२५ साल से २६ साल का होने में कितना अन्तर होता है? पूरी जिंदगी के हिसाब से देखें तो शायद कुछ भी नहीं, ये भी बाकी सालों की तरह एक उम्र की गिनती है। मगर महसूस होता है, की जिंदगी अब एक अलग राह पर चल पड़ी है।
मैंने जाने कब तो तय कर लिया था...की २५ पर बचपन को अलविदा कह दूँगी...यूँ तो बचपन उसी दिन विदा हो गया था जब माँ छोड़ कर गई थी...पर आज जब मैं २६ साल की हो गई तो वाकई लगा कि अब बचपन विदा ले चुका है।
और आप मानें या न मानें, हमें लगता है कि हम अब थोड़े ज्ञानी हो गए हैं :) (सुबह ताऊ की पोस्ट भी तो पढ़ी थी)।
जिंदगी बहुत कुछ सिखा देती
है और मुझे लगता है कि जब से ब्लॉग पर
लिखना और पढ़ना नियमित किया है, बहुत कुछ जानने सीखने को मिला है। ब्लॉग अक्सर लोग दिल से लिखते हैं, बिना काट छाँट के इसलिए ब्लॉग पढ़ना बिना किसी को जाने एक रिश्ता कायम करने जैसा है...आप किसी की खुशी, गम, जन्मदिन, बरसी सबमें शामिल होते हैं...कोई आपको अपना समझ कर लिखता है...आभासी ही सही, पर ब्लॉग के लोग भी परिवार जैसे हो जाते हैं। मैं कुछ ही लोगों से बात करती हूँ...पर रिश्ता तो उन सबसे है जिनका ब्लॉग मैं पढ़ती हूँ, या वो मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं।
जिंदगी में ज्यादा जोड़ घटाव नहीं किया, लगा कि यही सब करती रही तो जीने का वक्त कहाँ मिलेगा...पर आँखें बंद कर के जिंदगी के कुछ बेहतरीन लम्हों को यार करती हूँ तो लगता है...मैंने जिंदगी जी है और बेहद खूबसूरती से जी है। शिकायत है तो बस खुदा से, बस इतनी छोटी सी शिकायत कि मेरे साथ मेरी खुशियों में मेरी माँ क्यों नहीं है...अभी जब मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण दौर शुरू हुआ है तो लगता है कि अपनी खुशियों को बाँटने के लिए उसको होना चाहिए था मेरे साथ।
पाने खोने का अजीब गणित होता है भगवान् का...इसके पचड़े में पढ़ने से कोई फायदा नहीं है...पिछले साल कुछ लोगों से फ़ोन पर बात हुयी मेरी, गाहे बगाहे होती भी रहती है, जैसे पीडी, कुश, डॉक्टर अनुराग, अपने फुरसतिया जी, ताऊ...और कुछ बेहतरीन लोगों से बात हुयी मेल पर...बेजी, सुब्रमनियम जी, गौतम जी, महेन जी...लगा कि अपने जैसे लोगों का दायरा उतना भी छोटा नहीं है जितना मैं हमेशा समझती आई थी। लम्हों के इस सफर में अगर घड़ी भर को भी कुछ दिल को छू जाता है तो अक्सर घंटों तक होठों पर मुस्कराहट रहती है। आप सब का शुक्रिया...कहीं
न कहीं आपको पढ़कर, समझ कर जिंदगी थोड़ी आसान और खूबसूरत महसूस हुयी है।
सुबह आँखें खोली मैंने
आसमान रंगों से लिख रहा था
जन्मदिन मुबारक...
हवायें गुनगुना रही थीं
सूरज थिरक रहा था उनकी धुन पर
खिड़की पर खड़ा था एक बादल
बाहर घूमने की गुज़ारिश लिए
इतरा के ओढ़ा मैंने
खुशबू में भीगा दुपट्टा
हाथों में पहनी इन्द्रधनुषी चूड़ियाँ
बालों को छोड़ दिया ऐसे ही बेलौस
ऑफिस वाले खींच कर
ले गए पार्टी मनाने
काम को बंक मारा
(भगवान् ऐसा बॉस सबको दे ;) )
तभी खिड़की से आया
कुश का बधाइयों का टोकरा
और अनुराग जी का भेजा बादल
दोनों के कहा...बाहर घूम के आओ
प्लान बन गया शाम को
लॉन्ग ड्राइव पर जाने का
थोड़ी आइसक्रीम, थोड़ा भुट्टा खाने का
और थोड़ा ज्यादा वक्त 'उनके' साथ बिताने का
२६ की उमर में आँखें ऐसे चमक रही है
जैसे १६ में चमकती थी
जिंदगी ने देखा मुस्कान को
काला टीका लगा के कहा "चश्मे बद्दूर"