26 September, 2013

फ्रेंडशिप ऑन द रोड टु फॉरएवर

आज एक नया गीत सुना. अपनी दोस्ती जैसा. दिल किया तुम्हें फोन करके सुनाऊं. तुम हँसते हुए छेड़ो कि मेरी आवाज़ कितनी बुरी है. होस्टल के पुराने दिन याद आ रहे हैं. उन दिनों गाना कितना अच्छा लगता था. इतनी चूजी भी तो नहीं थी, अक्सर कोई ना कोई चीज़ अच्छी लगती रहती थी. कितने तो नए नए गाने सुने थे. ख़ास तौर से अंग्रेजी के. कितने तो अच्छे बोल हुआ करते थे. एक ही तरह छोटे छोटे शहर से हम आये थे. अंग्रेजी गानों में अपनी डिक्शनरी बन ही रही थी अभी. होस्टल के कोरिडोर में सीटी मारते हुए या गाना गाते हुए ही अक्सर पाए जाते थे. रात के सन्नाटे में आवाज़ कैसी गूंजती थी. तभी

मुझे याद है पहला अंग्रेजी गाना जो मैंने सुना था 'समर ऑफ़ सिक्सटी नाइन'...आज भी लॉन्ग ड्राइव्स पर एक बार जरूर बजाने का मन करता है. ख़ास तौर से सिगरेट पीते हुए. वैसे जो बात तुम्हारी तेज़ रफ़्तार बाईक में पीछे बैठ कर सिगरेट पीने का था वो जिंदगी की किसी बारिश में लौट कर नहीं आया. याद है तुम कितनी तेज़ बाईक चलाते थे? हम खामखा कैलकुलेट करते थे कि बारिश की रफ़्तार ज्यादा तेज़ या बाईक की...मैथ तो हम दोनों का उतना ही ख़राब था. पता तो बस बाईक की रफ़्तार होती थी. तुम्हारी वो नयी ब्लैक एनफील्ड. याद है मैं उसे हमेशा बुलेट कहती थी. ऑफिस से बंक मार कर इण्डिया गेट भागना. क्या खूब दिन हुआ करते थे.

सबका नंबर लगा हुआ था जिस दिन तुम्हारी बाईक आई थी. उस वक़्त मैं तुम्हारी ख़ास दोस्त भी नहीं थी लेकिन जैसा कि दस्तूर था, कोलेज की पहली बाईक थी तो हर लड़की का नंबर आना ही था. उसके बाद तुमने जाने कितना पेट्रोल फूँका होगा. कभी फ़ोटोस्टेट कराना होता था, कभी इंटरव्यू मिस हो रहा होता था किसी का. तुम एकदम से हॉट प्रॉपर्टी हो गए थे. सबका बराबर हक बनता था तुमपर और तुम इतने स्वीट कि किसी को कभी मना नहीं किया. उन दिनों तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं हुआ करती थी और कुछ यूँ कि होस्टल की हर लड़की तुमपर मरती थी.

आज ऐवें ही तुम्हारी बड़ी याद आ रही है. उन दिनों रे बैन का चश्मा. पता नहीं असली था कि दस रुपये में ख़रीदा था जनपथ से मगर कसम से क्या खूब जंचता था तुमपर. हीरो थे तुम हमारे. एक तुम्हारी बाईक आने से कितना कुछ आसान हो गया था हमारे लिए. फिर तुम्हारे लिए कितना कुछ स्पेशल होते गया था. किसी के घर से आया पिरकिया होस्टल में बंटे न बंटे, तुम्हारा कोटा हमेशा रिजर्व रहता था. बात यहाँ तक कि मेरी बेस्ट फ्रेंड की मम्मी उसके लिए आलू के पराठे और कटहल का अचार लेकर आई. अब अचार की गंध छुपती है भला. शाम तुम्हारी उँगलियों में बाकी थी हलकी महक. वो तो अच्छा हुआ उसका पहले से बॉयफ्रेंड था वरना हम दोनों लड़ मरने वाले थे तुम्हारे प्यार में.

तुमपर थोड़ा एक्स्ट्रा हक़ बनता था मेरा, आखिर एक शहर से जो थे. देखे हुए से लगते थे तुम. जाने हुए से. काम हो न हो, बारिश होती थी तो अक्सर तुम होस्टल के सामने मिल जाते थे. राइड पर ले चलने के लिए. फिर कितनी तेज़ी से पीछे छूटती थी थी गहरी गुलाबी बोगनविलिया कि बारिश गुलाबी लगती थी. कुछ तो स्पेशल था उन राइड्स में. प्यार से थोड़ा कम लेकिन दोस्ती से थोड़ा ज्यादा. मुझे याद है जब पहली बार तुम्हारी एनफील्ड चलाई थी, दिल वैसा तेज़ तो पहले प्रपोजल पर भी नहीं धड़का था. पर तुम्हें भरोसा था मुझपर. हमने वापस आकर रबड़ी जलेबी से सेलिब्रेट किया था. कायदे से हमें वोडका के शॉट्स मारने थे मगर हमें कोई और ही नशा हुआ करता था उन दिनों. शायद वो उम्र ही वैसी थी.

