01 July, 2009

याद के दामन का लम्हा

याद के दामन से छिटक के आया एक लम्हा
रातों रातों आँखें गीली कर गया

उदास राहों में संग दोस्तों के
तुम्हें भूलने की वजहें तलाशती रही

कहानियों के दरमयान रह गए कोरे पन्ने
अनकहा लिखती रहती सुनती रही

कब से अजीब ख़्वाबों में उलझी हूँ
जिंदगी के मायने बिखर के खो गए हैं

दर्द यूँ टीसता है...जैसे मौत से बावस्ता है
और हम हैं की जख्म सहेजे हुए हैं

ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं

27 comments:

  1. बहुत खुब... सुन्दर रचना..

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  2. ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं


    बहुत शानदार अभिव्यक्ति है. सच मे कुछ लम्हें ऐसे होते हैं कि चाहे अनचाहे वहां ठहरना ही पडता है.

    रामराम.

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  3. अच्छा लिखा है पूजा। आपका अंग्रेज़ी ब्लाग देखा। अंग्रेज़ी की अभिव्यक्ति और अच्छी लगी।

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  4. मुझे आखिरी पंक्तियाँ बहुत पसंद आई ...

    ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं

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  5. ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं

    -बस, यहीं ठहर गये. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति!!

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  6. सुंदर रचना .... लेकिन आपकी सारी रचनाये इतनी दर्द भरी क्यूँ होती हैं

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  7. आपकी हर रचना बेहतरीन होती है। ओस की बूंद की तरह चमकती हुई सुन्दर।

    ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं

    वाह और क्या कहें।

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  8. Lekin aapke har post ko padha hai....right from the one, with your Delhi love, JNU days, and interview....I loved them all. Needless to say, every article was good....very good...awesome. Infact, I loved your articles as much to put you in "Blogs I'm Following" list...

    Infact, Hindi me jo aap Bihari chutney dalti hai na, pucchiye mat, karejwa pe chot karta hai...aur aisa lagne lagta hai, ki hum apne gaon, apne Bihar pahuch gaye...
    Infact, mera akhri post apke post se inspired tha.

    Aur ha....Mai Delhi me hu...abhi....ye apko jealous karne ke liye hai...


    Raj

    http://bharatmelange.blogspot.com
    http://routeisbusy.blogspot.com

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  9. रचना की तो कोई बात ही नहीं. लेकिन आजकल अंतराल कुछ बढ़ गया है

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  10. ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं
    ... behad prabhaavashaali !!!!

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  11. वाह! क्या खूब कहा!

    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं

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  12. उदास राहों में संग दोस्तों के
    तुम्हें भूलने की वजहें तलाशती रही
    बहुत सुन्दर कहा है.

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  13. कुछ लम्हे कभी एक जिंदगी से ज्यादा कीमत दे जाते है .ओर कुछ दर्द ......

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  14. उदास राहों में संग दोस्तों के
    तुम्हें भूलने की वजहें तलाशती रही

    कहानियों के दरमयान रह गए कोरे पन्ने
    अनकहा लिखती रहती सुनती रही

    ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं
    बहुत ही अच्छा लिखा...!

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  15. Thats a beautiful poetry.

    Especially the last two lines..

    these ppl who just leave away, dont realise the pain they gave....
    But it brings the immense poet in us..

    Good one..

    Hope to see this poet around my blog sometime.. :-)


    Cheers
    Mahesh

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  16. A beatifull creation.
    Finding myself unable to post u r the second person i knew who has read " pachpan khabne lal deeware" by Ushaji.

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  17. This comment has been removed by the author.

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  18. "कहानियों के दरमयान रह गए कोरे पन्ने
    अनकहा लिखती रहती सुनती रही"

    bahut सुंदर अभिव्यक्ति... यह अनकही ही तो सबसे अधिक गहरी होती है...

    आपकी कोई रचना दिल को ना छुए ऐसा कभी नहीं होता... यूँ ही लिखते रहिये... :)

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  19. अद्भुत, बस आखिरी दो लाइनें !
    पूजा जी, बाकी सारी पंक्तियों में लय और 'मीटर' का अभाव सा है। . .
    भावना छन्द को कविता संगीत इतनी उतावली में नहीं दिया जाता।

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  20. कौनसी रोशनी में लिखती हैं आप कि शब्द खिले-खिले से लगते है

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  21. ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं
    इन पंक्तियों पर सब कुछ ठहर जाता है...
    अद्भुत रचना.

    प्रकाश

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  22. उदास राहों में संग दोस्तों के
    तुम्हें भूलने की वजहें तलाशती रही

    कहानियों के दरमयान रह गए कोरे पन्ने
    अनकहा लिखती रहती सुनती रही


    ... बहुत बेहतर ।
    ... आपकी रचना हर बार की तरह
    ... मुझे फिर से खमोश कर गई ।
    ... और कुछ लिखने को प्रेरित कर गई ।

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  23. कब से अजीब ख़्वाबों में उलझी हूँ
    जिंदगी के मायने बिखर के खो गए हैं
    sunder rachana, ye panktiyaan achchi lagi
    Surinder

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  24. एक अलग-सी जुदा शैली की नज़्म...

    कुछ लम्हे सचमुच कैसे तो हमें थामे से रहते हैं..

    बहुत अच्छा लिखती हो पुजा

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  25. ऐसा नहीं कि कोई आस है तुमसे बाकी
    हम उस लम्हे में ही अब तक ठहरे हुए हैं
    poojaa ji aapki ye panktiyaa kamaal ki hain ...
    Surinder

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