16 July, 2008

अलविदा दिल्ली...

बड़ी तेज़ी से भागता रहता है वो शहर मेरा
जाने कैसे मेरी यादों से छूटा ही नहीं

अब भी कुछ बदला नहीं आह मेरी दिल्ली में
उसे क्या फर्क हम रहे वहां या नहीं

पूछूंगी तो कह देगी की जाओ बंजारन
दो दिन को रुके और दिल्लगी की बातें
भटकने वालो का ऐसा दिल हुआ नहीं करता...बस जाओ कहीं

अब उम्र हो गई तुम्हारी भी...हमारी भी

5 comments:

  1. यादो की कभी उम्र नही होती .....

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  2. abhi to kai shahar chhotne hain..
    aage- aage dekhiye hota hai kya?

    vaise kavita bahut achchhi thi.. :)

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  3. पूछूंगी तो कह देगी की जाओ बंजारन
    दो दिन को रुके और दिल्लगी की बातें
    भटकने वालो का ऐसा दिल हुआ नहीं करता...बस जाओ कहीं

    bahut sundar...

    ReplyDelete

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