आखिरी कुछ प्रोजेक्ट्स करते हुए एक दिन हम ऐसे ही साथ निकले हुए थे. रिकोर्ड करते, इंटरव्यू लेते बहुत देर रात हो गयी थी. उसपर बेमौसम की बारिश. उस दिन तुमने कहा था, चल तुझे हाइवे पर ले चलता हूँ. तुझे लगता है न तू पागल है. आज मेरा भी थोड़ा पागलपन देख ले. मुझे मालूम क्या होना था कि तुझे व्हीली आती है. सुनसान सड़क पर कोहरे भरी साँसों में तूने कहा था. जरा टाईट पकड़ मुझे, जिंदगी की तरह फिसल जाऊँगा हाथों से वरना. तेरी गर्लफ्रेंड होती मैं तो शायद तुझे सेफ राइडिंग के बारे में फंडे देती लेकिन ऐसा कुछ था नहीं...था तो बस थ्रिल. जिंदगी की सबसे बेहतरीन राइड का थ्रिल. मुझे याद नहीं होगा मगर शायद मैं पागलों की तरह चीख रही थी 'आई लव यू ......' तुम्हारा नाम उस हाई वोल्यूम पर बहुत अच्छा लग रहा था सुनने में. याद है हम कैसे गा रहे थे...ए साला...अभी अभी...हुआ यकीं...कि आग है...मुझमें कहीं...रूबरू.....रौशनी. है.

गुडगाँव में ढाबे पर मक्खन मार के पराठे खाए और कड़क कॉफ़ी पी. कई बार लगा तो है कि दिल्ली के कोहरे में नशा होता है मगर महसूस उस रात पहली बार किया था. जाने किस मूड में हम, तूने कहा था, चल आगरा चलते हैं, मैंने हँसते हुए कुछ तो फेंका था तेरी ओर...क्यूँ? भर्ती होना है? और ठहाका मार कर हंसी थी. फिर तुमने फुसलाया था...एक्सप्रेसवे बना है. चल ना, जहाँ थक जायेंगे वहां से लौट आयेंगे. मुझे उस वक़्त तैराकी का चैप्टर याद आ रहा था. समंदर में तैरने चलो तो उतनी दूर जाओ जितने में आधे थके हो क्यूंकि वापस भी लौटना है. जहाँ थक गए वहां से लौट आने की इनर्जी कहाँ से लायेंगे ये सोचने का मूड नहीं था उस रात मेरा. और आगरे में रुकेंगे कहाँ, पागलखाने में?...ना, मेरी एक दीदी रहती है, उनके यहाँ चले जायेंगे. पर वैसी नौबत थोड़े आएगी...हम वापस लौट आयेंगे. एक मन कह रहा था प्रोजेक्ट का क्या होगा. फिर लगा कि लौट आयेंगे वापस, कुछ घंटों की बात है, और फिर बीमार तो कोई भी कभी भी पड़ सकता है. मैंने होस्टल से नाईट आउट शायद ही कभी ली थी. जाने कैसे तो अच्छी लड़की की छवि बनी हुयी थी मेरी. बहरहाल.

आगरा पहुँचते धूप की पहली उजली किरण बारिश में बलखाती यमुना को गुदगुदी लगा कर उठा रही थी. हम किसी ठेले पर चाय सुड़क रहे थे. फोन बजा. इत्ती भोर में किसका फोन आया होगा सोचते हुए फोन देखा तो दसियों मेसेज पड़े थे. रात को सर की बेटी की डिलीवरी हुयी थी, प्रोजेक्ट प्रेसेंटेशन दो दिन आगे बढ़ गया था. हम वाकई ख़ुशी के मारे पागल हो गए थे. कित्ती टाईटली हग किया हमने. तुम्हारे गीले बालों में कित्ती सारी धुंध अटकी हुयी थी. इत्मीनान से एक कप और चाय निपटाई और पुल पर बैठ गए. आज गज़ब अफ़सोस होता है कि उस दिन कैमरा नहीं था अपने पास. ताजमहल पर वो गाइड याद है तुम्हें, हमें कपल समझ कर कितना भाषण दे रहा था. थोड़ा अजीब लगा था इंस्टैंट फोटो वाले से फोटो खिंचवाना.

