04 July, 2011

एक टुकड़ा जिंदगी (A slice of life )

पात्र: मैं, Anupam Giri (जिसे मैं अपना friend philosopher guide मानती हूँ)

वक़्त: कुछ रात के लगभग बारह बजे...कुणाल को आज देर तक काम है और मुझे फुर्सत है...अनुपम को फुर्सत रात के ११ बजे के पहले नहीं होती है. 

Context: discussing a film script i am working on nowdays


कुछ आधे एक घंटे से मैं उसको कहानी सुना रही हूँ....बिट्स एंड पीसेस में...जैसे की मेरे दिमाग में कुछ चीज़ें हैं...कुछ घटनाएं...कुछ पंक्तियाँ...कुछ चेहरे जो अटके हुए हैं. किरदारों के साथ घुलते मिलते कुछ मेरे जिंदगी के लोग...कुछ गीत....और तेज़ हवा में सालसा करती विंडचाइम...अच्छा सा मूड.
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मैं: और पता है अनुपम...ये जो कहानी है न ...पहली बार ऐसा हुआ है कि मुझे कुछ पसंद आया है और मैंने उसे २४ घंटों के अंदर कचरे के डब्बे में नहीं डाला है...और तुम ही कहते थे न...The best way to judge your work is to read it the next morning...if you still like it...its a good idea.'

अनुपम: हाँ...but you really have to know this girl inside out...her every single trait...her sun-sign...her dressing habits, her fears...dressing sense...her background...तुम उसे जितना अच्छे से जान सकती हो. 

मैं: हाँ मगर अभी मैं बाकी लड़कों का character sketch कर रही हूँ....उसे बाद में लिखूंगी.

अनुपम: What are you afraid of?...तुम्हें डर लग रहा है that in finding this girl you might accidentally  discover who you truly are?

मैं: (बिलकुल ही यूरेका टाइप मोमेंट में कुछ बुदबुदाते हुए) How well do you know me Anupam...gosh...how can you read me like this...(some intelligible sounds) yeah...i mean...no...मतलब...हाँ...उहूँ...ह्म्म्म...ok you win yar!!

(Still astounded)

7 comments:

  1. स्वयं को पन्ने पर उतारना सरल हो जाता है, यदि स्वयं को समझ सकें।

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  2. ऐसा कभी कभी होता है...दूसरों के लिए की गयी खोज हम पर ख़तम हो जाती है,....बहुत अच्छी पोस्ट.

    नीरज

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  3. बहुत बढ़िया.
    घुघूती बासूती

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  4. अजीब हाल है की हम जहाँ, जो समझना चाहते हैं वही वो समझते हैं. समझने पर भी दबंगई चलती है. सोचने पर भी !
    तकिया लेकर दोनों कान बंद कर लो, ख्याल तो घुस ही आता है, गर्दन झटक कर इग्नोर भी करते हैं फिर सोचते हैं कि हटाओ यार, ये सुख नहीं दे रहा.

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  5. बिल्कुल निशाने पर मारा है तीर ..

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  6. अपने किरदारों में या तो हम होते है या वो जो हम नहीं हो सकते..

    कई बार ऐसा होता है...

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