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रविन्द्र नाथ टैगोर का लिखा ये गीत यहाँ हेमंत मुखर्जी ने गाया है....
ये गीत बचपन की सोंधी यादों की तरह बेहद अजीज है मुझे। उस समय सीडी या कैसेट आसानी से नही मिलता था...और पापा को गानों का बहुत शौक़ था। तो उपाय एक ही था...हमारे पास दो टेप रिकॉर्डर थे...और उसमें से एक में हमेशा एक blank casette रहता था...cue किया हुआ, जब भी टीवी या रेडियो पर कुछ अच्छा आता, उसे हम रिकॉर्ड कर लेते.
देवघर, दुमका और झारखण्ड के कई प्रान्तों में बांगला संस्कृति की गहरी छाप है, मेरे पापा को भी बांग्ला से बड़ा लगाव है, और रबिन्द्र संगीत हमारे घर में बचपन से गूंजता रहा है। कई बार होता है कि किसी एक वक्त चेहरे धुंधले पड़ जाते हैं, पर आवाजें, या कुछ खुशबुयें हमेशा साथ रहती है।
इस गीत के साथ भी कुछ ऐसा ही है...एक भी बोल समझ में नहीं आता था, पर गाना इतना मधुर था कि इसकी धुन कितने दिन गुनगुनाती रहती थी। कई शामें याद आती हैं, सन्डे को पापा, मम्मी, जिमी और मैं, टेप रिकॉर्डर को घेर कर बैठे रहते थे और पापा चुन चुन कर कई सारे अच्छे गाने हमें सुनवाते थे। मम्मी अक्सर खाने को पकोड़ा या ऐसा ही कुछ बनाती थी...और अधिकतर ये वो शामें होती थीं जब बारिश होती रहती थी...क्योंकि उस वक्त हमारे पास हमारा प्यारा राजदूत हुआ करता था, और बारिश में बाहर जाना कैंसल हो जाता था।
तो उन सन्डे को हम दोपहर में regional वाली फिल्में देखते थे दूरदर्शन पर...और शाम को गाने सुनते थे। पकोड़े के साथ घर का बना हुआ सौस या फ़िर पुदीना की चटनी। घर में कुएं के पास पुदीना लगा हुआ था...और मम्मी फटाफट उसकी चटनी पीस देती थी...अलबत्ता हम भाई बहन लड़ते थे, कि तुम जाओ तोड़ने...और मैं चूँकि बड़ी थी तो आर्डर पास करने का हक मुझे था। अक्सर होता ये था कि खींचा तानी में दोनों को ही जाना पड़ता था।
कुर्सी पर बैठ कर हम अक्सर पाँव झुलाते रहते थे(उस वक्त छोटे थे हम तो पाँव नीचे नहीं पहुँचता था) और मम्मी से डांट खाते थे कि पाँव झुलाना अच्छी बात नहीं है। कैसेट की वो खिर खिर की आवाज, जैसे गाने का ही हिस्सा बन जाती थी। या फ़िर कई बार गाने के पहले वाले प्रोग्राम की आवाज। इसी तरह महाभारत के बीच में दो पंक्तियों का गीत आता था, वो भी रिकॉर्ड था। फ़िर कुछ सेरिअल्स में ऐसे ही गाने आते थे, जैसे नीम का पेड़, पलाश के फूल, और थोड़ा सा आसमान...इनके गीत कितने दिन सुने हम सबने।
अब कुछ भी पाना कितना आसान हो गया है बस गूगल करो और सब सामने...पर उस गीत को कैसे ढूंढें जिसके बोल ही मालूम नहीं हों...ये गीत बहुत दिन, बहुत से बांगला गीत सुनने के बाद आज मिला है। आज इसके बोल भी ढूंढ लिए मैंने...यादों की खिड़की से झांकती है एक शाम...और बादलों की गरज, सोंधी मिट्टी की महक, पकोडों के स्वाद के साथ पापा की आवाज जैसे पास में सुनाई देती है... जब पापा ये गाना गाते थे...कभी कभी.
वाकई पुराने दिन कहीं भुलाये जा सकते हैं...
