इस शनिवार मैंने रा.वन देखी. कुछ कारणों से दिन का शो नहीं जा पाए तो लेट नाईट नौ से बारह का थ्री डी शो देखने गए...कुछ दोस्तों के साथ. बंगलौर में फेम शंकरनाग मुझे खास तौर से पसंद है क्यूंकि इसमें बहुत ही बड़ा पर्दा है. थ्री डी फिल्म के चश्मे इस बार बाकी सभी थ्री डी फिल्मों से बेहतर मिले और पहनने में बिलकुल आरामदायक थे.
फिल्म को काफी नेगेटिव रिव्यू मिले हैं...जाने के पहले कुछ मित्रों ने भी नहीं देखने की सलाह दी...मगर हमने ख़राब से ख़राब फिल्म थियेटर में देखी है, फिल्म देखना हम अपना फ़र्ज़ समझते हैं. थोड़ी सी भी गुंजाईश लगती है तो हम जरूर जाते हैं. मुझे लगा कि इस फिल्म को लेकर मेरा नजरिया यहाँ जरूरी है.
पहले फिल्म का नकारात्मक पक्ष, क्यूंकि मेरे हिसाब से काफी कम है. रा.वन का सबसे बड़ा विरोधाभास है इसके दर्शक वर्ग का चुनाव. फिल्म बच्चों के लिए बनाई गयी है...मगर कई जगह बेहद अश्लील है. हिंदी फिल्मों में आजकल द्विअर्थी डायलोग आम बन गए हैं पर चूँकि ये फिल्म बच्चों पर केन्द्रित है ऐसे सीन या डायलोग इस फिल्म में नहीं होने चाहिए थे. किसी भी परिवार को फिल्म देखने में आपत्ति हो सकती है. कुंजम की जगह कंडोम का प्रयोग या फिर शारीरिक हावभाव जबरदस्ती ठूंसे गए लगते हैं. फिल्म अपने मकसद में एक छोटी भूल से चूक जाती है. अगर आप इसे इग्नोर कर सकते हैं तो आगे पढ़ें...और आगे फिल्म भी देखें.
दूसरा नकारात्मक पक्ष paairecy या फिर नक़ल कह सकते हैं...जैसे रा.वन का हार्ट सीधे आयरन मैन फिल्म से उड़ाया गया है. चंद छोटे टुकड़ों में और भी चीज़ें इधर उधर से ली गयी हैं...मैं इसे भी इग्नोर करने के मूड में हूँ...क्यूंकि कमसे कम कहानी का आइडिया असली है.
फिल्म की सबसे अच्छी चीज लगी इसका मूल कांसेप्ट या अवधारणा जिसके इर्द गिर्द कहानी घूमती है- कि सच की हमेशा जीत होती है और इस चीज़ को ऐसे दिखाना कि बीइंग गुड इज आल्सो 'कूल'. हमारे आज के बच्चे वाकई फिल्म के प्रतीक की तरह हैं, उन्हें लगता है कि अच्छा होने से क्या मिलता है. बुरे लोग ज्यादा सफल होते हैं. ऐसे में ऐसे 'अच्छे' के मूल विषय पर फिल्म बनाना हिम्मत की बात है और इस लिए मैं शाहरुख़ खान को बधाई देती हूँ कि उसने ऐसा विषय चुना. ऐसे में लगता है कि काश फिल्म में जबरदस्ती के अश्लील डाइलोग नहीं होते तो फिल्म बहुत ही ज्यादा बेहतरीन होती.
रा.वन और भी कई जगह अच्छी लगी है. जैसे स्मोकिंग के बारे में स्क्रिप्ट में मिले हुए डायलोग. एक जगह जब छत पर जी.वन और प्रतीक बातें कर रहे हैं तो जी.वन पहली बार सिगरेट पीता है...और प्रतीक से कहता है 'तुम्हें पता है हर साल २० प्रतिशत(या ऐसा ही कुछ, ठीक से याद नहीं है मुझे) लोग सिगरेट हमेशा के लिए छोड़ देते हैं' तो इसपर प्रतीक पूछता है कि कैसे तो जी.वन जवाब देता है 'कि वो लोग मर जाते हैं'. स्मोकिंग के लिए सिर्फ एक लाइन की खानापूर्ति से बढ़ कर इस फिल्म में ऐसे एक दो और जगह पर बताया गया है कि सिगरेट अच्छी नहीं है.
