तेरे जिस्म की आंच को छूते ही, मेरे सांस सुलगने लगते हैं
मुझे इश्क दिलासे देता है मेरे दर्द बिलखने लगते हैं
तू ही तू तू ही तू जीने की सारी खुशबू
तू ही तू, तू ही तू आरज़ू आरज़ू
छूती है मुझे सरगोशी से, आँखों में घुली ख़ामोशी से
मैं फर्श पे सजदे करता हूँ कुछ होश में कुछ बेहोशी से
---
सतरंगी रे...मनरंगी रे
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किसी बेहद खूबसूरत चीज़ पर लौट कर आना बहुत सालों बाद. मुझे याद नहीं ठीक से ये गाना आखिरी बार देखा कब था. सुनने का सिलसिला फिर भी जारी रहता है मगर विडियो देखने की आदत नहीं है इसलिए बहुत कुछ बिसर भी जाता है. दिल से की कैसेट थी मेरे पास और दोनों साइड घिस जाने तक सुनी थी. कैसेट अटक जाती तो पेन्सिल से घुमा घुमा ठीक कर देते. धूप में रख देते. जाने किसने तो कहा था कि कैसेट अटक जाए तो धूप में रख देना...
उस दौर के कुछ बेहद पसंदीदा कैसेट्स को सुनने का एक ही तरीका था...कमरे की खिड़कियाँ बंद और सारी आवाजें कहीं और...कूलर के ऊपर मेरा टेप रिकॉर्डर बजता रहता था और मैं बेड पर औंधे मुंह पड़ी रहती थी. अँधेरे का नर्म ककून होता था जहाँ कोई पहुँच नहीं सकता था. गर्मी के लम्बे दिनों में एक ही गीत सुनते सुनते कई बार दुपहर बितायी है. इश्क के कुछ रंग ही देखे थे, उनके शेड्स चुनती रहती थी. बंद आँखों में महबूब चेहरा उभरता था...नर्म आँखें और तीखी धूप...बिछड़ते हुए रह गया कलाइयों पर उँगलियों का अहसास...
ये एकदम परफेक्ट गाना था. मुझे सिंगर्स की आवाज़ पहचान नहीं आती सिवाए सोनू निगम के...ये गीत सुना ज्यादा है देखा कम...इसलिए ख्यालों में सोनू की तस्वीर ही उभरती है...मैं उसे गाते ही देख सकती हूँ...सांस लेने का उसका अंतराल...स्टूडियो की पिन ड्राप साइलेंस वाली ख़ामोशी...और इसके शब्द. कभी जो अन्त्रक्षारी खेलते हुए ये गीत शुरू कर दिया तो समझ नहीं आता था किस लफ्ज़ पर ठहरूं. गुलज़ार की ऐसी मास्टरपीस जो एकदम नैचुरल लगती है...प्रतीक भी ऐसे कि चुभते जायें जैसे यादों में कील उगी हो कोई...
जितने खूबसूरत लफ्ज़ वैसी ही सिनेमाटोग्राफी. सोचती ये हूँ कि कोई डायरेक्टर कहाँ तक सोच में रच पाता है पत्तों के गिरने का सम्मोहन या कि संगीनों के साए में इश्क की ऐसी दास्तान जो ख़त्म होकर भी ख़त्म नहीं होती. युद्द के बैकड्राप में इश्क का नाज़ुक ताना-बाना बुनना कितना मुश्किल और खूबसूरत है. डांस के हर स्टेप में जैसे खुद को खो देने की जिद आती है...तबियत से...सुरूर से...दीवानगी से...
मुझे इश्क दिलासे देता है मेरे दर्द बिलखने लगते हैं
तू ही तू तू ही तू जीने की सारी खुशबू
तू ही तू, तू ही तू आरज़ू आरज़ू
छूती है मुझे सरगोशी से, आँखों में घुली ख़ामोशी से
मैं फर्श पे सजदे करता हूँ कुछ होश में कुछ बेहोशी से
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सतरंगी रे...मनरंगी रे
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किसी बेहद खूबसूरत चीज़ पर लौट कर आना बहुत सालों बाद. मुझे याद नहीं ठीक से ये गाना आखिरी बार देखा कब था. सुनने का सिलसिला फिर भी जारी रहता है मगर विडियो देखने की आदत नहीं है इसलिए बहुत कुछ बिसर भी जाता है. दिल से की कैसेट थी मेरे पास और दोनों साइड घिस जाने तक सुनी थी. कैसेट अटक जाती तो पेन्सिल से घुमा घुमा ठीक कर देते. धूप में रख देते. जाने किसने तो कहा था कि कैसेट अटक जाए तो धूप में रख देना...
उस दौर के कुछ बेहद पसंदीदा कैसेट्स को सुनने का एक ही तरीका था...कमरे की खिड़कियाँ बंद और सारी आवाजें कहीं और...कूलर के ऊपर मेरा टेप रिकॉर्डर बजता रहता था और मैं बेड पर औंधे मुंह पड़ी रहती थी. अँधेरे का नर्म ककून होता था जहाँ कोई पहुँच नहीं सकता था. गर्मी के लम्बे दिनों में एक ही गीत सुनते सुनते कई बार दुपहर बितायी है. इश्क के कुछ रंग ही देखे थे, उनके शेड्स चुनती रहती थी. बंद आँखों में महबूब चेहरा उभरता था...नर्म आँखें और तीखी धूप...बिछड़ते हुए रह गया कलाइयों पर उँगलियों का अहसास...
