराने से उसके गाल दर्द कर रहे हैं.
घर पर दोस्त आये हुए थे. मिठाई की दूकान वाले ने कहा कि समोसे बनने में दस मिनट लगेंगे. वहीं एक छोटी सी मेज पर बैठी वो कहानियों में डूबने उतराने लगी. उसे कहीं नहीं जाना था. कहानियों के किरदार उसे हंसाते, रुलाते....रुला रुला हंसाते. उसकी आँख भर आती और वो सोचती कि कोई देख न ले उसकी आँखों में ऐसे आंसू...जबकि उसके सामने कोई होता नहीं था. किताब ऐसी थी जैसे हाथ पकड़ कर हर छोटी सी कहानी में खींच लाती उसे. प्यास ऐसी थी कि हर कहानी को छू कर भाग जाना चाहती थी वो, जैसे छुप्पन छुपाई का खेल चल रहा हो. कितने दिलकश किरदार थे...कितने सच्चे कि उनकी सच्चाई देख कर किताब के डायरी होने का भ्रम होने लगता. इतनी छोटी कहानी में कोई इतना पूरा किरदार कैसे रच सकता है? एक घटना में जिंदगीनामा लिखने जैसा.
उसने बहुत सालों बाद ऐसी किताब पढ़ी थी...नहीं...उसने पहली बार ऐसी किताब पढ़ी थी. उसकी आज की दुनिया की किताब, उसकी जान पहचान जैसे किरदार. हर कहानी एक जादू बुनती हुयी. भीड़ में अनायास दिखे किसे चेहरे के सम्मोहन जैसी. किसी को सदियों जानने के सुख जैसी. एक ऐसी किताब जो हर किस्म के खालीपन को भर दे...उस खालीपन को भी जिसके होने का अंदाजा नहीं हो. ऐसी किताब जो आधी पढ़ी होने पर सुकून का बायस बने. ऐसी किताब जो अपनी हो जाए...धूप, हवा, पानी जैसा अधिकार हो जिसपर. इसकी समीक्षा लिखूंगी फुर्सत से...पहले लिखना जरूरी था कि एक खूबसूरत किताब पढ़ना कैसी चीज़ होती है.
पढ़ने के खोये हुए सुख को जो ऊँगली पकड़ कर लौटा लाये...ऐसी विरले लिखी जाने वाली मेरी बहुत सालों तक फेवरिट रहने वाली ये किताब 'तमन्ना तुम अब कहाँ हो...' को लिखा है निधीश त्यागी ने और इसे छापा है पेंग्विन हिंदी ने. मैंने किताब ureads से खरीदी थी...ये फ्लिप्कार्ट भी भी मिल रही है. कुल १८८ पन्ने की किताब है, छोटी कहानियों वाली. इसकी आखिरी कहानी का नाम है...जिस सुखांत की तलाश है कहानी को...और ये कुछ ऐसे ख़त्म होती है...कहानी सुखान्तों की तलाश से फिर थके और धूसर पांव लौटती है. कहानी एक दिन सुखान्त की शर्त से खुद को मुक्त करती है. और पूरी होती है.
अब दिलफरेब इसको नहीं कहेंगे तो किसको कहेंगे. कुछ चीज़ें इतनी बेहतरीन होती हैं कि उन्हें बिना बांटे चैन नहीं पड़ता. आप ब्लॉग पर कुछ पढ़ने के खातिर ही भटक रहे होंगे...इस किताब को पढ़ना, पढ़ने के सुख की वापसी है. अखाड़े का उदास मुगदर नाम से जब ब्लॉग पर कहानियां आती थीं, तब भी इंतज़ार रहता था. बहुत साल की चुप्पी के बाद ये कहानियां पन्ने पर मिली हैं. शुक्रिया निड...इतनी खूबसूरत किताब लिखने के लिए. कभी इसपर आपका ऑटोग्राफ लेने जरूर आउंगी.
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 50 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
Deleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा रविवार, दिनांक :- 24/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/" चर्चा अंक - 50- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
बेहतरीन पढ़ने की ललक ऐसी ही होती है..सुंदरता से किताब की झलक दिखला दिया..
ReplyDeletebahut badhiya ji
ReplyDeletewaah umda
ReplyDeleteअब तो पढ़े बिना चैन नहीं आएगा.
ReplyDeletease be book mark kar leta hu..thanks..
ReplyDeleteपढ़ने का सुख, गढ़ने का सुख, दोनों ही अन्तर्निहित है, हम सबके मन में। कोई राह दिखाये...
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