Purano shei diner kotha
Bhulbi kii re
Hai o shei chokher dekha, praaner kotha
Shaykii bhola jaaye
Aaye aar ektibar aayre shokha
Praner majhe aaye mora
Shukher dukher kotha kobo
Praan jodabe tai
Mora bhorer bela phuul tulechi, dulechi dolaaye
Bajiye baanshi gaan geyechi bokuler tolai
Hai majhe holo chadachadi, gelem ke kothaye,
Abaar dekha jodi holo shokha, praner majhe aai
बार-बार आपकी पुरानी यादों की लहरें उछलने लगती हैं आपके वर्तमान में । आप दुलारकर, सहलाकर उन्हें अपने पास बिठा लेती हैं ।
ReplyDeleteप्रविष्टि का आभार ।
http://shrota.blogspot.com/2008/09/80_17.html
ReplyDeletewqt mile tab sunna hindi wala nhi bangala wala.
पुराने दिन वाकई हसीन थे
ReplyDeletehttp://photographyimage.blogspot.com/
सुन्दर गीत था. हमें भी टेप रिकॉर्डर की कहानी याद आ गयी. हाँ फिरोजा बेगम ने भी बहुत सारे बंगाली गीत गाये हैं. बड़े दिलकश.
ReplyDeleteआभार.
मेरा एक दोस्त है जो बंगाली है ...उसके घर से जब भी फ़ोन आता तो हॉस्टल में वो अपने मम्मी पापा से बंगाली में ही बात करता....२-४ शब्द ही समझ आ पते थे .....कम्बखत की शादी तय हो गयी है तो अब सबसे ज्यादा फायदा उठा रहा है ....अपनी होने वाली बीवी से हमारे सामने बैठकर भी बात करता रहे तो भी हमे समझ नहीं आता क्योंकि वो बंगाली में शुरू हो जाता है :) :)
ReplyDeleteहमें तो अब भी एक गीत याद आता है ".एक चिडिया अनेक चिडिया दाना चूघ के लाती चिडिया "
ReplyDelete.कितना भला था दूरदर्शन ओर कितना भला था बचपन...बेचारा अब भी निस्वार्थ गुमशुदा की फोटो दिखा रहा है .
आपकी पोस्ट पढ़ते हुए लयकारी याद आ गयी और गाना सुनते हुए गुजरे जमाने की बातें स्मरण हो आईं.
ReplyDeletehaqeeqat hai kuch chezain hamesha dil ke sath lag jati hai
ReplyDeletebahut achcha likha aapne
खूब याद किया आपने पुराने दिनों को.... हम भी रीजनल फिल्म से पहले मूक बधिरों के लिए समाचार कभी लुत्फ़ खूब उठाते थे :)
ReplyDeleteहाँ, गान सुनते खूब भालो लागलो,
पोरानो शेय दिनेर कोथा,
भूलबी की रे ...
ना, पोरानो दिनेर कोथा की कोखोनो भूला जाये ??
जाने कहां गए वो दिन
ReplyDeleteगाना बहुत मधुर लगा...हालाँकि बंगाली में होने से समझ में नहीं आया.अगर हिंदी अनुवाद भी दे देती तो बहुत अच्छा होता..
ReplyDeletemujhe hamesha se hi yadon ke sath gote lagana achchha lagta raha hai.. so by default, tumhara ye post bahut achchha laga.. :)
ReplyDelete"कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन"
ReplyDeleteफिर पुरानी यादें ताज़ा हो गईं...मैंने खुद करीब १५० कैसेट रिकार्ड किए होंगे...आज भी कभी उनको निकाल कर साफ़ करता हूँ तो सारी बातें एक पल मे सामने से गुजर जाती हैं।कितने दु्र्लभ गीत अभी भी उनमें है जो अब कहीं सुनाई नहीं देते....पुरानी यादों को ताज़ा करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...
[वैसे मुझे आपकी फ़िल्म के गीत लिखने का अग्रीमेन्ट कब मिलने वाला है?]
बंगला गीतों की मिठास सभी को भाती है.
ReplyDeleteI've heard this song ages back..like it so much, but lost it and I found it today on your blog.
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