ये एकदम परफेक्ट गाना था. मुझे सिंगर्स की आवाज़ पहचान नहीं आती सिवाए सोनू निगम के...ये गीत सुना ज्यादा है देखा कम...इसलिए ख्यालों में सोनू की तस्वीर ही उभरती है...मैं उसे गाते ही देख सकती हूँ...सांस लेने का उसका अंतराल...स्टूडियो की पिन ड्राप साइलेंस वाली ख़ामोशी...और इसके शब्द. कभी जो अन्त्रक्षारी खेलते हुए ये गीत शुरू कर दिया तो समझ नहीं आता था किस लफ्ज़ पर ठहरूं. गुलज़ार की ऐसी मास्टरपीस जो एकदम नैचुरल लगती है...प्रतीक भी ऐसे कि चुभते जायें जैसे यादों में कील उगी हो कोई...
जितने खूबसूरत लफ्ज़ वैसी ही सिनेमाटोग्राफी. सोचती ये हूँ कि कोई डायरेक्टर कहाँ तक सोच में रच पाता है पत्तों के गिरने का सम्मोहन या कि संगीनों के साए में इश्क की ऐसी दास्तान जो ख़त्म होकर भी ख़त्म नहीं होती. युद्द के बैकड्राप में इश्क का नाज़ुक ताना-बाना बुनना कितना मुश्किल और खूबसूरत है. डांस के हर स्टेप में जैसे खुद को खो देने की जिद आती है...तबियत से...सुरूर से...दीवानगी से...
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ऐसा ही न था उस उम्र में इश्क...मर मिटने की दीवानगी लिए हुए. जिद बांधे हुए. सब कुछ फना कर देने और उफ़ तक न करने वाला. सब कुछ वर्थ इट लगता था. जीने का मकसद सिर्फ इश्क हो तो भी कोई शिकायत नहीं. कितनी बड़ी चीज़ लगती थी उन दिनों किसी से इस तरह दीवानगी से प्यार करना.
फिर कोई तो बात होगी कि इश्क को कटघरे में खड़ा कर बिना उसकी कोई भी फरियाद सुने 'rarest of the rare'केस मानते हुए, ऐसा कुछ फिर कभी न घटे, इश्क को सजाये मौत सुना दी है. इश्क की आँखों की बुझती आखिरी रौशनी से अपने घर का दिया जलाती लड़की सोचती है सुकून से जीना कोई ऐसी तकलीफदेह हालत नहीं. गहरी सांस लेती है. ऐसा कोई गीत मगर उम्मीद का कोई बिरवा रोप जाता है कि अगले जन्म इश्क फिर खतरनाक इरादे लेकर पैदा होगा और इस बार लड़की से बदला लेना ही उसके जीवन का उद्देश्य रहेगा. इश्क की रूह लड़की के जिस्म में कैद है...इश्क का जिस्म गंगा किनारे ख़ाक. उसकी आवाज़ मगर किसी गीत में फिर जी जाती है और लड़की के दो टुकड़े हो जाते हैं...जिंदगी और मौत के बीच सदमे में झूलती इस गीत पर थिरकती है लड़की...
कातिल होता है मंज़र. उसके घुँघरू का एक सुर भी सुन लोगे तो किसी रास्ते लौट नहीं पाओगे. इससे पहले कि इश्क का जहर साँसों में उतरे, इसे पॉज कर देना.
फिर कोई तो बात होगी कि इश्क को कटघरे में खड़ा कर बिना उसकी कोई भी फरियाद सुने 'rarest of the rare'केस मानते हुए, ऐसा कुछ फिर कभी न घटे, इश्क को सजाये मौत सुना दी है. इश्क की आँखों की बुझती आखिरी रौशनी से अपने घर का दिया जलाती लड़की सोचती है सुकून से जीना कोई ऐसी तकलीफदेह हालत नहीं. गहरी सांस लेती है. ऐसा कोई गीत मगर उम्मीद का कोई बिरवा रोप जाता है कि अगले जन्म इश्क फिर खतरनाक इरादे लेकर पैदा होगा और इस बार लड़की से बदला लेना ही उसके जीवन का उद्देश्य रहेगा. इश्क की रूह लड़की के जिस्म में कैद है...इश्क का जिस्म गंगा किनारे ख़ाक. उसकी आवाज़ मगर किसी गीत में फिर जी जाती है और लड़की के दो टुकड़े हो जाते हैं...जिंदगी और मौत के बीच सदमे में झूलती इस गीत पर थिरकती है लड़की...
कातिल होता है मंज़र. उसके घुँघरू का एक सुर भी सुन लोगे तो किसी रास्ते लौट नहीं पाओगे. इससे पहले कि इश्क का जहर साँसों में उतरे, इसे पॉज कर देना.
Mesmerising...
ReplyDeletethat's the effect which is created when you pen down emotions...!!!
मन को उद्वेलित करती हुई सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteभावनाओं की खूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (16-11-2013) "जीवन नहीं मरा करता है" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1431” पर होगी.
ReplyDeleteसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
अच्छी रचना
ReplyDeleteBeautiful song as well as your post :)
ReplyDeleteAmazing!! I loved it!
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteइश्क,प्यार,प्रेम---ऐसी शाश्वत अनुभूति,कण-कण में निहित,चिर-युवा,
ReplyDeleteअगर,मुक्त हो जाय तो,स्वर्ग यहीं है,जीना,जीना है,मगर----खैर,
सुंदर
सुन्दर पोस्ट .. पढना अच्छा लगा ..
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteखूबसूरत अहसास एवं गीत दोनों ।
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