तुम्हारी दीदी कितनी क्यूट थी. उनका वो ब्लू स्कार्फ मेरे ही पास रह गया था. कसम से क्या कमाल की मैगी बनाती है तुम्हारी दीदी. मैं लड़का होती तो सिर्फ उस मैगी के लिए उनसे शादी कर लेती. हाय, प्यार हो गया था मुझे उनसे. कैसे तो मिल जाते हैं लोगों से न हम. हर मैगी के पैकट पर लिखा है खाने वाले का नाम. दीदी के छोटे से वन रूम फ़्लैट में थोड़ी देर के लिए ऐसा लग रहा था जैसे कितने पुराने और पक्के दोस्त थे हम तीनों. दीदी कितनी खुश थी कि तुमसे मिलना हो गया. दीदी को कवितायेँ सुनायीं, कुछ उनका लिखा पढ़ा. उनकी डायरी पढ़ लेने की धमकी दी.

वापसी के रास्ते कैसे कैसे तो गाने चिल्लाते आये थे हम. याद है दोस्त? जिंदगी एक सफ़र है सुहाना से लेकर ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे. कॉलेज में किसी को भी बोलते कि हम आगरा हो कर आये हैं तो सब वाकई यही कहते कि हाँ...आगरा होकर आये हो. तो खबर हम दोनों आराम से पचा गए. हम दोनों अच्छे खासे सच बोलने वाले इंसान थे इसलिए किसी ने ज्यादा पूछताछ भी नहीं की.

सोचती हूँ अगर तेरी पोस्टिंग किसी दूसरे शहर में नहीं होती तो क्या वैसी कुछ और लॉन्ग राइड्स पर जाती क्या तुम्हारे साथ. तुम भी जाने किसी कोहरे वाले दिन में तेज़ चलाते होगे बाईक तो मेरा आई लव यू याद आता होगा. बात सिंपल थी लेकिन वो लव यू शायद कहीं अटका रह गया मेरी यादों में. आज तुम्हारी बहुत याद आई. आगरा और ताजमहल से भी ज्यादा. जान से प्यारे दोस्त...बहुत साल हो गए मिले हुए...चल न, एक राइड पर चलते हैं. तेज़ चमकती रोशनियाँ हो. बहुत सारा कोहरा हो. कानों में सीटियाँ बजाती हवा हो. फिर से तुम्हारा नाम लेकर दिल्ली से लेकर आगरा के पागलखाने को सुनाने का मन कर रहा है. आई लव यू.

हाँ, इत्ती कहानी सुना दी...गाना ये वाला था...


I think that possibly, maybe I'm falling for you
Yes there's a chance that I've fallen quite hard over you.
I've seen the paths that your eyes wander down
I want to come too

No one understands me quite like you do
Through all of the shadowy corners of me

I think that possibly, maybe I'm falling for you

7 comments:

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  2. अद्भुत, बहुत सारी यादें, ताजा कर दी आपने, बस जगहें और पात्र अलग हैं। मेरा आगरा नहीं, कलकत्ता(अब कोलकाता) हुआ करता था और पापा से छिपकर रात के धुंधलके में भाग खड़े होते थे हम, सुबह की धूप जब विक्टोरिया को छूती हुई गिरती थी, तो तबीयत हरी हो जाती थी, फिर मैदान का जोर गरम चना और वी आई पी रोड पर रेसिंग, उफ़ क्या दिन थे वो भी, अब तो भागती दौड़ती ज़िन्दगी, कसमसाता प्रोजेक्ट, रेवेन्यु, डॉलर और शनिवार की शाम के शॉट्स, दूरियां मिटाने के लिए खुशबू से बातचीत और फिर बस वही ढर्रा, पुरानी यादों को हरी करने के लिए शुक्रिया।

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  3. सुना है, मोटरसाइकिल की दीवानगी पागल कर देती है, इसीलिये कभी नहीं खरीदी है।

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  4. “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
    -
    रोयल इनफील्ड तो मैं भी चलाता हूँ पर कभी रेसिंग खिलौने की तरह इस्तेमाल नही किया |वैसे भी हमारे देश में ट्राफिक नियमों की ऐसी तैसी होती ह रहती हैं |
    **********************
    आपकी यह रचना बिलकुल ,दिल की आवाज ,दिल से निकली हैं ,बहुत सुंदर एहसासों,ख्वाबो से भरी हुयी |

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  5. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है की आपकी यह रचना आज सोमवारीय चर्चा(http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/) में शामिल की गयी है, आभार।

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  6. नि: शब्द करता संस्मरण .कही कही खुद को खोजता सा कही कही कुछ कसकता सा .......... बेहतरीन ब्लॉग पोस्ट जो आज मैंने पढ़ा ....हैट्स ऑफ

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  7. फॉरएवर....
    कितना सुन्दर है न ये शब्द...!

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