फिल्म हिंदी में बनी पहली थ्री डी फिल्म है, सिर्फ इसी एक कारण के लिए फिल्म देखने जाना जरूरी है. हिंदी को जब तक नयी तकनीक, नए दर्शक नहीं मिलेंगे पुराने लोगों के साथ ही भाषा ख़त्म हो जायेगी. आपने आखिरी कौन सी हिंदी फिल्म देखी थी जो आपके बच्चों को अच्छी लगी थी? इस फिल्म को देखने का सबसे अच्छा कारण है इसके थ्री डी इफेक्ट. आजतक किसी हिंदी फिल्म में इस तरह के इफेक्ट नहीं देखने को मिले हैं. लगभग उतने ही अच्छे शोट्स हैं जैसे हॉलीवुड/अंग्रेजी फिल्मों में होते हैं. हिंदी फिल्म में ऐसी तकनीकी उत्कृष्टता देख कर वाकई गर्व महसूस होता है. मुझे बेहद अच्छा लगा इसका तकनीकी पक्ष. चाहे फाईट सीन हों या गेम का थ्री डी माहौल, फिल्म हर जगह खरी उतरती है. खास तौर से विक्टोरिया टर्मिनस के टूटने का शोट भव्य है. सिनेमाटोग्राफी बेहद अच्छी है, लन्दन की खूबसूरती हो या डांस के स्टेप्स...सब कुछ एकदम रियल लगता है.
हमारे बच्चे हिंदी फिल्में नहीं देखते...हिंदी फिल्में इस लायक होती ही नहीं कि बच्चे देख सकें. रा.वन में भी कुछ गलतियाँ है जिसके कारण मैं इसे पूरी तरह सही नहीं कहूँगी...पर ये कमसे कम एक शुरुआत तो है. इसे पूरी तरह ख़ारिज नहीं किया जा सकता.
किसी चीज़ में बुराइयाँ देखना बहुत आसान है...पर अच्छाइयों पर भी थोड़ा ध्यान दिया जाए...फिल्म यही कहने की कोशिश करती है. एक बार फिल्म को खुले दिमाग से मौका दीजिये...रा.वन इतनी बुरी नहीं है कि आप देख न सकें. फिल्म में एक अच्छी कहानी है, अच्छे स्टार हैं जो अभिनय करते हैं. चाहे हमारा सुपरहीरो जी.वन हो या प्रतीक. एक आखिरी बात और...१०० करोड़ रुपये लगा कर हिंदी की सबसे महँगी फिल्म बनी थी 'ब्लू' अगर आपने देखी है तो आपको ये १५० करोड़ रुपये बिलकुल सही जगह खर्च किये हुए लगेंगे.
मेरी तरफ से फिल्म को ४ स्टार(पांच में से)...एक अच्छी मसाला, टाईमपास, सुपर एफ्फेक्ट्स वाली सुपरहीरो वाली बोलीवुड फिल्म.
फुटनोट: इससे पहले कि कोई पूछ ले...शाहरुख़ खान ने इस रिव्यू को लिखने के लिए मुझे कोई पैसे नहीं दिए हैं
इस मूवी से जुडी तीसरी पोस्ट पढने को मिली , आपने पूरी तरह कन्फ्यूज कर दिया :)
ReplyDelete@रा.वन का हार्ट सीधे आयरन मैन फिल्म से उड़ाया गया है
ये जानकारी नयी है
क्योंकि बोलीवुड फिल्म है , मैं तो इसके लिए सिनेमा हाल जाने की मेहनत नहीं करने वाला चाहे फ्री हो :)
क्या आपने मेगाधीरा [Telugu] देखी है ?
जिस दिन साऊथ इन्डियन(तमिल, तेलगु, कन्नड़) फिल्मों के अंग्रेजी या हिंदी सबटाइटिल आ जायेंगे देखना शुरू कर दूंगी...मगधीरा का बहुत नाम सुना है पर देखी नहीं है.
ReplyDeleteआयरन मैन के पोस्टर्स भी आपने देखे होंगे तो उसमें सूट के बीच में रौशनी बिखेरता गोल पॉवर एलेमेन्ट है...रावन में भी ऐसा ही है बस उसकी पोजीशन अलग है.
dhanywad pooja aaj aapne mere ticket ke pese bacha diae ?
ReplyDeleteकिस आधार पर आप यह कह रही हैं कि यह फिल्म बच्चों के लिए है ? क्या ऐसा निर्माता ने घोषित किया है ? मैंने फिल्म नहीं देखी हैं अभी तक मगर यह आपके मुंह से पहली बार सुन रहा हूँ कि यह फिल्म बच्चों के लिए है !
ReplyDeleteएक बार तो हम भी देख लिये हैं, हमें तो आनन्द आया।
ReplyDelete@अरविन्द जी...शाहरुख का इंटरव्यू आया था जिसमें वो खास तौर से इस बात का जिक्र करते हैं कि उन्हें बच्चों के लिए फिल्म बनानी थी...ताकि आगे कुछ साल बाद ऐसा न हो कि उनका बेटा ही कहे कि वो हिंदी फिल्में नहीं देखता...फिल्म की मार्केटिंग इस चीज़ पर केंद्रित है कि फिल्म एक पिता और उसके बेटे के रिश्ते पर बनी है.
