15 August, 2008

जलेबियों के दिन...


१५ अगस्त का हमें साल भर बड़े बेसब्री से इंतज़ार रहता था...उस दिन स्कूल में परेड होती थी, और मैं अपनी बटालियन की कैप्टेन थी, झंडे को सलामी देना, सावधान,विश्राम...और जब प्रिसिपल चेकिंग करती थी, बिल्कुल स्थिर खड़े होना।
और सबसे बेहतरीन बात होती थी कि पापा हमेशा जलेबी ले के आते थे। तो हम जैसे ही घर पहुँचते सीधे किचन की तरफ़ भागते, और ठोंगा में जलेबी मिलता, इसके साथ सेव भी रहता था, जो तीता होता था इसलिए हम नहीं खाते थे।
इसके बाद शाम में हम घूमने जाते थे, और मैं और भाई सारे रस्ते गिनते रहते थे कि कितने झंडे देखे, जो झंडा मैंने देखा उसे वो नहीं गिन सकता था...इसलिए हम सारे टाइम ध्यान से देखते रहते थे कि किसने ज्यादा झंडे गिने। अब सोचती हूँ तो मुस्कुरा देती हूँ।
इसके अलावा कुछ और भी १५ अगस्त थे जब सुबह उठ कर तैयार हो जाते थे, मेरे पापा स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में काम करते हैं...तो उसदिन सफेत शर्ट और पन्त पहन के जाते थे पापा, और हम भी उनके साथ। बैंक में झंडा फहरते देखना और फ़िर जलेबी, सेव और एक रसगुल्ला...वैसे हम जितना चाहे रसगुल्ला मिलता था। फ़िर आस पास के बच्चो में टाफी बाँटी जाती थी, उसके लिए बड़ी मारा मारी मचती थी। पापा या जो भी अंकल बांटते थे, कहते रहते थे कि झगडा मत करो ,सबको मिलेगा...पर नहीं
वापस जीप में आना भी एक सुखद सफर होता था, पापा के collegues, यानि बाकि अन्क्ले लोगो के बच्चे भी लगभग हमउम्र होने के कारण ,अच्छी दोस्ती थी सारे रास्ते हम देशभक्ति के गीत गाते आते थे...उस दिन मेरी बड़ी पूछ होती थी, एक तो अच्छा गाती थी और सबसे ज्यादा गाने भी मुझको याद रहते थे, वो भी पूरे पूरे।
घर में मम्मी हमेशा कुछ अच्छा बनती थी, पूडी और कोई बढ़िया सब्जी, खीर या सेवई वगैरह।
जब भी हॉल में फ़िल्म के पहले जन गण मन सुनती हूँ तो अनायास ही रोयें खड़े हो जाते हैं, कुछ तो है कि जब भी सुनती हूँ...अजीब सा फील होता है। और कुछ ऐसा ही आनंद मठ के वंदे मातरम को सुन के लगता है...
आज मैंने भी सफ़ेद सूट और केसरिया दुपट्टा ओढा है...
मोरा रंग दे बसंती चोला माई रंग दे....रंग दे बसंती चोला
और अंत में मेरा फवोरिते कुछ शेर
shaheedon ki चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
और कश्मीर के लिए
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा इधर
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर
खून से खेलेंगे होली जब वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...

10 comments:

  1. आपकी जलेबिया देखकर मुँह में पानी आ गया |

    हमारे विचार भी पढ़े !

    विजयराज चौहान (गजब)
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  2. स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं.
    वंदेमातरम्!

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  3. शीर्षक देखकर ही मन में गुदगुदी हो गयी.. फिर जलेबियो की तस्वीर देखकर मज़ा आ गया.. सच कहु तो आपकी पोस्ट से ज़्यादा मज़ा शीर्षक में एयेए.. मैं अनास ही अपने बचपन में पहुँच गया.. राष्ट्र गान आने पर मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही होता है.. बहुत बहुत बधाई इस पोस्ट के लिए..

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  4. सुबह सुबह देर से उठा तो माँ ने जलेबी की फरमाइश की ..मां को शुगर है पर पापा को बहुत पसंद है.....हलवाई का नंबर फीड किया हुआ है...अक्सर कचोरी भी जो लाता हूँ....फोन किया ..वहां पहुँचा ......तुम्हारी कसम नाश्ते में जलेबी ली है...बंगलौर में आसानी से मिल जाती है क्या ?.....चावल राजमा लंच में है क्या कहती हो ?पूजा

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  5. आजाद है भारत,
    आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
    पर आजाद नहीं
    जन भारत के,
    फिर से छेड़ें, संग्राम एक
    जन-जन की आजादी लाएँ।

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  6. स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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  7. u know that day when i first came on ur blog and found u giving a vent to ur feelings about bikes n all, a ray of hope flickered ,albeit faintly, in my heart murmuring 'YES this is the kind if blog i was lookin' for since ages!' But..but to my utter disappointment and a mortal shock today i find her talkin' what? Jalebis n all that nostalgic crap ! gosh when will d' gals grow up!!

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  8. ..by d way i also celebrate 15aug. so wish u hapi i day.

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  9. कितने बरस हो गए ऐसी जलेबियाँ देखे हुए.
    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं.

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  10. sahi kaha apne ... apne bachpan ke din yaad aa gaye... jab school sirf isliye jaya karte the ki wahan aaj laddu milenge... :)

    apko bhi swatantrata diwas ki shubhkamnayein ...

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