ReplyDeleteबाकी आप इस फिल्म का प्रमोशन देखें...इससे जुड़ी आर्टिकल पढ़ें...हर जगह ये बात खास तौर से कही गयी है कि फिल्म बच्चों के लिए है. सुपरहीरो फिल्मों के बारे में वैसे भी तयशुदा है कि बच्चों के लिए है, चाहे वो क्रिश हो, स्पाईडरमैन हो या इनक्रेडिबिल्स.
@पूजा जी,
ReplyDeleteभारत में हर साईंस फिक्शन /साई फाई को एक सहज बोध की तरह बच्चों की फिल्म मान लेने की मानों प्रथा ही ही है ....क्योकि इन फिल्मों का कोई और साहत्यिक कोना यहाँ अपना वजूद नहीं बना पाया है तो जो कुछ आश्चर्यमूलकता लिए हो ,स्वैर कल्पना का पुट लिए हो अक्सर बच्चों का साहित्य मान लिया जाता है ....मैंने केवल इस लिहाज से यहाँ इस सवाल को रखा है ..अब फिल्म देख लूं तभी कुछ निश्चयात्मक बात आपकी उक्त टिप्पणी पर कर पाने की स्थिति में होउंगा!
धन्यवाद !
बच्चे गये हम नहीं गये...अब जाने का मन हो रहा है। बच्चों ने भी खूब तारीफ करी और आपने भी।
ReplyDeleteनहीं जी, हम नहीं देखेंगे :)
ReplyDeleteपता नहीं क्यों कुछ फिल्मों के ट्रेलर से ही मुझे चिढ सी हो जाती है. और मैं नहीं चाहता कि मेरे पैसे (एक टिकट का ही सही) वैसी फिल्मों में लगे जिससे फिल्म बनाने वालों को वहम हो कि वो बहुत अच्छी फिल्म बना गए और ऐसी और फिल्में भी बनाएं ! तो इसी क्रम में मैंने फ्री-टिकट के ऑफर को छोड़ उस ऑफर देने वाले को डिनर भी कराया. जेब ज्यादा ढीली हुई लेकिन लगता है कि बेहतर तरीके से :P
फिर एक बार देखने के क्रम में ही वो फिल्में हिट हो जाती हैं जिन्हें नहीं होना चाहिए. नहीं देखने के और भी कई कारण है लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण यही वाला है :)
@अभिषेक...मेरे लिए देखने का एकमात्र कारण अगर कहोगे तो वो थ्री डी एफ्फेक्ट है. बनाने वाले को क्या गुमान है इसका क्या कर सकते हैं. :)
ReplyDeleteजो फिल्में चर्चित हुयीं उन्हें बिना देखे गरियाने में मन नहीं लगता...तो पहले देख लेते हैं फिर गरियाते हैं, अगर वैसा लगा तो. कई बार अच्छी से अच्छी फिल्म पसंद नहीं आती तो कई बार खराब रिव्यू वाली फिल्में अच्छी लग जाती हैं. ये रिस्क तो उठाना ही पड़ता है :)
सकारात्मक पहलुओं से परिचित हुआ. मेरी पोती ने भी परसों रात फोन कर फिल्म की तारीफ की थी.
ReplyDeleteआप सही थीं ..यह पढ़ें -
ReplyDeleteबच्चों को और उनकी माँ को भी जरुर दिखाईये रा.वन!
आपके ब्लॉग में फिल्म समीक्षा तो दिखती नहीं, लेकिन पढ़ने के बाद पता लगा की आप क्यों लिखी हैं...
ReplyDeleteमैं कभी भी किसी फिल्म की समीक्षा देख कर उसे देखने नहीं जाता...रा-वन की बहुत बुराई सुन रहा हूँ लेकिन फिर भी एक दो दिन में देखने जाऊँगा, ये पक्का है..
आपके ही ब्लॉग से एक बार एक फिल्म के बारे में पता चला था "What dreams may come"..मैं भी देखि...बेहतरीन फिल्म लगी मुझे वो!
@अभी...शंकरनाग में देखना...और सीट हॉल में बीच में लेना, ना ज्यादा आगे न पीछे वाली रो में. थ्री डी का अच्छा एफ्फेक्ट आएगा. बोलीवुड मसाला फिल्म की तरह देखने जाओगे तो अच्छी लगेगी.
ReplyDeleteWhat dreams may come की सिनेमाटोग्राफी बहुत अच्छी थी. ब्लॉग पर मुझे कुछ खास नहीं लिखना है. जब किसी चीज़ से मुझे फर्क पड़ता है, कुछ अच्छा लगता है, या बुरा लगता है तो लिख लेती हूँ. समीक्षा टाइप फिल्म के बारे में लिखने में मज़ा नहीं आता...हाँ फिल्म देख कर कैसा लगा लिखती रहती हूँ.
अगर तुमने In the mood for love नहीं देखी है तो देख लेना...बेहतरीन फिल्म है.
haan, wo film bhi dekhi hai...meri pasandida filmon mein se hai wo :)
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